मंगलवार, 14 जनवरी 2025

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग तैतीस।।कवन सो काज कठिन।।

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग तैतीस।।कवन सो काज कठिन।।
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||
गोस्वामीजी कहते है जितने प्रकार के भी दुर्गम कार्य हैं, जो मनुष्य की क्षमता के बाहर हैं वे हनुमानजी की कृपा से सुगमता से हो जाते हैं। आजकल ज्योतिष के प्रति बहुत रुझान बढ़ा है। समाज में टीवी पर भी देखेंगे, कम से कम सात-आठ बार चैनलों पर ज्योतिषी आते हैं। अच्छी बात है, ज्योतिष विज्ञान है। किसी संत से पूछा कि महाराज आजकल हमारे सारे ग्रह खराब चल रहे हैं क्या करें? साधु संतों को तो भगवान् पर ही भरोसा होता है। नक्षत्र, ग्रह अपना प्रभाव डालते हैं। डालेंगे ही, यह कोई ज्योतिष की आलोचना नहीं। ज्योतिष विज्ञान है, विज्ञान तथ्यों पर हुआ करता है। विज्ञान भावना का विषय नहीं, विज्ञान तथ्यों का परिणाम होता है। ग्रह तथ्य रूप में अपना परिणाम देते ही हैं। उनके निराकरण के उपाय भी हैं। विद्वान लोग इस बात को जानते हैं, लोग कराते भी हैं। लेकिन कोई न कराना चाहे उसके लिए क्या करें? चूंकि ग्रह आदि शान्त कराने के लिए कुछ न कुछ अर्थ आदि भी खर्च करना पड़ता है। कोई गरीब व्यक्ति नहीं करना चाहता
है तो बड़ी मुश्किल, वैसे गरीबों पर कोई ग्रह-नक्षत्र प्रभाव नहीं डालते। ग्रह आए होते तो वह गरीब ही काहे
को होता। वह आखिर ग्रहों में कुछ न कुछ तो अच्छे होते ही होगें। हमने सुना है कि एक आदमी पर शनि
आ गया। शनि पहले साढ़े सात फिर ढाई वर्ष ऐसे दो साढ़े सती शनि की आ गई। व्यक्ति बड़ा परेशान, एक
ज्योतिषी के पास पहुँचा। बोला, मेरे पास शनि की साढ़े साती दो बार आ रही है। क्या करूं मैं बड़े संकट में
हूँ। महाराज ने कहा इसके उपाय हैं। शनि का अनुष्ठान करा लो क्या करना पड़ेगा बोले ऐसे-ऐसे जप आदि ।
इतने पण्डित बैठेंगे उनका भोजन, दान-दक्षिणा और काली गाय दान कर दो तो शनि का प्रकोप चला जाएगा।
व्यक्ति ने कहा महाराज काली बकरी भी मेरे सामर्थ्य में नहीं है, काली गाय की तो बात छोड़ो। तो ऐसा करो
काली गाय के स्थान पर काला कम्बल दान कर दो। व्यक्ति ने कहा काला कम्बल होता तो ठंड में ठिठुरते
बच्चे को न उढ़ा देते। बोला ऐसा करो साढ़े सात मीटर काला कपड़ा दान कर दो। अरे महाराज आप मेरी
हालत देख रहे हो कि नहीं, यह फटी बनियान पहने आपके सामने खड़ा हूँ। साढ़े सात मीटर कपड़ा दान कैसे
करूंगा मैं? इससे अच्छा अपने लिए कपड़े न बनवा लूं। अच्छा तो फिर ऐसा करो, साढ़े सात किलो काले तिल
दान कर दो। कैसी बात करते हो सात छटांक की भी सामर्थ्य नहीं है, कैसे दान कर दूं? बोला और कुछ मत
करो तो काला धागा दान कर दो। अरे घर में धागा भी तो नहीं है। उसकी भी तो सामर्थ्य नहीं है। ज्योतिषी ने
कहा तो फिर तान दुपट्टा, जाकर सो जा। अब शनि तेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। जब धागा भी तेरे पास
नहीं तो फिर वह तेरा क्या बिगाड़ेगा। शनि भी उन्हीं का बिगाड़ता है, जिनके पास कुछ होता है। महाराज ने
कहा ग्रहों की चिंता मत करो। अगर तुम्हारे नौ ग्रह भी उल्टे हो गए तो चिन्ता मत करो। हनुमानचालीसा का
पाठ करो इससे क्या फायदा होगा बोले-
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
महात्माजी ने कहा अगर नौ ग्रह तुम्हारे विपरीत हो गए हैं तो हनुमानजी की कृपा से सब ठीक हो जाएंगे।
उन नौ ग्रहों के ऊपर एक विशिष्ट ग्रह हनुमानजी के हाथों में है। कौन से ग्रह, महाराज बोले, अनुग्रह और
यह अनुग्रह हनुमानजी के हाथ में रहता है। बाकी ग्रहों को ठीक रखने के लिए आपको बहुत कठिन परिश्रम
करना पड़ेगा लेकिन यह तो बहुत सुगमता से हो सकता है। बोले-जो यह पढ़े हनुमानचालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ हनुमानचालीसा रूपी सिद्ध मंत्र का जो नित्य जप करेंगे, उनके ऊपर हनुमानजी के अनुग्रह की कृपा
बहुत सुगमता से होगी और इस अनुग्रह से बड़े से बड़े दुर्गम काज हो जायेंगे, जो कोई सोच नहीं सकता।
इसलिए हनुमानजी के बारे में जामवंत जी ने कह दिया था कि कवन सो काज कठिन जगमाहीं। जो नहिं होइ तात तुम पाहीं ॥ऐसा कौन सा काम है। तुमने तो बड़े-बड़े काम किए हैं-काज किये बड़ देवन्ह के तुम । बीर महाप्रभु देखि बिचारो।।
