मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग चौतीस।।मनोकामना।।
मानसचर्चा।।श्री हनुमानजी भाग चौतीस।।मनोकामना।।
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
हनुमानजी भगवान् के भवन के मुख्य द्वारपाल, एक तो शायद इसलिए भी द्वार पर हैं क्योंकि हनुमानजी
के बारे में एक चर्चा है कि इनका कोई प्रातः काल मुँह नहीं देखना चाहता, नाम के बारे में तो हनुमानजी भी
बोल चुके हैं कि-प्रातः लेई जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलहि अहारा ॥अनेक लोग जिन्होंने इस भय से कि यदि प्रातः काल इनका मुँह देख लेंगे तो हमको भोजन नहीं मिलेगा।भगवान् ने सोचा कि चल अपने से तो तुम इनका फोटो हटा दोगे कोई बात नहीं लेकिन जब मेरे द्वार पर मेरा दर्शन करने आओगे तो तब तुम्हें पहले हनुमानजी का दर्शन करना होगा, तभी मेरा दर्शन मिलेगा। इसलिए आपको रामजी के मन्दिर में प्रथम दर्शन हनुमान् का होता है। भगवान् का जो निजधाम है परम ब्रह्म भगवान राम जहाँ निवास करते हैं, साकेत में, श्रीहनुमानजी एक रूप में साकेत में हमेशा निवास करते हैं। जो भी कोई भक्त अपनी याचना लेकर हनुमानजी के पास आता है तो हनुमानजी ही प्रभु के पास जाकर प्रार्थना करते हैं कि प्रभु इस पर कृपा करें। साकेत में गोस्वामीजी ने भी भगवान् के दर्शन की प्रार्थना इसी प्रकार की विनयपत्रिका भी जब लिखी है उस पर हस्ताक्षर कराने भी हनुमानजी के पास आते हैं। सकाम भाव से जो भक्त आते हैं हनुमानजी हमेशा उनको द्वार पर बैठे मिलते हैं और हनुमानजी की इच्छा है कि यह छोटे-मोटे काम जो तुम लेकर आए हो मेरे प्रभु को अकारण कष्ट मत दो। प्रभु बहुत कोमल हैं, बहुत सरल हैं लाओ इनको मैं निपटाता हूँ इसलिए हनुमानजी हमेशा द्वार पर बैठे मिलते हैं और कोई प्रेम के वशीभूत, भाव के वशीभूत आता है तो हनुमानजी उसे भगवान् के भवन के द्वार में अन्दर प्रवेश करा देते हैं। दर्शन के लिए कोई आता है तो उसको प्रवेश करा देते हैं, मनोकामना लेकर आता है तो स्वयं हनुमानजी पूरी करा देते हैं क्योंकि माँ ने पहले ही आशीर्वाद दे दिया था-अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता ।।माँ को भी मालूम था कि संसार में कितने लोग हैं जिनके कितने प्रकार के काम हैं। प्रतिदिन भीड़ लगेगी, भगवान् के दरबार पर कौन निपटाएगा, तो हनुमान् यह काम तुम पूरा करोगे। शायद इसलिए ही राम दुआरे तुम रखवारे का दूसरा भाव ऐसा ही लगता है, जैसे कथा से पहले कथा का मंगलाचरण होता है। ऐसे राम दर्शन से पहले मंगलमूरति मारुति नन्दन हनुमानजी का दर्शन आवश्यक है। घर के बाहर हम लोग
जब कोई विशेष दिन होता है तो मंगल कलश सजाकर रखते हैं। भगवानराम ने अपने घर के बाहर प्रतिदिन
मंगल कलश के रूप में हनुमानजी को विराजित किया है। भगवान् का भवन तो मंगल भवन अमंगलहारी
पर उनके द्वार पर भी तो मंगल कलश चाहिए। अपना जो मंगलमय परिवार का चिन्ह है यह मंगल कलश है।
न। इस कलश के रूप में श्रीहनुमानजी मंगल मूरति विराजमान हैं-मंगल मूरति मारुति नन्दन। सकल अमंगल मूल निकन्दन ।। पवन तनय संतन हितकारी हृदय विराजत अवध बिहारी ॥ मंगल मूरति मारुति नन्दन। सकल अमंगल मूल निकन्दन ।। जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥।मंगल मूरति मारुति नन्दन। सकल अमंगल मूल निकन्दन।।रामदूत अतुलित बलधामा । अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥।
मंगल मूरति मारुति नन्दन। सकल अमंगल मूल निकन्दन ॥।मातु पिता गुरु गणपति सारद । शिवा समेत शम्भु सुख दायक ॥।।मंगल मूरति मारुति नन्दन। सकल अमंगल मूल निकन्दन ॥।बंदऊँ राम लखन बैदेही । जे तुलसी के परम स्नेही ।।।मंगल मूरति मारुति नन्दन। सकल अमंगल मूल निकन्दन। हरे राम हरे राम, राम राम हरे।हरे कृष्ण हरे, कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।सब सुख लहैं तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डरना ।।।श्रीहनुमानजी की शरण में जो भी आ जाता है उसकी वह रक्षा करते हैं किसी भी प्रकार का उसको भय नहीं।रहता। जो हनुमानजी की शरण में एक बार आ गया उसकी क्या अवस्था हो जाती है गोस्वामीजी ने लिखा है-।सुर दुर्लभ सुखकरि जग माँही, अन्तकाल रघुपतिपुर जाई ।जो सुख देवताओं को भी दुर्लभ है उनका हनुमानजी की कृपा से साधारण सा मनुष्य भोग कर लेता है।।यह भोग, यह सुख सुग्रीव को भी मिला, विभीषण को मिला, वानरों को मिला। जो भी हनुमानजी की शरण में।आया उसे सुख मिलता है। ज्ञानेन्द्रियों से, अनुभूति कौन करता है। सुख का अनुभव करती हैं हमारी ज्ञानेन्द्रियां और।हनुमानजी ज्ञान, गुणसागर हैं। हनुमानजी ज्ञानिनामग्रगण्यम् (कान, नाक, त्वचा, आँख व जीभ) ज्ञानेन्द्रियां हैं। यही।रस का, सुख का अनुभव कराती हैं और इन इन्द्रियों का रस क्या है। इसका रस तो भगवतरस है और भगवतरस।कहाँ मिलता है? राम रसायन तुम्हरे पासा, जो भी भगवत् भजन का रस है, आनन्द का जो सागर है-।जो आनन्द सिन्धु सुख राशी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी ॥
सो।सुख धाम राम अस नामा अखिल लोक दायक बिश्रामा।।।आनन्द के।सुख।के महासिन्धु भगवानराम तो राम रसायन तुम्हरे पासा, इनके पास क्यों हैं? क्योंकि
अपने वश करि राखे राम इसलिए सब सुख लहै, जो भी भगवत रस है वो हमारी ज्ञानेन्द्रियों को, हनुमान
जी की कृपा से प्राप्त होगा ही।तुम रच्छक काहू को डरना, इसका अर्थ है कि जिसके रक्षक श्रीहनुमानजी हो गए उसको किसी से भी डरने की आवश्यकता नहीं है। गीता में है अभयम कुरु, हनुमानजी का सेवक है अभयम् भय
रहित, भयमुक्त, देवी-देवता भी इससे डरने लगते हैं सब देवी-देवता सोचते हैं कि हनुमानजी का सेवक है।
इसको सताने से हमारी दुर्दशा हो जाएगी और इसके अनेकों प्रमाण हैं।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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