रविवार, 12 जनवरी 2025

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग सत्रह।।राम ते अधिक राम कर दासा ।।

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग सत्रह।।राम ते अधिक राम कर दासा ।।
लाय सजीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥
मेघनाथ के बाण ने लक्ष्मणजी को मूर्छित कर दिया। काम के बाण ने लक्ष्य प्रेरित मन को भी मूर्छित
कर दिया। जिनका मन हमेशा लक्ष्य में रहता है वो लक्ष्य मन है। लक्ष्य क्या है-
बारेहु ते निज हित पति जानी। लछिमन राम चरण रति मानी ।। संत ने अपनी गोद में उठाकर लक्ष्मणजी को प्रभु की गोद में लिटा दिया और यही संत का कार्य था।
सम्पाती और जटायु दोनों को ही संत और भगवन्त ने उठाया है। गिरे को या तो संत उठाते हैं या भगवन्त् ही
उठाते हैं। लक्ष्मणजी को संत की भी गोद मिली और भगवान्त की भी गोद मिली। भगवंत की गोद, संत की
कृपा से ही मिलती है। लक्ष्मणजी को जब प्रभु ने मूच्छित देखा तो वह रोने लगे, प्रभु जब बहुत रोये-
सुत वित नारी भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा ।।
अस बिचारि जियं जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता ।।
तो हनुमानजी ने कहा, प्रभु रोइए मत सेवक जीवित है न, स्वामी को चिंता करने की आवश्यकता नहीं
है। विभीषणजी ने कहा, वैद्य को लाओ यहाँ से-
धरि लघु रूप गयउ हनुमंता। आनेउ भवन समेत तुरन्ता।
हनुमानजी जब भी कभी बड़ा कार्य करते हैं तो लघु रूप धरते हैं क्योंकि छोटे रहकर ही बड़ा कार्य किया
जा सकता है। बुरे संसार में भी भले लोग मिल जाते हैं। लंका में हैं, नाम है सुषेन, सुख के पास जाओगे तो
सुखी बनोगे। पूरे घर सहित वैद्य को उठा लाए। क्यों? संत का स्वभाव है एक नहीं पूरे परिवार को भगवान् के
साथ जोड़ना है। वैद्य ने कहा कि संजीवनी चाहिए। कहाँ मिलेगी? बोले धौलागिरी पर्वत पर संजीवनी क्या है?
रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान श्रद्धा मति पूरी ॥
रामकथा कलि कामद गाई। सुजन संजीवन मूरि सुहाई ॥
भगवान की कथा ही संजीवनी है मिलती कहाँ है बोले पर्वत पर और पर्वत क्या है-
पावन पर्वत बेद पुराना। राम कथा रुचिराकर नाना ।
मर्मी सज्जन सुमति कुदारी ग्यान बिराग नयन उरगारी ।।
भाव सहित खोजड़ जो प्रानी। पाव भगति मनि सब सुख खानी ॥
श्रीरामभक्ति की संजीवनी कहाँ मिलती है? पर्वतों पर, पर्वत क्या है? शास्त्र में वेद और पुराण ये ही
पावन पर्वत है। चार वेद, अट्ठारह पुराण, बाइस ऐसे पर्वत हैं भारत में जिनकी पूजा होती है, जिनके चरणों
(गुफाओं) में बैठकर संत लोग तप करते हैं और आराधना करते हैं। वेद शास्त्र पुराण सीधे-सीधे पढ़ेंगे तो
कुछ समझ में नहीं आएगा। जैसे शास्त्रों को पढ़कर शास्त्रों का मर्म समझ में नहीं आता, ऐसे ही पर्वत पर जो
