मंगलवार, 14 जनवरी 2025

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग चालीस।।मनोरथ।।

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग चालीस।।मनोरथ।।
और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥
और मनोरथ माने केवल भगवान् का दर्शन नहीं बंगला, कोठी, कार जो कुछ भी आपको प्राप्त करना हो
आठ सिद्धि और नौ निधियाँ। भक्त लोग सिद्धियों से बहुत दूर रहते हैं। इसलिए हमारा इससे ज्यादा मतलब नहीं। क्योंकि भक्त तो शुद्ध होने का प्रयत्न करते हैं, सिद्ध होने का नहीं। यदि जादूगरी करनी हो तो सिद्धि प्राप्त करो। परमात्मा को प्राप्त करना हो तो शुद्धि प्राप्त करो।
निर्मल मन जन सो मोहि पावा ।
मोहि कपट छल छिद्र कपट न भावा ॥
अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व यें आठ प्रकार की सिद्धियाँ और
पद्म, महापद्म, शंख, मकर कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील, और खर्ब ये नौ प्रकार की निधियाँ हैं जिनसे अपने
को कोई लेना-देना नहीं-
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥
रसायन औषधि को सिद्ध करता है और यह औषधि बहुत-बहुत कठिन रोगों का नाश कर देती है। राम-नाम
का जो यह सिद्ध रसायन है वह हर रोग को दूर करता है। श्रीहनुमानचालीसा ही वह एक रसायन है।
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुःख
हनुमानजी का भजन करो भगवान् प्राप्त होते हैं।
बिसरावै ॥ अंतकाल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ॥ सभी सुखों को सब देवता प्रदान नहीं कर सकते। श्रीहनुमानजी सभी सुखों को प्रदान करनेवाले हैं। संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥
विपरीत परिस्थितियों में जब सारा संसार हमारा विरोधी हो जाये, अपने पराये हो जायें, प्रगति का मार्ग।अवरुद्ध हो जाये, और चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार दिखायी दे उस समय में भी श्रीहुनमानजी हमको सहारा
देते हैं। हमारे बिगड़े हुए कामों को बनाते हैं इसलिए हमें मार्ग की कठिनाईयों को देखकर रुक नही जाना है।
जीवन में चाहे कितनी ही कष्ट कठिनाईयाँ आ गई हो, सिर पर संकटों के बादल घिर आये हो हनुमानजी की
कृपा से और उनके सुमिरण से वे पल भर में दूर हो जायेगें। उन पर भरोसा रखें और धैर्य धारण करें-
दुनियाँ रचने वाले को भगवान् कहते हैं।
संकट हरने वाले को हनुमान् कहते हैं।
हो जाते हैं जिसके अपने पराये, हनुमान उनको कंठ लगायें।
जब रूठ जाये संसार सारा, बजरंगबली तब देते सहारा ॥
अपने भक्तों का बजरंगी मान करते हैं।
संकट हरनेवाले को हनुमान् कहते हैं ॥ १ ॥
दुनियाँ में काम कोई ऐसा नही है,
बजरंग बली हनुमान के जो वश में नही हैं।
जो चीज मांगो वो पल में मिलेगी,
झोली ये खाली खुशियों से भरेगी ।।
सच्चे मन से जो भी इनका ध्यान करते हैं।
संकट हरनेवाले को हनुमान् कहते हैं ॥ २ ॥
और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्ब सुख करई ।
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥
इनके हृदय में हरदम भगवान् रहते हैं।
संकट हरनेवाले को हनुमान् कहते हैं ॥३॥
हनुमानजी से बड़ा कौन गुरु हो सकता है। गुरु के रूप में श्रीहनुमानजी के चरणों का वन्दन करें।
गोस्वामीजी ने आगे लिखा है-
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बन्दि महा सुख होई॥
सत बार का लोग कई अर्थ लगाते हैं। कोई सौ बार लगाता है, कोई सात बार लगाता है लेकिन इसको संख्या में बांधना ठीक नहीं। मेरा मन कहता है न सात बार, न सौ बार, सत बार माने, सतत् बार, माने हर।दिन। कभी खण्डित न हो, हनुमान चालीसा सातत्य के साथ एक दिन भी नागा नहीं। सतत् पाठ करें- जो यह पढ़े हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
कभी भी पढ़ें, कैसे भी पढ़ें, कहीं भी पढ़ें, बालक पढ़ें, बूढ़े पढ़ें, बिटिया पढ़ें, बेटे पढ़ें, स्त्री पढ़ें, पुरुष पढ़ें, शुद्ध पढ़ें, अशुद्ध पढ़ें, सिद्धि प्राप्ति होगी ही क्योंकि भगवान् शिव इसके साक्षी हैं- होय सिद्धि साखी गौरीसा॥।
गोस्वामीजी कहते हैं कि जो श्रीहनुमानचालिसा का पाठ करेंगे वे भगवान् के प्रिय होंगे। भगवान् उनके
हृदय में वास करेंगे ऐसे-
पवनतनय संकट हरन । मंगल मूरति रूप ॥
राम लखन सीता सहित। हृदय बसहु सुर भूप ॥
 हनुमानजी हमारे सब प्रकार के संकटों को मुक्त
करें और रामरसायन प्रदान कर हमको भगवान् के चरणों में लेकर चलें। ऐसी विनम्र विनती श्रीहनुमानजी से
करते हैं।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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