मंगलवार, 14 जनवरी 2025

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग पैंतीस।।तेज।।

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग पैंतीस।।तेज।।
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ।।
इतना प्रबल तेज है श्रीहनुमानजी का इसको केवल श्रीहनुमानजी ही संभाल सकते हैं। क्योंकि यह शंकरजी
के अवतार हैं, शंकर सुवन, और शंकरजी प्रलय के देवता हैं जिसमें प्रलय करने तक की शक्ति और सामर्थ्य
हो, उसको कोई और सम्भाल सकता है क्या? लक्ष्मणजी की मूर्छा के समय यही तो बोले थे जो हो अब
अनुशासन पावो, भगवान् अगर आपकी आज्ञा हो तो
जो हों अब अनुशासन पावो तो चन्द्रमा निचोड़ चेल।
जो लाइ सुधा सिर लावों, जो हो अब अनुशासन पाऊँ।।
कैं पाताल, दलो विहयावल अमृत कुंड मैं हिलाऊँ ।
भेदि, भवनकर भानु वायु तुरन्त राहु ते ताऊ
यह तेज, यह प्रबल प्रताप यह श्रीहनुमानजी हैं। आप कल्पना करें, कितनी इनकी गर्जना भारी होगी,
एक बार भीम को कुछ अभिमान हो गया और कोई पुष्प द्रोपदी ने मंगाया था तो इन्होंने कहा मैं लाऊंगा कोई
कमल या विशेष फूल, हिमालय में होता था और उस सीमा के भीतर देवताओं का वास है। मनुष्य नहीं जा
सकता। लेकिन भीम ने अहंकार में कह दिया कि मैं लाऊँगा । बद्रीनाथ के पास हनुमानचट्टी में बूढ़े वानर
के रूप में हनुमानजी लेटे थे। भीम तो अपने अभिमान में जा रहे थे। भीम ने कहा, ऐ वानर एक तरफ हट
जा, मुझे आगे जाने दो। बूढ़े वानर के वेश में हनुमानजी ने कहा बूढ़ा हो गया हूँ, अब हिम्मत नहीं है। तुम
मुझे थोड़ा सा सरका दो तो भीम ने कहा कि लाँघ कर जा नहीं सकता, बीच में तुम पड़े हो। भीम ने पूँछ
को सरकाने की कोशिश की, मगर हनुमानजी की पूँछ जिसे रावण नहीं हिला पाया बाकी की तो बात छोड़ो।
बहुत पसीना-पसीना भीम जब हो गए तो कहा कि कहीं आप मेरे बढ़े भाई हनुमान तो नहीं हैं तब हनुमानजी
ने अपना एक छोटा रूप प्रकट किया। भीम ने प्रणाम किया और कहा कि हम आपका वह रूप देखना चाहते
हैं जिस रूप में आपने लंका जलाई थी-
विकट रूप धरि लंक जरावा ॥
हनुमानजी ने कहा वह रूप तुम सहन नहीं कर पाओगे, देख नहीं पाओगे, बोले हम क्या कोई सामान्य
व्यक्ति हैं, महावीर हैं। आप यदि महावीर तो हम महाभीम हैं। हनुमानजी ने वह रूप थोड़ा सा प्रकट किया। मूर्छित होकर भीम गिर पड़े। हनुमानजी ने मूर्छा दूर की और समझाया, तो उस तेज को सम्भालने की क्षमता केवल श्रीहनुमानजी में है। तब भीम ने कहा आप मेरे पर कृपा करें। तब हनुमानजी ने कहा जब तुम्हारा युद्ध होगा तब मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। हालांकि इस युग में सामान्य मनुष्य को मारना यह वीर को शोभा नहीं
देता है। तुम्हारी सेना में वीर हैं ही नहीं जिससे मैं युद्ध करूं फिर भी उस समय चलो, भीम को वापस कर
दिया कि आगे देवताओं की मर्यादा है। किसी की मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। यहाँ से भीम वापस
आए तो बहुत गुणगान करते आए -
चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ सृवहिं सुनि निशिचर नारी ॥
श्रीहनुमानजी की गर्जना इतनी जबरदस्त कि राक्षसों के भी हाल बेहाल हो गए। गर्भवती राक्षसियों के
गर्भपात हो गए। हनुमानजी की हाँक सुनकर रावण भी घबरा जाता था। रावण के भी कपड़े ढीले हो जाते थे-
हाँक सुनत दशकन्द के भये बन्धन ढीले।।
रावण के वीरों को देखकर जब हनुमानजी गर्जना करते थे तो वीर सैनिक मूर्छित होकर गिर जाते थे,
भगदड़ मच जाती थी। हाँक सुनत रजनीचर भाजे, आवत देखि बिटप गहि तर्जा । ताहि निपाति महाधुनि
गर्जा, चलत महाधुनि गरजेसि भारी, केवल राम-रावण युद्ध में ही गर्जना नहीं, जिस समय महाभारत का
युद्ध हुआ तो भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, अर्जुन, हनुमानजी की प्रार्थना करो, बिना उनकी सहायता के
