मंगलवार, 14 जनवरी 2025

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग सैंतीस।।रोग।।

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग सैंतीस।।रोग।।
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥
रोग किसे कहते हैं? रोग कहते हैं मानसिक बीमारियों को मानस रोग कछुक मैं गाई शारीरिक बीमारियां
होती हैं, मानसिक रोग होते हैं और ये बहुत विचित्र होते हैं। शरीर में रोग बाद में आता है, मन में रोग पहले
आ जाता है। मन के रोग भगवान् हनुमानजी की उपासना से ही दूर होते हैं। मन के रोग- काम, क्रोध, लोभ,
मोह, मद, मत्सर हैं। ये सभी रोग हनुमानजी की कृपा से दूर होते हैं। जब भी जीव कामासक्त होता है तो अन्धा
हो जाता है। नारदजी जैसे को भी इसने पागल कर दिया। लोभ जब मनुष्य के जीवन में आता है तो व्यक्ति
कितना गिर सकता है और क्रोध जब आता है तो इष्ट का भी अनिष्ट करता है। ईर्ष्या, मद, लोभ, मोह के
कारण सारे संसार में आज अशान्ति है, इसका कारण और कुछ नहीं, यह मानसिक रोग ही है। वह तो औषधि
प्रयोग के द्वारा ठीक नहीं होते हैं। वैसे भी हनुमानजी वेदों के ज्ञाता हैं और वेद में आयुर्वेद भी है। आयुर्वेद
का जितना ज्ञान हनुमानजी को है उतना किसी को नही है, क्योंकि संजीवनी बूटी को कोई पहचानने वाला ही
नहीं था। हनुमानजी ही पहचानते थे लेकिन चूंकि रावण को मालूम चल गया था इसलिए रावण ने पूरे पहाड़
के शिखर पर आग लगवा दी थी तो पहचानना कठिन हो रहा था। हनुमानजी पूरे पहाड़ को ही उखाड़ लाए।
अन्यथा आयुर्वेद की समस्त जानकारी हनुमानजी को है। इसलिए मैं निवेदन करता हूँ यदि मानसिक रोगों से
मुक्ति चाहते है तो हनुमानजी की शरण में आओ, केवल हनुमानचालीसा का पाठ करो
जो यह पढ़े हनुमान चालिसा होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
हनुमानजी का सतत् ध्यान, निरन्तर ध्यान करें। हनुमानजी का सतत् ध्यान माने ज्ञान की उपासना, प्रकाश
की उपासना, हनुमानजी का ध्यान माने हर समय भगवत नाम का सुमिरन, भगवान् की, धर्म की, सेवा यह
सतत सुमिरण है।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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