परित हरित मणि पाने को हम
कल्पित करते पन्थ अनेक।
आशा प्रत्याशा के बन्धन बध
लक्ष्य बदलते प्रतिपल भेक।।
हर हार जित से बोझिल जन मन
भूल जाय बिधि अमिट लेख।
शाम सा ढलते रहते उलझ उलझ
जीवन मेले के नित नव खेल।।
छोटी मोटी असफलताओं से सूरमा
स्वं वा स्वजन को क्यों कोस।
असफलता बड़ी सफलता द्योतक भी
जह तालमेल हो जोश होश।।
पद प्रतिष्ठा परिणाम प्रबल परमात्मा पूरे
कर्तव्य पथ ही जब हो लगन।
तू ईश अंश चित सबल मन बड़ा कदम
तब सफलता दासी चूमे चरन।।
भूत भूल वर्तमान बल भविष्य बना वीर
पीड़ा जो भूत से उसे दो चीर।
मन मसोज स्व पर कोसते केवल कायर
मनमाफिक फल लेते धीर वीर।।
कमठ पीठ सा कर दिल दिमाग मजबूत
जल थल नभ गामी बहुआयामी।
निज प्रतिभा ही है अनमोल मणि जग में
मणि किरण बल बन सदपथगामी।।
चित शांत सदा कदम प्रतिष्ठित पथ पर
ध्वज फहरे लहरे हर पल।
गम समन सदा कर्म धर्म वर्म के मर्म पर
निज परचम चमके हर थल।।
होता वही जो होना है
परिणाम खरा सोना है।
कहते कहते कायर है
मार्ग बनाते सायर हैं।।
रविवार, 31 मई 2015
मनमाफिक फल लेते धीर वीर
मंगलवार, 26 मई 2015
प्रश्न
हर क्षेत्र विकास भाल चूमे प्रश्न कर्ता का।
पथ दर्शक हैं रवि चन्द्र निज पथ भर्ता का।
सहज सरल प्रश्न उलझ जाते हैं जहाँ।
कठिन जटिल प्रश्न सुलझ जाते हैं वहाँ।।
जीवन पथ प्रश्न रथ सवार जन इस जहाँ।
लक्ष्य फल कर्म बल तोड़ लाते सदा यहाँ।।
ज्ञानी अज्ञानी अज्ञानी ज्ञानी हो जाते कब।
ज्ञात अज्ञात प्रश्नजात नवगति पाते जब।।
जीवन पथ तुतलाते हकलाते आगे बढ़ते।
बक बक कर सम्भावनागत मार्ग पा जाते।।
सीधी सी साधी सी सौंधी सी सत सवाल।
तीखी मिर्ची सी मचा देती है बहुत बवाल।।
सिंहासन हिला प्रश्न कही रचते इतिहास।
कराते हैं ये वही जन मन मन्दिर निवास।।
सोते जागते उठते बैठते हिलते डुलते प्रश्न
मानव संग जटिल जीवन जीते हैं प्रश्न।।
प्रश्न पर चढ़ मूढ़ व्यमूढ़ बन जाय साथी।
पर हल पा निज प्रश्नों का होते महारथी।।
क्या क्यों कैसे उलझा दे ऐसे तैसे नित।
वाह ये कैसे जीवन तार सुलझाये जित।।
कहाँ कब कौन जब तोड़तें निज मौन।
ठौर ठौर गौर गौर हल होते कौन कौन।।
साहित्य सेवा जनसेवा निज मेवा हित।
प्रश्नों का लगाना ही होगा झड़ी नित।।
किसका किसकी किसके इसके उसके।
पाव पीछे न कभी किसी भय से खिसके।।
आश्रय अमित का मनोरम मनोबल ये।
नवजात जात जीवन का बलधाम हैं ये।।
यक्ष भी ये रक्ष भी ये समक्ष भी हैं ये।
समर्थ जन हेतु सहज सरल साध्य ये।।
समस्या समाधान सावधान से सवाल।
सज्जन साधुजन सदसमागम से सुहाल।।
बिन्दु-सिन्धु हैं प्रश्न विचारे।
मति गति सुरति कहत रत नारे।।
श्रोता-वक्ता ज्ञानी सहारे।
सूरज प्रश्न अज्ञान घन वारे।।
शुक्रवार, 8 मई 2015
आबो हवा सबब है सगरा हमरा द्वारे द्वारे
माया जगत भृंग इंसा आस सुवास सहारे।
