अतुलित बल के धाम अर्थात घर, आगार तो गोस्वामी जी मे कहा ही है।
भगवान श्री राम हैं
अतुलित बल अतुलित प्रभुताई।
वे रहते हैं हनुमान जी के हृदय-धाम में
जासु हृदय आगार बसहि राम सर चाप धर।
इसी गुण से
समुद्रोल्लंघन एवं सुरसादि का मान मर्दन हुआ।
(2) हेमशैलाभदेहं/स्वर्णशैलाभदेहं
कनक बरन तन तेज बिराजा।मानहु अपर गिरिन्ह कर राजा।।और
कनक भूधराकार सरीरा।समर भयंकर अति बलबीरा/रनधीरा।।
इसी गुणसे
जगत जननी जानकीजी को भरोसा होता है।
(3)दनुजवनकृशानुं
प्रनवउँ पवनकुमार खलबन पावक ज्ञानघन।और
उलटि पलटि लंका सब जारी।
इसी गुण से
अक्षय कुमार आदि राक्षसों का बध और लंका दहन
दूसरी बात
अग्नि सब कुछ जला सकती है उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है यथा
उहाँ निसाचर रहहि ससंका।
जब ये जारि गयउ कपि लंका।।और
काह न पावक जारि सक
(4)ज्ञानिनामग्रगण्यं
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कपीश्वरौ
इसी गुण से
रावण को उपदेश ,जिस पर वह व्यंग्य ही, पर सही ही कहता है
मिला हमहि कपि गुर बड़ ज्ञानी।
(5)सकलगुणनिधानं
होउ तात बल सील निधाना।
अजर अमर गन निधि सुत होऊ।।
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
जय हनुमान ज्ञान गन सागर
इसी गुण से
बिद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
(6)वानराणामधीशं
नव तुलसिका बृन्द तह देखि हरष कपिराइ।
जय कपीस तिहु लोक उजागर।
इसी गुण से
राखे सकल कपिन्ह के प्राना।
(7)रघुपतिप्रियभक्तं/रघुवरवरदूतं
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।
रामदूत अतुलित बल धामा।
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी।
रामदूत मैं मातु जानकी।और
बूड़त बिरह जलधि हनुमाना।
भयउ तात मो कहु जलजाना।।और तो और
लाँघि सिंधु हाटकपुर जारा।
निसिचर गन बधि बिपिन उजारा।।
इसी गुण से
राम कृपा भा काज बिसेषी।
(8)वातजातं
पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रुप।
जीति न जाइ प्रभंजन जाया।
जात पवनसूत देवन्ह देखा।
पवनतनय बल पवन समाना।
इसी गुण से
तोहि देखि सीतलि भइ छाती।
मनोजवं मारुततुल्यवेगम
नमामि
से तात्पर्य मनोरथ सिद्धि की प्रार्थना और विशेष बात ध्यान रखने योग्य हनुमान जी के उक्त आठ नामों के बाद नमामि का अर्थ यह श्लोक अपने आप ही "हनुमानाष्टक" हो जाता है। और ऐसा
माना जाता है कि हनुमानाष्टक का पाठ करने से व्यक्ति को अपनी हर बाधा और पीड़ा से मुक्ति मिलने के साथ उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं.