नमस्कार उस श्रेष्ट को जो करता लालच सज्जन संगम का!
द्विजप्रेमी परगुणानन्दी विद्याभिरुचि स्वपत्नि अनुरक्ति का!!
रखता हो शिव में भक्ति दुर्जन त्यागकर संयम स्वयं का!
भय रखता लोकनिंदा का रुप हैंउत्तमोत्तम गुणों का!!
श्रेष्ठ जन धैर्य क्षमा रखते विपत्ति अभ्युदय में!
रखते हैं पटुता पराक्रम भाषण व युध्द में!!
अभ्यास व रुचि होती शास्त्राध्ययन यश विषय में!
स्वभाव में रहते सभी होते न कभी पर रुप में!!
असिधारा पर चलने की तरह रुपहैं साजते!
आये अतिथि क आदर छिप कर दान जो करते!!
गर्वहीनता धन सम्पत्ति में उपकार सभा का कहते!
निन्दारहित बात करते कर उपकार किसी का न कहते!!