मंगलवार, 14 जनवरी 2025

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग छत्तीस।।भूत-पिशाच।।

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग छत्तीस।।भूत-पिशाच।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै ॥
भूत पिशाच के पास आने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। जब भगवान् ने पद देने का प्रयत्न किया था तब
हनुमानजी ने कहा महाराज पद के साथ भूत जुड़ा है और भूत हमारे साथ आ नहीं सकता। भूत-पिशाच अंधेरे
में रहना पसंद करते हैं और अंधकार, अज्ञान का प्रतीक होता है और अंधकार और अज्ञान वहाँ होता है जहाँ
भगवत चर्चा नहीं होती, जहाँ भगवान की कथा नहीं होती, जिस घर में भगवत चर्चा न हो, जिस घर में शाम
को देवताओं के नाम का दीपक न जलता हो, जिस घर में कीर्तन न होता हो। प्रभु की मंगलमय आरती न
गायी जाती हो उस घर में भूत-पिशाचों का वास हो जाता है। चूंकि भूत अंधेरे व अज्ञान में रहना पसंद करते
हैं। श्रीहनुमानजी तो वहाँ रहते थे।
यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकान्जलिम् ॥
जहाँ जहाँ कीर्तन होता श्रीराम का।
लगता है पहरा वहाँ वीर हनुमान का ।।
रामजी के चरणों में इनका ठिकाना।
छम छम नाचे देखो वीर हनुमाना ॥
आपने कई घरों के बारे में सुना होगा कि यह भूत बंगला है, यह भूत घर है। क्यों, वर्षों हो गए बंद
पड़ा है। दीपक नहीं जलता, तुलसीजी नहीं है, प्रभु का कीर्तन नहीं होता, आरती नहीं होती है, प्रभु के नाम
का गुणगान नहीं हुआ, कोई चित्रपट नही है, तो भूत ही तो रहेगा। ज्ञान के प्रकाश में जहाँ हनुमानजी आ जाएं
तो वहाँ भूत-पिशाच नहीं आ सकते हैं। पिशाच का दूसरा अर्थ है कि जो हमने भूतकाल में बुरे कर्म किए हैं,
वह पिशाच बनकर हमारे पीछे लग जाते हैं। बुरे कर्मों की जो ग्लानि है। किए गए बुरे कर्म जो भीतर हमारी
यादों में समाए रहते हैं वह हमारे पीछे पिशाच बनकर चलते हैं वह शान्ति नहीं लेने देते। वह हमको चैन से
नहीं रहने देते। वह हमको छुपे छुपे रहने को मजबूर करते हैं। हनुमानजी यदि हमारे साथ हों तो बुरे काम
कौन कर पाएगा और अगर उन पिशाचों को हनुमानजी का नाम सुना दो तो हनुमानजी उनको हमारे पास नहीं
आने देते। दूसरा भूत-पिशाच तो भगवान् शिव के गण हैं। और इनको तो राम नाम बहुत प्रिय है। इसलिए जो
भी इनको राम-नाम सुनाता है शिव उनके पास भूत-पिशाचों को आने ही नहीं देते। भूत कौन है? हम लोग
नवरात्रि में पूजा किसकी करते हैं-
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः ॥
भूत तो भगवान् शिव पार्वतीजी का वैभव है लेकिन थोड़ा भयानक है। शिव-पार्वती उनको हमारे पास
आने नहीं देते। दूसरे सुख और समृद्धि की जो आसक्ति है, सुख की जो आसक्ति है। यही भूत-प्रेत है और
कोई भूत-प्रेत नहीं है। पिशाच कौन है? गोस्वामीजी ने परिभाषा दी है-
कहहिं सुनहिं अस अधम नर। ग्रसे जे मोह पिसाच ॥
यह मोह पिशाच हैं, यह मेरा मेरा, इसके बिना मैं जीवित नहीं रह सकता। यह जो मोह का बन्धन है।
यह पिशाच है अपने को हम भूत हैं या पिशाच हैं, कौन बोले-
पाखण्डी हरि पद विमुख। जानहिं झूठ न साँच ॥
यह भूत पिशाच, पाखण्डी, हरिपद विमुख, जो झूठ और सच का विवेक नहीं जानता, जो कामासक्त
हैं वे भूत-पिशाच हैं। गोस्वामीजी ने लिखा है-
देव दनुज किन्नर नर व्याला । प्रेत भूत पिशाच भूत बेताला ॥
यह सब काम आ सकता है। जैसे प्रकाश के सामने अंधेरा टिक नहीं सकता ऐसे हनुमानजी के सामने
ज्ञान के सामने, प्रकाश के सामने यें भूत-प्रेत आ नहीं सकते। ऐसे  है हमारे श्रीहनुमानजी।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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