फौलादी हौसला बल हर दुर्निवार निवारे।।
काम कुसुम तजि काम निरत हो जा सारे।
मन्दिर मस्जिद गिरजाघर आस्था गुरूद्वारे
देख पेख निज पर कर्म भाग्य मन मा सोच।
हैं हम अजूबे जग अजब अजायबघर पोच।
कर्म धर्म जीवन अंगी अंग भंग न हो लोच।
प्रकृति नटी अगनित नामी हैअजब कोच।। पाथर नर पूजित अपूजित अभिधाने थाने।
मगता दाता सजीव निर्जीव मूरत मनआने।
महा मोह तम आच्छादित जाने अनजाने।
पारस प्रभु परस दरस सरस हो जीवन माने आबो हवा सबब है सगरा हमरा द्वारे द्वारे।
मीठा खारा खुशबू बदबू रूप न्यारे न्यारे।।
जग जानो जव जू जात जवास पावस जारे।
बिन जगे भ्रम ना मिटे मिट जाय ख्वाब सारे
गुरुवार, 7 मई 2015
दिशा
अति हितकारी दिशा दशा देश देव होते
तय करना नित नूतन लक्ष्य कदम सजोते।
देश दिशा नव कीर्ति ले संसार में फैले
युवान महान हो भारत गान गावे शैले शैले
पर मन्दिर मस्जिद गिरजाघर बिक जाते
पूज्य स्थानों पर भी हैं घाती घात लगाते।
निज में रम गम दूजो को नित नव दे जाते
रम में रम ज्ञान मान का पाठ पर को पढाते
अद्भुत
हैं हम हम जो चाहे कर जाते
लूट तन्त्र है लोकतंत्र यह सद वाक्य रटाते
ऋषि महर्षि हाजी पीर औलिया गाथा गाते
सब धर्मो के आदर्शों को कहते सुनते पाते।
पुरुषोत्तम का देश हमारा हम हैं इटलाते
गीता ने दी दिशा देश धर्म कोहैं नित गाते।
तय कर निश्चित दिशा दिया देवों ने हमको
कृतज्ञ हैं देश सदा पूजे प्रतिपल उनको।।
पूजित होने की चाह आह दे आज सबको
दिशाहीन से दिशाज्ञान मिले कैसे हमको।
खुद ही करो निर्माण खुद का अब तो
दिशा बोध हित शोध करो कर्म भी तो।
बढ़ा कदम निज सोच समझ से हो अभय।।
सद पथ से ही होगी निश्चित ही सद जय।।
दे भुक्ति मुक्ति हैं जग तारन तरन
सदा साथ कमलाकर किंकर।
कुन्दकली सम वरदंत मनोहर।।
मति विमला सबला विद्या वर।
सुमिरत मोह कोह हटे सत्वर।।
दांत पीस कर मुष्टिका प्रहार।
रन छोड़े शत्रु दांत खट्टे कर।।
दांत से ही सेहत सवरती सही।
मुंह दांत नहीं तो पेटआंत नहीं।।
इन्द्रिय हैं हम सक्रिय हैं संसार।रहा
दांत कटी रोटी कर्ण साहै धार।।
आकाश वृत्ति ही जब जग जात।
गिनों क्यों दान बछिया के दांत।।
सफेद पोशों का व्यवहार यहाँ।
हाथी दांत सा ही धोखा जहाँ।।
कर्म धर्म गीता मर्म है बसाना।
जहाँ में जहाँ तक जगह पाना।।
बुलन्दियो की इमारतें उठाना।
रह जाय दंग दुश्मन व जमाना।।
युगों युगों से सबने देखा जाना।
अमितों का दातों अंगुली दबाना।।
दुःख दर्द दांत तालू में जमना।
मृग मरीचिका है दिवा सपना।।
ज्ञान अनुभव जीवन में भरना।
देगा सब दूध दांत का टूटना।।
द्वितीय बचपन जीवन में आता।
इंसा को तब है कुछ नहीं भाता।।
आँख कान नाक दांत त्वचा गुन।
हो जाते हैं जब सभी अंग सुन्न।।
पवन तनय संकट हरन सुमिरन।
दे भुक्ति मुक्ति हैं जग तारन तरन।।