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसो नहिं जात है टारो ||बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो॥
को नहिं जानत है जगमें कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥
चार सौ कोस के सागर को पार करने का साहस किसी में नहीं था। रावण को फटकारने की सामर्थ्य किसी में नहीं थी। अक्षय कुमार को मारना सामान्य बात नहीं थी। अक्षय को एक वरदान था, अंगद ने कहा था कि मैं जा तो सकता हूँ पर मुझे लौटकर आने में संशय है। बोले क्यों, बोले अक्षय और अंगद जी एक साथ पढ़ा करते थे। अंगदजी अक्षय को बहुत तंग करते थे। एक ऋषि ने अक्षय को वरदान दिया था कि अंगद जब तुम्हारे सामने आएगा तो इसकी सारी शक्ति तुम्हारे अन्दर आ जाएगी। अंगद, अक्षय के सामने कभी जाते नहीं थे वह इसीलिए लंका जाने में डर रहे थे कि यदि अक्षय से मेरी भेंट हो गयी तो मेरी शक्ति क्षीण हो जाएगी। और मैं लौट भी नहीं पाऊंगा। तो हनुमानजी ने पहले अक्षय का क्षय किया ताकि अंगदजी रावण को आकर फटकार सकें। जिस समय लक्ष्मणजी मूर्छित हो गए थे तो भगवान् का विलाप सुनकर सभी वानर विकल हो गए कि स्वामी की यह दुर्दशा है तो हमारी क्या होगी। उस समय जामवंत ने कहा था कि हनुमानजी-
कबन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं ॥
हनुमानजी ने कहा क्या करूं, प्रभु बोलो, चन्द्रमा में से अमृत निचोड़ लाऊं, पाताल लोक में जाकर नागों
के बीच से अमृत का घड़ा उठा लाऊं या मौत को ही मार डालूं, भगवान् कुछ बोले नहीं। एक संत कहते हैं।
कि भगवान् थोड़ी यहाँ चूक कर गए अगर सिर हिला देते कि हाँ ठीक है मौत को ही मार दो तो मौत का
झंझट ही खत्म हो जाता। जामवंत ने कहा कि लंका के भीतर जाओ और वहाँ से सुषैन वैद्य को ले आओ।
दुश्मन का नगर, रात्रि का पहर और हनुमानजी से कहा जा रहा है कि वहाँ से सुषैन वैद्य को ले आइए। यह
दुर्गम नहीं, दुर्गमतम कार्य है, लेकिन हुआ क्या?
अति लघुरूप धरेऊ हनुमंता। आनेहु भवन समेत तुरन्ता ॥
श्रीहनुमानजी गए दुश्मन के नगर में, युद्ध का समय चल रहा है। वैद्य आएगा कि नहीं, उस वैद्य के
घर के बाहर हनुमानजी पहुँच गए कितना सुन्दर नाम है सुषैन। सतगुरु वैद्य और सतगुरु का आयन ही सुख
का आयन होता है। जितना सद्गुरू से दूर रहोगे दु:ख के साथ रहोगे। सुखेन को लेने के लिए सद्गुरु हनुमान्
स्वयं गए हैं और भवन समेत उठा लाए। हनुमानजी ने सोचा कि युद्ध चल रहा है दुश्मन का वैद्य है चतुराई
कर सकता है। अगर मैं वैद्य को पकड़कर ले गया तो बहाना बना सकता है कि पहले क्यों नहीं बताया कि
मैं औषधि नहीं लाया वह तो वहीं छूट गयी, नर्सिंग होम में, फिर लंका में जाना पड़ेगा, जासूस पकड़ सकते
हैं। मुश्किल हो सकती है इसलिए मकान सहित उठा लाये। संत केवल एक व्यक्ति को ही भगवान् से नहीं
जोड़ता बल्कि पूरे परिवार को भगवान् से जोड़ दिया। अगर साधु के सम्पर्क में परिवार का एक भी व्यक्ति आ
गया तो साधु पूरे परिवार को भगवान् से जोड़ देता है। यही संत का कार्य है, धौलागिरी पर्वत पर जाकर वहाँ
से औषधि लाना, बीच में कालनेमि के रुप में मार्ग की बाधा खड़ी है। फिर उससे संघर्ष करना उसको मारकर
जाना फिर संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राण बचाना यह कार्य और कोई नहीं कर सकता था, बाकी तो
दुनियां में बहुत देवता हैं-
दुनिया में देव हजारों हैं बजरंग बली का क्या कहना ।।
जो कार्य कोई सोच न सके, जितने भी जगत् में दुर्गम काज हैं वे हनुमानजी की कृपा से, अनुग्रह से
बहुत सुगमता से हो जाते हैं। भगवान् के जितने कार्य थे जिनके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था लंका
में पहुँचना, जानकीजी को प्रभु का सन्देश देना, रावण को धमकाना, लंका को जलाना, सुषैन वैद्य को भवन
सहित वहाँ से ले आना, कालनेमि को मारकर धौलागिरी पर्वत पर पहुँचना, औषधि का पूरा पहाड़ उठा कर
लाना यह कोई सामान्य घटना नहीं है इसलिए जामवंत ने कहा था कि विभीषणजी अगर हनुमान जीवित हैं तो
सारी सेना जीवित है और यदि हनुमान नहीं है तो सारी की सारी सेना मृत मानी जाएगी।  ऐसे है हमारे श्री हनुमान जी।।
जय श्री राम जय हनुमान।।

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