मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग अड़तीस।।शनि।
मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग अड़तीस।।शनि।
शनि को हमारे यहाँ संकट कहते हैं। एक बार हनुमानजी पहाड़ की तलहटी में बैठे थे। शनि आ गया हनुमानजी के सिर पर, हनुमानजी ने सिर खुजाया लगता है कोई कीड़ा आ गया। हनुमानजी ने पूछा तू है कौन?।बोले, मैं शनि हूँ, मैं संकट हूँ। मेरे पास क्यों आया है? बोले मैं अब आपके सिर पर निवास करूँगा। अरे भले।आदमी, मैंने ही तुझे संकट से छुड़ाया था, मेरे ही सिर पर आ गया। बोले हाँ क्यों छुड़ाया था आपने, इसका।फल तो आपको भोगना पड़ेगा। अच्छा कितने दिन रहना है? शनि बोला साढ़े सात साल और अगर अच्छी।खातिर हो गयी तो ढाई साल और हनुमानजी ने कहा भले आदमी किसी और के पास जा । मैं मजदूर आदमी।सुबह से शाम तक सेवा में रहता हूँ, मुश्किल पड़ जाएगी, तू भी दुःख भोगेगा मुझे भी परेशान करेगा। शनि बोला नहीं मैं तो नहीं जाऊँगा। हनुमान जी बोले नहीं मानेगा? चलतो कोई बात नहीं। हनुमानजी ने एक पत्थर।उठाया और अपने सिर पर रखा। पत्थर शनि के ऊपर आ गया। शनि बोला यह क्या करता है? बोले माँ ने।कहा था कि चटनी के लिए एक बटना ले आना वह ले जा रहा हूँ। तो हनुमानजी ने जैसे ही पत्थर को उठाकर।मचका दिया तो शनि चीं बोलने लगा। दूसरी बार किया तो बोले क्या करता है? बोले चिन्ता मत कर। शनि बोले छोड़-छोड़। हनुमानजी बोले नहीं अभी तो साढ़े सात मिनट भी नहीं हुए तुझे तो साढ़े सात साल रहना।है। जब दो-तीन मचके दिए तो शनि ने कहा भैय्या मेरे ऊपर कृपा करो बोले ऐसी कृपा नहीं करूँगा। बोले वरदान देकर जा, शनि का ही दिन था। हनुमानजी ने कहा कि तू मेरे भक्तों को सताना बंद कर। तब शनि ने कहा कि हनुमानजी जो भी शनिवार को आपका स्मरण करेगा आपके चालीसा का पाठ करेगा मैं उसके यहाँ।नहीं, उसके पड़ौसी के यहाँ भी कभी नहीं जाऊंगा। संकट उसका दूर हो जाएगा। फिर शनि ने कहा कि एक कृपा आप कर दीजिए। क्या है? बोले आपने इतनी ज्यादा मेरी हड्डियां चरमरा दी हैं, बोला थोड़ी तेल मालिश।हो जाए तो बड़ी कृपा हो जाए। हनुमानजी ने कहा कि ठीक है मैं अपने भक्तों को कहता हूँ कि शनिवार के दिन जो शनि को तेल लगाएगा उसके संकट मैं दूर करूँगा । तबसे यह चौपाई आई-संकट ते हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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