रविवार, 12 जनवरी 2025

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग बाइस।।हनुमानजी और विभीषणजी ।।

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग बाइस।।हनुमानजी और विभीषणजी ।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना। लंकेस्वर भये सब जग जाना ॥
विभीषण बहुत दुःखी थे अरे व्यक्ति कितना हीनभाव से भर गया होगा। बीमार व्यक्ति भी अगर कोई जा रहा है और आप अगर उससे मिले आपने उससे पूछा कि आप कैसे हैं तो वह बोलेगा ठीक हैं। घर में कलह है, क्लेश है, दुःख है पर आप पूछेंगे कि घर में कैसा चल रहा है तो वह कहेगा सब ठीक चल रहा है। एक सामान्य व्यक्ति भी अपने रोने का दुःखड़ा रोना नहीं रोता। लेकिन विभीषण जैसा व्यक्ति, हनुमानजी ने जब पूछा कि कैसे हो विभीषण, बोलता है: अरे भाई क्या बताएं-
सुनहु पवनसुत रहनि हमारी जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी ॥ ये रावण की कैबिनेट के सबसे बड़े मंत्री थे। स्वर्ण भवन में रहनेवाले और यह भी अपने को बेचारगी
की श्रेणी में ले आए, इतना हीन भाव से भरा हुआ। हनुमानजी ने कहा तुम्हारे ऊपर प्रभु की बड़ी कृपा
विभीषण बोले दाँतों के बीच में जीभ अरे यही कृपा है क्या? हुनमानजी ने कहा कि जिसको तुमने कष्ट समझा
है वह कष्ट नहीं है, वह परमात्मा की कृपा है। अरे पुष्प तो कांटों में ही खिला करते हैं, अगर कांटे न हों
तो पुष्प की भी शोभा नहीं होगी और न ही वे सुरक्षित रहेंगे। लेकिन तुमने कांटे तो देख लिए पर कांटों के
बीच में हंसता- मुस्कुराता सुगन्ध से भरा हुआ पुष्प नहीं देखा। जीवन में यदि कष्ट नहीं आएगा तो आनन्द का
स्वाद भी आपको ठीक से नहीं मिलेगा। अगर रात नहीं होगी तो विश्राम कैसे करोगे। आप सोचें कि चौबीस
घण्टे दिन ही होता तो मनुष्य की दशा क्या हो जाएगी, पागल हो जाएगा। यह तो भगवान की कृपा है। जिसे
तुम कष्ट समझ रहे हो, हीनभाव में डूबे हुए विभीषणजी को मंत्र दे दिया, जीवन बेचारगी का नहीं चाहिए,
विचारवान होना चाहिए। इसलिए हनुमानजी जो भी करते हैं पहले विचार करते हैं। आज हनुमानजी यह एहसास विभीषण को करा रहे हैं कि तुम मोह के भाई नहीं हो तुम तो महात्मा के भाई हो। मेरे भाई हो चलो माँ का दर्शन करें लेकिन इतना हीनभाव था कि विभीषण नहीं गया। युक्ति बता दी, जुगुति विभिषण सकल सुनाई।
व्यक्ति अपने बुरे दिनों के लिए भी युक्तियां बता देता है। बुरे दिन हैं, समय खराब है, कर्म खराब रहे होंगे।
भोगना तो पड़ेगा ही क्या करें, मनुष्य अपने दुःख, दर्द के लिए भी युक्तियां निकाल लेते हैं, उसका उपाय नहीं
सोचते। बाद में जब रावण ने लात का प्रहार किया, तब विभीषण को प्रभु की याद आई, तब उस समय सोचने
लगे कि हनुमानजी की बात ठीक थी, मैंने ही भूल की। संत अलार्म का कार्य करते हैं। हमने रात को आठ
बजे अलार्म भरा, सुबह चार बजे उठने के लिए भरा है। प्रातः चार बजे बोलेगा अलार्म, जब भरा जाता है तब
नहीं बोलता है। भरा कभी जाता है और बोलता कभी है। लेकिन बोलता जरूर है। ऐसा नहीं होता कि भरने
के बाद वह बोले नहीं। सत्संग का भी यही अर्थ होता है। सत्संग हम आज सुनते हैं हजारों लोग कथा सुन
रहे हैं, इन पर कोई परिणाम तो होता नहीं। अरे भई, परिणाम एकदम नहीं होता आज हमने कथा के माध्यम
से उनके भीतर सत्संग का अलार्म भर दिया। कभी न कभी, किसी न किसी घटना पर, किसी न किसी स्थिति
पर, अवसर पर इनको हमारी याद आ जाएगी कि एक बार फला ने कथा में यह कहा था किअलार्म आज भरा है हो सकता है दो साल बाद, चार साल, दस साल, बीस साल या अन्तिम समय में वहअलार्म बज जाए। अलार्म भरा है तो बजेगा अवश्य । इसलिए जो आज सुन रहे हैं वह आपके भीतर भर गया है। कभी न कभी अवश्य बजेगा। हनुमानजी विभिषण को मंत्र का अलार्म भर आए थे। विभीषण उस समय नहीं गए। हो सकता है, युक्ति से उन्होंने अलार्म के ऊपर हाथ धर दिया हो, इसी को युक्ति कहते हैं। लेकिन जब जोर का थपका मारते हैं तो अलार्म बजने लगता है। तो भरी सभा में रावण ने विभीषण की घड़ी को लात मारी उसी समय याद आ गयी- रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि ।
  मैं रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि ॥
मैं रावण की सभा को छोड़कर राम की शरण में जाऊंगा-
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना।लंकेस्वर भये सब जग जाना।
हनुमानजी के मंत्र ने पापेश्वर की लात खाने वाले को भी लंकेश्वर बना दिया। ये श्रीहनुमानजी की कृपा
है। ये हनुमानजी की महिमा है। 
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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