औषधि दिखाई देती है जब तक वैद्य इसमें से रस निचोड़ेगा नहीं तब तक वह औषधि भी अपने को लाभ नहीं करती है। गुरुजन उन्हीं शास्त्रों से संजीवनी निकालकर देते हैं। मधुर-मधुर भगवान् की कथाएं निकालकर देते
हैं। इसलिए शास्त्रों को गुरुओं के चरणों में बैठकर पढ़ें, तब कुछ मिलेगा, अन्यथा तो शास्त्रों से हम निराश हो
जाएंगे। गोस्वामीजी कहते हैं कि लक्ष्मणजी को कौन मूर्छित कर सकता है? यह तो हमको शिक्षा देने के लिए
लीला की गयी है कि बड़े से बड़ा व्यक्ति भी यदि काम से जब मूर्छित हो जाता है तब मूर्छा कैसे दूर होती
है। उस मूर्छा को फिर भगवान् भी दूर नहीं कर सकते। रोते-रोते प्रभु थक गए, लक्ष्मणजी कोई साधारण नहीं
हैं वह तो सदैव जाग्रत हैं व सदैव प्रभु के चरणों की सेवा में हैं। ऐसा जीव जो पल प्रतिपल जाग्रत है, विवेकी
है, भगवान् की भक्ति की सेवा में रत है, ऐसे व्यक्ति को भी काम मूर्छित कर देता है। काम ने कभी किसी
को छोड़ा नहीं। कई लोग यह अहंकार करते हैं कि हमने काम को जीत लिया है। चिता पर पहुँचते-पहुँचते भी
काम अपना आक्रमण कर देता है। चिता पर लेटी हुई हड्डियों में भी काम प्रकट हो जाया करता है। इसलिए
इसका कभी अहंकार न करें। जाग्रत जीव अगर काम के बाण से मूर्छित हो जाए तो उसकी मूर्छा फिर भगवान्
भी दूर नहीं कर सकते। उसकी मूर्छा तो फिर कोई प्रबल वैराग्यवान संत, हनुमंत जैसा ही, पर्वत से संजीवनी
रूपी राम कथा लाकर जब उसे पिलाएगा, राम कथा सुनायेगा, तभी काम की, जीवन की मूर्छा से मुक्त हो
सकता है। तभी वह संजीवनी का आनन्द ले सकता है, तभी वह चैतन्य हो सकता है। श्रीहनुमानजी इसी कार्य
को करते हैं, भगवान् ने हनुमानजी को हृदय से लगा लिया और कहा कि मैंने सब कुछ सबको दिया पर हृदय
कभी किसी को नहीं दिया है। हृदय मैं तुझको देता हूँ-
मूर्छित लक्ष्मणजी को श्रीहनुमानजी जगाते हैं। संत ने अपनी गोद में उठाकर लक्ष्मण को भगवन्त की
गोद में लिटा दिया। संजीवनी क्या है, रघुपति भक्ति यहीं संजीवनी है। श्रीभरतजी को भी जब कौशल्या माँ
ने कहा था कि गुरुदेव की आज्ञा को पथ्य के रूप में स्वीकार करना जो गुरुदेव की आज्ञा थी । भोग प्राप्त
करना, राज्य प्राप्त करना। भरतजी ने कहा माँ पथ्य तो तब लिया जाता है जब बुखार उतर जाता है और यह
तो औषधि नहीं हुई। माँ ने पूछा औषधि कहाँ है तो बोले चित्रकूट एक औषधि है। भोग की मूर्छा की औषधि
तो पर्वत पर है। संजीवनी बूटी द्रोणागिरी पर्वत पर ही मिलती है शास्त्र में पर्वत है-
पावन पर्बत वेद पुराना । राम कथा रुचिराकर नाना ।
मर्मी सज्जन सुमति कुदारी ग्यान विराग नयन उरगारी ॥
भाव सहित खोजइ जो प्रानी । पाव भगति मनि सब सुखखानी ॥
रामकथा ही संजीवनी बूटी है जो शुद्ध-धवल द्रोणागिरी पर्वत पर मिलती है, पर्वत क्या है? वेद और
