रविवार, 12 जनवरी 2025

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग उन्नीस।। कृपासिंधु कर दास।।

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग उन्नीस।। कृपासिंधु कर दास।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं॥
हजारों बदन (सारा जगत) या स्वयं शेषनाग जिनका यशोगान करते हैं। हनुमानजी ने अपने यश का
त्याग कर दिया और भगवान् कहते हैं मैं तो तेरे यश का गुणगान करूँगा ही, मैं शेषनाग से भी तेरा गुणगान
कराऊँगा। हनुमानजी की प्रशंसा लक्ष्मणजी बहुत करते हैं। हालांकि लक्ष्मणजी को ईर्ष्या होनी चाहिए थी जब
प्रभु ने यह बोला था कि तुम मम प्रिय लक्ष्मण तै दूना। लेकिन उनको ईर्ष्या नहीं हुई क्योंकि वह उनके
साथ थे। लक्ष्मणजी गद्गद् हो उठे कि भगवान् का कोई इतना प्रिय भी हो सकता है काश मैं भी इतना प्रिय
होता। ईर्ष्या न हुई बल्कि आनन्द हुआ लक्ष्मणजी ने कहा हनुमान् तुम सचमुच हमसे ज्यादा भाग्यशाली हो ।
बोले क्योंकि मैं तो जानकीमाँ के साथ तेरह वर्ष से लगातार साथ-साथ था, तो भी मैं माँ का विश्वास नहीं
जीत पाया। माँ को मेरे ऊपर सन्देह हो गया तभी तो माँ ने भी विश्वास ठुकरा दिया। जब मैंने कहा था कि
प्रभु पर कभी संकट नहीं आ सकता। लेकिन तुम माँ के पास थोड़ी देर को ही गए थे लेकिन माँ को तुमने
भरोसा दिला दिया-
कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन विस्वास ।।
जाना मन क्रम बचन यह कृपासिन्धु कर दास ।।
जानकीजी समझ गयीं, मनसा, वाचा, कर्मणा यह भगवान् का दास है। इसलिए लक्ष्मणजी ने कहा हनुमान्
मैं यह घोषणा करता हूँ कि भगवान् का काम मेरे बिना तो चल सकता है लेकिन भगवान् का काम तुम्हारे
बिना नहीं चल सकता-
दुनिया चले न श्रीराम के बिना। रामजी चलें न हनुमान के बिना ॥
जब से रामायण पढ़ ली है एक बात मैने समझ ली है ।
रावण मरे ना श्रीराम के बिना लंका जले ना हनुमान के बिना ।।
लक्ष्मण का बचना मुश्किल था कौन बूटी लाने के काबिल था ।
लक्ष्मण बचे ना श्रीराम के बिना बूटी मिले ना हनुमान के बिना ।।
सीता हरण की कहानी सुनो-एक बार मेरी जबानी सुनो।
सीता मिले ना श्रीराम के बिना पता चले ना हनुमान के बिना ।।
रामजी चले ना हनुमान के बिना ।।
भगवान् को बहुत अच्छा लगा कि लखन प्रशंसा कर रहे हैं, क्योंकि साथ रहनेवालों में कभी-कभी साथी
के लिए ईर्ष्या पैदा हो जाती है। आज मेरे लखन के हृदय में भी हनुमान् के लिए अत्यधिक स्नेह है। ऐसा
कहकर प्रभु ने हनुमान् को पुनः कण्ठ से लगा लिया। कण्ठ से लगाने का अर्थ है कि हनुमान् तुम हमेशा मेरे
कण्ठ में रहोगे। तुम्हारी कण्ठ और जिह्वा पर मैं हूँ और मेरे कण्ठ और जिह्वा पर भी हमेशा तुम ही रहोगे। मेरे
कण्ठ से जब भी निकलेगा तुम्हारा ही नाम निकलेगा।।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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