मंगलवार, 14 जनवरी 2025

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग उन्चालीस।त्रिताप।।

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग उन्चालीस।त्रिताप।।
 त्रिताप बहुत बड़ा संकट है। दैविक, दैहिक, भौतिक तापा ये संकट हैं और इनसे मुक्ति का साधन क्या है? भगवान् का सुमिरन-राम राज बैठें त्रैलोका । हरषित भये गये सब सोका ।। रामराज कोई शासन की व्यवस्था का नाम नहीं है, रामराज मानव के स्वभाव की अवस्था का नाम है।समाज की दिव्य अवस्था का नाम है। आज कहते हैं कि हम रामराज लाएंगे तो फिर राम कहाँ से लाएंगे? नहीं-नहीं व्यवस्था नहीं वह अवस्था जिसको रामराज कहते हैं। रामराज्य की अवस्था क्या है-सब नर करहिं परस्पर प्रीती । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती ॥ यह रामराज्य की अवस्था है। व्यवस्था कैसी भी हो अगर, व्यक्तियों की और समाज की यह अवस्था।रहेगी तो शासन में कोई भी बैठो राज्य राम का ही माना जाएगा। राम मर्यादा है, धर्म है, सत्य है, शील है, सेवा है, समर्पण है। राम किसी व्यक्तित्व का नाम नहीं है, राम वृत्ति का नाम है, स्वरूप का नाम राम नहीं है, स्वभाव का नाम राम है। इस स्वभाव के जो भी होंगे सब राम ही कहलाएंगे। वेद की, धर्म की मर्यादा का
पालन हो, स्वधर्म का पालन हो, स्वधर्म का अर्थ हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, इसाई धर्म, बौद्ध धर्म का पालन
नहीं है। स्वधर्म का अर्थ है जिस-जिस का जो-जो धर्म है, पिता का धर्म, पुत्र का धर्म, स्वामी का धर्म, सेवक का धर्म, राजा का धर्म, प्रजा का धर्म, पति का धर्म, पत्नी का धर्म, शिक्षक का धर्म, शिष्य का धर्म। माने अपने-अपने कर्त्तव्य का पालन, जैसे सड़क पर अपनी-अपनी लाईन में यदि वाहन चलेंगे तो किसी प्रकार की टकराहट नहीं होगी, संघर्ष नहीं होगा और जब आप लाईन तोड़ देंगे जैसे मर्यादा की रेखा जानकीजी नेतोड़ दी थी। आखिर कितने संकट में फँस गयीं। कितना बड़ा युद्ध करना पड़ा जानकीजी को छुड़ाने के लिए।जरा सी मर्यादा का उल्लंघन जीवन को कितने बड़े संकट में फँसा सकता है जो रामराज्य में रहेगा हनुमानजी उसके पास संकट आने ही नहीं देंगे। क्योंकि रामराज्य के मुख्य पहरेदार तो श्रीहनुमानजी हैं। तीनों कालों का संकट हनुमानजी से दूर रहता है। संकट होता है शोक, मोह और भय से भूतकाल का भय ऐसा क्यों कर दिया, ऐसा कर देता तो मोह होता है। वर्तमान में जो कुछ सुख साधन आपके पास हैं यह बस बना रहे इसको पकड़कर बैठना यह मोह और भय होता है। भविष्यकाल में कोई छीन न ले कोई लूट न ले, भविष्य का भय । हनुमानजी सब कालों में विद्यमान हैं-
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
हनुमानजी तो अमर हैं, चारों युगों में हैं और सम्पूर्ण संकट जहाँ छूट जाते हैं शोक, मोह, भय, वह है
भगवान् की कथा। कथा में हनुमानजी रहते हैं। अगर न छूटे तो हनुमानजी छुड़ा देंगे। बिल्कुल मानस के अंत
में पार्वतीजी ने प्रमाणित किया है-सुनि भुसुंडि के बचन सुहाये। हरषित खगपति पंख फुलाये ॥ तीनों तब अगर दूर चले जाते हैं, छोड़ देते हैं मनुष्य को तो वह श्रीराम की कृपा से मोह का नाश होता है सत्संग से-बिनु सतसंग न हरि कथा, तेहि बिनु मोह न भाग । मोह गएँ बिनु राम पद, होय न दृढ़ अनुराग ।भगवत् कथा, सत्संग यह मोह का नाश करती है। संत-मिलन, संत दर्शन शोक को दूर करता है। तोहि देखि शीतल भई छाती, हनुमानजी मिले तो जानकीजी का हृदय शान्त हो गया, शीतल हो गया। मिले
आज मोहे राम पिरीते, श्रीभरतजी बोले श्रद्धा से भय का नाश होता है। आपके मन में किसी के प्रति श्रद्धा
है तो आप उससे भयभीत नहीं होंगे। श्रद्धा बिना धर्म नहिं होई । बिनु महि गन्ध कि पावउ कोई ॥ श्रद्धा माने भवानी, भगवतीजी की पूजा माने श्रद्धा की पूजा है। श्रद्धा कहते हैं शुभ की भूख को, शुभ और बढ़े और बढ़े, जो कुछ पूजा-पाठ कर रहा हूँ वह और बढ़े, जो कुछ दान कर रहा हूँ वह और बढ़े, जो सेवा कर रहा हूँ और करूँ, यह जो शुभ की भूख है इसी का नाम भवानी है, इसी का नाम श्रद्धा है। जीवन में जितनी श्रद्धा बढ़ेगी उतना ही भय का नाश होगा।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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