पुराण यही पर्वत है वेद और पुराण रुपी पर्वत यह ही राम कथा रुपी संजीवनी है, जो काम से मूर्छित जीव
को जागृत कर सकती है। काम तो व्यक्ति को मार डालता है आज जिसको राम नहीं जगा पा रहे उसको संत के श्रीमुख से गायी गयी रामकथा जगा रही थी। हनुमानजी संत हैं और रामकथा रची है वेदों में, पुराणों में, संजीवनी पर्वतों के शिखरों पर मिलती है। बाईस पर्वत ऐसे हैं जिनकी परिक्रमा की जाती है, गिरराज, चित्रकूट,।कैलाश आदि यें पर्वत वेद और पुराणों के प्रतीक हैं। ये पर्वत स्थूल नहीं हैं ये जीते-जागते शास्त्र हैं, ज्ञान हैं।।इनमें ज्ञान व भक्ति के भण्डार छुपे हैं। औषधि को सीधे नहीं लेना चाहिए बल्कि वैद्य की सलाह से लें और शास्त्रों को भी सीधे न पढ़ें बल्कि गुरुओं के चरणों में बैठकर पढ़ो। शास्त्र के मर्म को मर्मी जानता है। शास्त्री
मर्मी सुमति कुदारी, इन कथाओं के पर्वतों के, वेद के, पुराण के मर्म को समझने वाले इनके भीतर की
कथाओं को समझने वाले जो सुमति जन हैं, सुमति लेकर जाओगे, श्रद्धा लेकर जाओगे तो कुछ मिलेगा, भाव लेकर जाओगे तो कुछ मिलेगा। नहीं तो, पहाड़ खोदोगे तो कंकड़, पत्थर तो मिलेंगे पर मणियां नहीं मिलेंगी।क्योंकि इनको भी ज्ञान व वैराग्य के नेत्रों से खोजना पड़ता है। तर्क और कुतर्क की बातों से कुछ नहीं मिलेगा।।कोई न कोई सद्गुरु वहाँ से यह कथा लाते हैं। वेदों में, पुराणों में जो कथा भरी हैं, उनमें से शास्त्रज्ञ, वेदज्ञ,।आचार्य, सद्गुरु, संत उन मार्मिक कथाओं को निकालकर उनके मर्म को निचोड़कर आपको देते हैं जो आपकी।मूर्छा को दूर करते हैं। जैसे पुराणों को पढ़कर लोग कहते हैं कि कुछ नहीं है केवल कपोलकल्पित कथाएं।भरी हैं। ऐसा नहीं है यह गूढ़ ज्ञान को रसीला बनाने के लिए कथानक के साथ जोड़ा गया है लेकिन हमने।कथानक को तो पकड़ लिया पर कथानक के मर्म को नहीं पकड़ा। मर्म को कोई मर्मी ही जानता है। जब
सद्गुरु के चरणों में बैठोगे हनुमानजी गुरु की भूमिका में हैं पर्वत पर गुरु आकर पर्वत से मर्म निकालकर ले
जा रहा है। कथाओं, वेदों, पुराणों के जो असली मर्म हैं वही तो संजीवनी हैं। अन्यथा तो भगवान् को सिन्धु
कहा गया है। सागर में अथाह जल है लेकिन आप एक बूँद पी सकते हैं क्या? राम सिन्धु लेकिन सज्जन कौन
है घन हैं, बादल हैं। यही बादल जब सागर से वाष्पन के बाद बरसते हैं तो ही जल बिसलेरी से भी ज्यादा
मीठा हो जाता है। डिस्टिल वाटर बन जाता है। हमारे रोगों को वही दूर करता है। सीधे-सीधे यदि सागर का
जल पियोगे तो खारा लगेगा लेकिन वही बादलों के द्वारा यदि पान करोगे तो मिठास आएगी तो शास्त्र को,
वेद को यदि सीधा-सीधा पढ़ोगे तो खारा, कसैला, कडुवा लगेगा लेकिन वही किसी संत के श्रीमुख से सुनोगे
तो कथाएं आपको मीठी व रसीली लगेंगी, मन करेगा और सुनें। चन्दन के पेड़ को यदि सूघोगे तो सुगन्ध नहीं
