रविवार, 12 जनवरी 2025

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग इक्कीस।।कृपा करहु गुरुदेव की नाई।।

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग इक्कीस।।कृपा करहु गुरुदेव की नाई।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ।।
शास्त्र में सुग्रीव को जीव कहा गया है और जीव के ऊपर सबसे बड़ा उपकार कौन सा है? जीव के ऊपर सबसे बड़ा उपकार कहा गया है कि जीवात्मा को परमात्मा से मिला देना। इससे बड़ा और कोई उपकार नहीं है और यह कार्य केवल श्री हनुमान जी ही करा सकते हैं। श्रीहनुमानजी ने सुग्रीव को रामजी से भी मिला
दिया और राजा भी बनवा दिया। भगवान भी मिले सुग्रीव को और भोग भी मिला। यह हनुमानजी की विशेषता
है। और देवता चित्त न धरई, हनुमत सेई सर्बसुख करई । सब प्रकार के सुखों को प्रदान करने वाली भगवत
प्राप्ति भी और भोगों के ऐश्वर्य की प्राप्ति, दोनों एक साथ में विरोधाभासी थे, उन दोनों को प्राप्त करा देना
यह हनुमानजी के बस की ही बात थी। पहले राम, बाद में राज्य और यह सिद्धान्त है कि पहले अगर राम
मिल जाएंगे तो राज्य के भोग का जीव दुरुपयोग नहीं कर सकता। सुग्रीव करने लगा था, राम के मिलने के
बाद भी जीवात्मा कभी-कभी भोग में राम को बिसार देता है। उसे भी हनुमानजी ठीक कर देते हैं। जब सुग्रीव
भोग में डूब गए, तब भी हनुमानजी की भूमिका गुरु के रूप में थी-इहाँ पवनसुत हृदय बिचारा । रामकाज सुग्रीव बिसारा ।।निकट जाइ चरनन्ह सिर नावा। चारिउ विधि तेहि कहि समुझावा ॥ हनुमानजी सब प्रकार से समझाकर जीवात्मा को हरि चरणों में ले आना, यही सबसे बड़ा उपकार है। भोग, वासना में डूबा हुआ जीव भगवान् के चरणों में पहुँच जाए इससे बड़ा और क्या उपकार हो सकता है। पहले हमारे पास धन, वैभव जाये, तब तीर्थों में जाएंगे, तब संतों की सेवा करेंगे, तब मन्दिरों का दर्शन करेंगे, तब भजन, पाठ करेंगे और इसी में सारा जीवन डूब जाता है। न इधर के रहते हैं, न उधर के। राम संग यदि पहले मिले तो धन भी कमाया जा सकता है और धन का सदुपयोग भी किया जा सकता है। अगर सीधे धन कमाया तो धन ही डुबा देता है। अर्थ ही अनर्थ कराता है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस बहुत अच्छा उदाहरण देते थे कि देखो भाई जगत में रहते हो, रहना तो जगत में है, जगत को छोड़ा तो नहीं जा सकता पर कैसे रहना- जैसे कटहल के साथ व्यवहार करते हो ऐसे रहना। कटहल का साग बनानेवाले थोड़ी चतुराई करते हैं। पहले हाथों में तेल लगाते हैं फिर कटहल को काटते हैं। अगर तेल नहीं लगाया तो इसका दूध हाथों पर चिपक जाता है और वह आसानी से छूटता भी नहीं। और यदि तेल लगा लें तो फिर कटहल से कोई इनफेक्शन नहीं होता। संसार कटहल की तरह है इसको काटकर हल किया जाता है। हम लोग चाटकर हल करना चाहते हैं। संसार के प्रत्येक स्वाद को चाटते हैं फिर समस्याओं का हल करना चाहते हैं पर इसको काटकर हल करना चाहिए और इसका जो दूध है वह अपने हाथों पर न चिपके इसके लिए पहले श्रद्धा का तेल लगा लो अगर।श्रद्धा, प्रेम, स्नेह का तेल लगा लोगे तो फिर कटहल रूपी संसार का प्रभाव आएगा ही नहीं। पहले भगवान् से मिलिए, भोगों की ओर बाद में जाइए। हम भोगों को पहले मिलते हैं, भगवान् की ओर बुढ़ापे में जाना चाहते हैं। विश्वामित्र जब आए हैं राम-लक्ष्मण को मांगने- अनुज समेत देहु रघुनाथा। निसिचर वध में होब सनाथा ॥।तो दशरथजी ने कहा, मुझे ले चलो, मेरी सेना ले चलो, राम को देते नहीं बनता तो विश्वामित्र ने कहा,
राजन् भगवान् पर मुरझाया हुआ पुष्प नहीं चढ़ाया जाता। भगवान् पर खिला हुआ पुष्प चढ़ाया जाता है। हमारे जीवन की रचना बदल गई, हम खिली हुई जवानी को भोगों को समर्पित करते हैं और मुरझाए हुए बुढ़ापे को भगवान् की ओर ले जाते हैं। जिसने जवानी में भजन कर लिया, बुढ़ापे में वह भजन काम आता है जिसने
जवानी में शक्ति अर्जित कर ली उसको बुढ़ापे में कराहना नहीं पड़ता, इसलिए पहले राम फिर आराम।
कृपा करहु गुरुदेव की नाई ।।
ऐसे हनुमानजी जो कृपा सुग्रीव के ऊपर करते हैं वह हमारे ऊपर भी करें।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