मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग सोलह।।हनुमानजी का विराट रूप।।
मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग सोलह।।हनुमानजी का विराट रूप।।
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥
असुरों का संहार भीम रूप धर कर माने बहुत भारी रूप धरकर भीम कोई नाम नहीं है, भीम तो गुण है । स्वप्न में भी रावण को हनुमानजी याद आ जाते हैं तो एकदम रावण कांपने लगता है। जिस समय अंगदजी
आए हैं पूरी लंका में शोर हो गया-
भयउ कोलाहल नगर मझारी आवा कपि लंका जेहिं जारी । अब धौं काह करिहि करतारा। अति सभीत सब करहिं बिचारा ॥ पूरी लंका में कोलाहल मच गया कि वही बंदर आ गया जो लंका जलाकर गया था और यह अंगदजी थे, लेकिन अंगदजी में भी हनुमानजी आकर बस गए थे। रावण स्वप्न में भी बड़बड़ाता था। अरे इस बंदर को पकड़ो, इस बंदर की पूँछ काटो, अरे इस बंदर की पूँछ जलाओ। रावण को सोते-जागते, दिन में, रात में हर समय हनुमानजी का ही स्मरण होने लगा था। हनुमानजी का भक्त हो गया था तभी तो उसे स्वप्न व जागृत में भी हनुमानजी ही दिखाई देते। चूंकि हनुमानजी ने इसकी नाक में बार-बार अपनी पूँछ दी थी। जब हनुमानजी जानकीजी की खोज कर रहे थे-
मंदिर-मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा ।।गयउ दसानन मंदिर माहीं। अति विचित्र कहि जात सो नाहीं ॥सयन कियें देखा कपि तेही । मन्दिर महँ न दीखि बैदेही ॥ उस समय रावण खराटे लेकर सो रहा था तो हनुमानजी अंधेरे में खड़े हो गए और पूँछ लम्बी की और इसकी नाक घुमा दी ।फिर छींक पे छींक । पूरी रात परेशान। हर समय हनुमानजी की पूँछ के कारण
परेशान। हनुमानजी की युद्ध कला भी अलग प्रकार की थी। आपने पूरे युद्ध में हनुमानजी को गदा लेकर नहीं
देखा होगा। चार प्रकार की सेना जब रावण की आया करती थी तो उसी की सेना को उसी से भिड़ाभिड़ा कर
मार देते थे, हाथी से हाथी.....हाथिन सों हाथी मारे, घोरेसों सँघारे घोरे, रथिन सों रथ बिदरनि बलवानकी।
चंचल चपेट, चोट चकोट चकोट चाहें,।हहरानी फोजें भहरानी जातुधानकी ॥।बार-बार सेवक सराहना करत रामु।'तुलसी' सराहै रीति साहेब सुजान की।।लाँबी लूम लसत, लपेटि पटकत भट, देखो-देखौ लखन ! लरनि हनुमान की। रामजी लखन से कहते थे कि लखन जरा युद्ध बंद कर दे और देख तो सही हनुमान् कैसा लड़ रहा
है। हाथी को हाथी से मारा, घोड़ों को घोड़ों से, रथों को रथों से पटककर और पैदल सिपाहियों को पूँछ पर
लपेट कर धरती पर पटक देते थे। लंका का मेन गेट लोगों की लाशों से हनुमानजी पाट देते थे-
देखो-देखो लखन लरनि हनुमान की।
रावण रोज शाम पत्रकार वार्ता बुलाता था। पूछा करता था क्या समाचार है तो पत्रकार समाचार देते थे
सत्यानाश हो गया। बस थोड़ा बहुत और बचा है। जब रावण को लगा कि इसने मेरी सेना को मार डाला ।
तब रावण ने अमर सेना को भेजा। रावण के पास अमर सेना थी जिसे किसी के द्वारा नहीं मारा जा सकता
था। भगवान् के पास अमर सेना का समाचार मिला, प्रभु चिंता में डूब गए अमर को कैसे मारा जा सकता है।
हनुमानजी ने कहा, सरकार चिन्ता मत कीजिए मैं जाता हूँ लड़ने। अरे भैया, तुझे मालूम नहीं अमरसेना को