मिलेगी, उसको घिसोगे तो सुगन्ध मिलेगी-
राम सिन्धु घन सज्जन धीरा।चन्दन तरु हरि संत समीरा।
मोरें मन प्रभु अस बिस्वासा। राम ते अधिक राम कर दासा ।।
संत ही तो भगवान् कथा की सुगन्ध को सारे विश्व में फैलाते हैं। इसलिए गोस्वामीजी ने कहा है कि
मेरे मन में तो भरोसा हो गया है कि राम ते अधिक राम कर दासा । भगवान् का नाम मात्र जीव को जगा
सकता है। आज उसको स्वयं भगवान राम का रुदन नहीं जगा पा रहा है। शायद राम इस जगत में अपने से
ज्यादा अपने दास की महिमा स्थापित करना चाहते हैं इसलिए उन्होंने ये लीला की। वरना लक्ष्मणजी को कौन
मूर्छित कर सकता था? क्या कोई काल को मूर्च्छित कर सकता है? यह नाटक है कभी बुद्धि से मत सोचो कि
लक्ष्मण तो मूर्छित हो गए यह मूर्छा तो हमारे और आपके मार्गदर्शन के लिए थी। यह समझाने के लिए कि
काम के आवेश से जब इतना जाग्रत जीव भी मूर्छित हो सकता है। हमारी और आपकी तो हैसियत ही क्या है।
यह लीला तो हमारे एक संत सुना रहे थे। एक तांगे में बैठकर लोग जा रहे थे। एक बूढ़ी माँ और उनका एक
नाती भी था। यात्रा में गढ्ढा आया तो घोड़ा भी गिर गया और ताँगा भी उलट गया। लोग भी गिर गए, यह
जो बुढ़िया थी धड़ाम से गिरी और मूर्छित हो गयी। बुढ़िया मूर्छित हो गयी तो थोड़ी भगदड़ मची, कोई पानी
लाए, कोई हवा करे, बड़ी देर तक बुढ़िया की मूर्छा नहीं जागी बुढ़िया का नाती जोर-जोर से चिल्ला रहा था
और बोल रहा था अम्मा कैसे नहीं जागेगी। जब-जब अम्मा मूर्छित हो जाती थी पापा जलेबी लाकर खिलाते थे
उस भीड़ में बालक की किसी ने नहीं सुनी तो बहुत देर बाद लेटे-लेटे बुढ़िया बोली अरे सब अपनी-अपनी
बकवास में लगे हो उस बालक की कोई नहीं सुन रहा है जो बच्चा कह रहा है वह तो सुनो, तो यह मूर्छा
का नाटक था। यह तो हमारे लिए था और जब श्रीहनुमान जी की लायी संजीवनी से लक्ष्मणजी की मूर्छा दूर।हो गयी तो सब लोग भगवान् की जय-जयकार करने लगे तो भगवान् ने कहा नहीं मेरी जय जयकार मत करो
यह तो हनुमानजी की जयकार करो-
वीर हनुमाना, अति बलवाना, राम नाम रसियो रे ।
प्रभु मन बसियो रे ||
जो कोई आवे, अरजी लगावे, सबकी सुनियो रे ।
प्रभु मन बसियो रे, वीर हनुमाना ।।
बजरंगबाला, फेरूँ तेरी माला,
संकट हरियो रे प्रभु मन बसियो रे, वीर हनुमाना ॥
रामजी का प्यारा, सिया का दुलारा,
विपदा हरियो रे, प्रभु मन बसियो रे, वीर हनुमाना।
ना कोई संगी, हाथ की तंगी,
जल्दी करियो रे, प्रभु मन बसियो रे, वीर
अरजी हमारी, मरजी तुम्हारी,
हनुमाना ॥
कृपा करियो रे, प्रभु मन बसियो रे, वीर हनुमाना।।
भगवान् स्वयं श्रीहनुमानजी की जय-जयकार कर रहे हैं-
लाय सजीवन लखन जियाये ।श्री रघुबीर हरषि उर लाये।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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