युद्ध नहीं जीत पाओगे। अर्जुन को थोड़ा गर्व था बोले नहीं महाराज, भगवान तो अपने भक्त को ही स्थापित
करना चाहते थे। अर्जुन भी भक्त थे लेकिन अर्जुन भक्त कम, सखा ज्यादा थे-
सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति ।
सखा भाव में कभी-कभी अर्जुन भगवान् के ऐश्वर्य को समझ नहीं पाते थे। उनको तो ऐसा लगता था
कि मेरे जैसा वीर कभी न हुआ है, न होता है, न होगा। भगवान् हनुमान् की वीरता को भी दिखाना चाहते थे
कि अगर तुम वीर हो तो एक महावीर भी है। एक बार हनुमान् सागर के किनारे बैठे थे, अर्जुन घूमते-घूमते
वहाँ आ गए तो परिचय हो गया। अच्छा-अच्छा आप हनुमान् हैं। अर्जुन ने कहा कि हमने सुना है कि आप
इतने बड़े वीर और बलवान हैं। आपके भगवान् वीर और बलवान परन्तु आप पुल नहीं बना पाये, पत्थर
ढो ढो कर वानरों को बनवाना पड़ा। अगर मैं होता तो अपने वाणों से ही सागर पर पुल बना देता। हनुमान जी
ने कहा कि बाणों से पुल बाँध जा सकता था, लेकिन सेना इतनी भारी थी कि उनके भार को बाणों का पुल
सहन नहीं कर पाता इसलिए हम लोगों को पत्थर लाकर पुल बनाना पड़ा। अरे ऐसा कैसे हो सकता है। मैं पुल
बनाकर देखता हूँ बोले क्यों परिश्रम करते हो तुम्हारा पुल मेरा ही भार सहन नहीं कर पाएगा। अरे कैसी बात
करते हैं आप, अर्जुन के बाण और निष्फल चले जाएं। जिद कर बैठे, शर्त तय हो गयी अगर मेरे बाण निर्मित
पुल से आप पार हो गए तो तुमको चिता में जलना पड़ेगा और मेरे बनाए पुल को यदि तुमने तोड़ दिया तो मैं
चिता में जल जाऊंगा। भगवान् को बड़ा अटपटा लगा, ऐसी भी कोई प्रतिज्ञा होती है? दोनों ही मेरे प्रिय हैं, और
चिता में जलने को तैयार हैं जरा सी बात पर अर्जुन ने बाणों से पुल बनाया, पट गया सारा सागर । बोले जाओ।हनुमानजी ने जय श्रीराम कहकर जैसे ही अपना दाहिना चरण रखा चरमरा गया। अब प्रतिज्ञाबद्ध अर्जुन को लगा,
मुझे जीवित रहने का अधिकार नहीं। चिता बनाकर प्रवेश करने वाले थे। ब्राह्मण वेश में श्रीकृष्ण प्रकट हो गए
क्या बात है किसकी चिता है। बोले, मैं प्रतिज्ञा हार चुका हूँ इसलिए मैं चिता में जीवित जलने जा रहा हूँ। कोई
तुम्हारी शर्त के बीच में साक्षी था? तो फिर ऐसे कैसे शर्त पूरी हो सकती है। कोई न कोई बीच में निर्णायक
चाहिए न, अब बनाओ हमारे सामने तब हम देखेंगे, दुबारा पुल बनाया गया, अब कहा जाओ, हनुमान जी गए।
हनुमान जी ने थोड़ा सा मचका दिया, देखा सागर का जल रक्त से लाल हो गया। हनुमान जी समझ गए मेरे
प्रभु नीचे आ गए। पुल भी नहीं टूटा, हनुमानजी भी आ गए। अर्जुन ने कहा, यह सागर का सारा जल कैसे लाल
हो गया? तब ब्राह्मण, श्रीकृष्ण रूप में प्रकट हो गए। अर्जुन तुमको बचाना था। ये देखो मेरी पीठ पर हनुमान्
के भार के दाग हैं इस कारण इसका रंग लाल हो गया। इतने वीर थे हनुमानजी तब भगवान् ने कहा, अर्जुन
हनुमानजी से प्रार्थना करो। हनुमानजी ने कहा है कि मैं इस युद्ध में कमजोर लोगों को नहीं मार सकूंगा, क्योंकि
मेरे स्तर का आपके यहाँ कोई है ही नहीं। लेकिन हाँ मैं तुम्हारी सहायता करूंगा। भगवान् ने कहा था कि आप
इसके ध्वज की पताका पर बैठ जाइए इसलिए अर्जुन के रथ पर जो ध्वज लगी है, उसको कपिध्वज नाम दिया
गया है। तो हनुमानजी ने कहा कि मैं कभी-कभी अपनी गर्जना कर दिया करूंगा जिससे सामने वाले दुश्मन डर
से कमजोर हो जाएंगे। जब अर्जुन ध्वज से तीर छोड़ता था तो श्रीहनुमानजी गर्जना करते थे और हनुमानजी की
जो गर्जना होती थी, भीष्म जैसे महापुरुष के हाथ से भी शस्त्र गिर जाया करते थे। हाँक सुनत रजनीचर भागे
तीनो लोक हाँक तें कांपे, ऐसे हैं हमारे श्रीहनुमानजी।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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