कोई नहीं मार सकता। बोले, चिंता मत कीजिए अगर सेना अमर है तो हम भी अमर हैं। तुम कैसे अमर हो
बोलो माँ ने आशीर्वाद दिया है-
अजर अमर गुणनिधि सुत होहू । करहिं बहुत रघुनायक छोहू ॥ अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता ॥ तो भगवान् ने कहा ठीक है, अमरता का आशीर्वाद तो है लेकिन तुम युद्ध कैसे करोगे? बोले, महाराज आप चिंता मत कीजिए। आप टीवी खोलकर बैठ जाइए लाइव टैलीकास्ट आप यहीं बैठकर देख लीजिए।।हनुमानजी गए, जब अमर सेना आई तो हनुमानजी जानते थे कि ये मारे नहीं जा सकते हैं। बुराई छोड़ी नहीं जा सकती है तो उसको कोई कैसे सुधार सकता है। तो हनुमानजी ने अमर सैनिकों को अपनी पूँछ में लपेटा और इतनी ताकत से ऊपर फेंका कि पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण की सीमा से भी ऊपर उड़ा दिया। एक कक्षा ऐसी होती है जहाँ पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण समाप्त होता है तथा ऊपर का गुरुत्वाकर्षण भी समाप्त होता है। इसके बीच में एक स्पेस होता है जिसमें वे विमान (राकेट) घूमा करते हैं। बोले, जाओ चक्कर काटते रहो, अब मरनेवाले तो हो नहीं, अब न तुमको सुधारा जा सकता है न ही बदला जा सकता है। सायंकाल जब रावण ने बुलाया पत्रकारों को, रावण ने कहा क्या बात है, समाचार बताइए, बोले पहुँच गए। कहाँ? बोले, सब ऊपर
गए और जब पूरी घटना सुनी रावण ने तो रावण एकदम जल गया इस बंदर की तो पूँछ ही उखाड़ दी जाए।
अरे मूर्ख, संतों की पूँछ नहीं उखाड़ी जाती बल्कि चरण पकड़े जाते हैं। संतों की यदि प्रतिष्ठा उखाड़ने की
कोशिश करोगे तो खुद ही उखड़ जाओगे, शास्त्र भी कहता है- संतन के संग लागि रे तेरी अच्छी बनेगी।
अच्छी बनेगी तेरी किस्मत जगेगी होय तैरौ बड़भाग रे ॥
तेरी अच्छी बनेगी....॥
रावण मूर्ख है, संतों की प्रतिष्ठा की पूँछ उखाड़ना चाहता है। रावण ने पता लगाना चाहा कि यह बंदर कभी अकेले में बैठता है क्या? बोले, सायंकाल यह बन्दर सन्ध्या करता है सागर किनारे रावण, हनुमान जी की पूँछ उखाड़ने के लिए चुपचाप छोटा सा रूप बनाकर गया। हनुमानजी ध्यान में बैठे थे तो रावण ने जाकर
पीछे से हनुमानजी की पूँछ पकड़कर उखाड़ने लगा हनुमानजी ने देखा कि यह मेरी पूँछ पकड़े है। बोले, कौन
है छोड़ दे और रावण ने जोर से पूँछ खींच दी। पूँछ तो उखड़ी नहीं मगर हनुमानजी समझ गए कि रावण है।
पूँछ सहित रावण के साथ हनुमानजी आकाश में उड़ गए, गहिसि पूँछ कपि सहित उड़ाना। जो रावण पूँछ
उखाड़ना चाहता था, अब आकाश में उड़ते-उड़ते शंकर जी से प्रार्थना करने लगा कि हे शंकर भगवान्, कहीं
पूँछ न उखड़ जाए। क्योंकि मालूम है कि यदि पूँछ उखड़ गयी तो मैं भी गया। जिसे उखाड़ने की कोशिश कर
रहा था उसी को बचाने की प्रार्थना कर रहा था- भीम रूप धरि असुर संहारे रामचन्द्र के काज सँवारे ॥ प्रभु का काज -निसिचर हीन करहुँ महि,भुज उठाइ पन कीन्ह ॥
धरती से निशिचरों को हीन कर देना, मारे तो नहीं पर धरती से हीन तो कर ही दिया आकाश में उड़ाकर ।
।। जय श्री राम जय हनुमान
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