रविवार, 12 जनवरी 2025

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग पंद्रह।।हनुमानजी का सूक्ष्म रूप।।

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग पंद्रह।।हनुमानजी का सूक्ष्म रूप।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
हनुमानजी जब जानकीजी के पास आए, माँ के पास आए, तो बहुत छोटे, सूक्ष्म बनकर । भक्ति तो
स्वयं विराट है लेकिन मिलती दैन्य को ही है। चैतन्य महाप्रभु की उद्घोषणा बिल्कुल नीच, छोटा, तिनके
जैसा लघु अति दैन्य दिखाई न दे, भक्ति वह कर सकता है जो कभी किसी को दिखाई न दे। भजन करते
जो दिखाई देता है लेकिन लोग देखें कि हम भजन कर रहे हैं तो लोगों को चिन्ता ज्यादा रहती है। भगवान्
हमको देख पा रहे हैं या नहीं यह चिन्ता हट जाती है। फिर चर्चा लोगों में होती है कि बड़े भजनानन्दी हैं।
चर्चा भगवान् में नहीं होती, जानकीजी माँ हैं, भक्ति हैं, शान्ति हैं, शुद्धि हैं। कई प्रकार से आप इसका दर्शन
करेंगे। भक्तिदेवी के सामने हमेशा छोटे बनकर रहो। जितने छोटे बन जाएंगे, उतने ही भक्ति के निकट पहुँच
जाएंगे। मनुष्य का अहंकार मनुष्य से बुरे कार्य करा देता है। कौन हमको रोक सकता है, किसी की हैसियत
ही क्या है। ऐसे में ही होता है। जब तक व्यक्ति अपने को छोटा मानता है तब तक अपने को दुर्गुणों से बचा
सकता है। जब व्यक्ति अपने को बड़ा अहंकारी और सर्वज्ञ मान लेता है वह फिर गढ्ढों में गिरना प्रारम्भ कर
लेता है। जो अपने को छोटा मान ले वह शांत रहेगा। जो बड़ा मानेगा वह अशांत रहेगा। कोई बैठने को न कहे
इसी से माथा ठनक जाएगा, पारा चढ़ जाएगा। कुर्सियां पड़ी हैं वह खड़ा क्योंकि वह इंतजार कर रहा है कि
कोई कहेगा हाथ जोड़कर कि आइए बैठिए। जिसने अपने को छोटा कर लिया वह शुद्ध भी रहेगा और शान्त
भी। भक्ति तो बिल्कुल किसी को पता न लगे। किसी के सामने नहीं रोया जाता है जो सामने रोया जाता है।
वह दिखावा है। एकांत में भगवान् के लिए आँसू बहाना तो हनुमानजी छोटे बन गए। जानकीजी माँ हैं माँ के
सामने कभी बड़े मत बनो और माँ के सामने कभी बड़े होकर मत जाओ, बिल्कुल छोटे बने रहो क्योंकि माँ
के सामने तुम सदा छोटे ही रहोगे। माँ ने ही तो बालक बनाया है तुमको। अरे इस देश की माताओं की ही तो
ताकत है जिन्होंने ब्रह्म को भी बालक बना दिया। यह अधिकार भगवान् ने किसी को नहीं दिया केवल भारत
की माता को दिया है। अनन्त कोटि ब्रहमाण्ड का नायक विराट भी सूक्ष्म बन गया। माँ ने कहा कि भगवान्
से छोटे हो जाइए भगवान् छोटे होते चले गए-
कीजै शिशु लीला अतिप्रिय शीला ॥
शिशु लीला माने रोओ, ब्रह्म को भी जो रूलाने की ताकत रखती है वह भारत की माँ है। माँ के सामने
कभी बड़े मत बनो और माँ कभी आपको बड़ा समझेगी भी नहीं। आप कितने भी बड़े हो जाइए, माँ आपको
लल्ला ही कहेगी। माँ कभी भी आपको जी कहकर नहीं बुलाएगी। चाहे आप जितने भी जी हो जाएं संसार में,
माँ आपको आपका बचपन का नाम लेकर, बिट्टू, गुड्डू कहकर ही बुलाएगी और इसी में आनन्द है। अगर
माँ भी तुमको जी कहकर आदर देकर बुलाए तो इसका अर्थ है कि माँ से दूरी बढ़ गयी, फिर ममत्व गया ।
व्यवहार जग गया तो माँ के सामने कभी बड़े मत बनो। डोंगरे जी महाराज सुनाया करते थे कि एक परिवार में
हम गए, बेटा करीब इण्टर में पढ़ता होगा। डोंगरेजी महाराज बोले हमने उनसे पूछा बेटा अपनी माँ के पैर छूते हो कि नहीं, माँ के पैरों में प्रणाम करते हो कि नहीं। बोला, छोटा था तब तो करता था अब नहीं, क्यों? माँ
कुछ समझती नहीं। डोंगरेजी महाराज बोले मुझे इतना क्रोध आया। मैने कहा माँ क्या तुझे कलेक्टर समझेगी।
माँ तुझे क्या समझेगी और तू माँ के सामने है क्या? डोंगरे जी बहुत कष्ट भरी वाणी में बोला करते थे कि
जिस माँ की गोद में तूने आँख खोली है उसी माँ को तू आँख दिखाता है। तुझे शर्म नहीं आती है। समर्थ गुरु
स्वामीरामदासजी सिद्धसंत हुए हैं। इनकी सिद्धियों की, चमत्कार की बड़ी चर्चा महाराष्ट्र में होने लगी। अनेक
वर्ष पहले घर छोड़ कर चले गए। बेटे की याद में माँ रोते-रोते अँधी हो गयी। माँ तो माँ है। शंकराचार्य जैसे
विरक्त संत भी माँ की अन्त्येष्टि करने आये माँ भगवान् से भी बड़ी हुआ करती है जो भगवान् को भी बना
दे उस माँ से कौन बड़ा हो सकता है? रामदासजी की भी इच्छा हुई कि चलो माँ के दर्शन कर आएं। उस
समय रामदास जी महाराज की सिद्धि प्रसिद्धि बहुत हो चुकी थी तो द्वार पर आकर उन्होंने माँ को आवाज
दी माँ भिक्षाम देहि, दोनों दम्पत्ति अन्दर बैठे थे तो पिता ने कहा कोई साधु है क्या? माँ ने कहा साधु नहीं,
मुझे लगता है कि मेरा रामू आ गया है। पिता ने कहा बावली हो रही है? रामू को चालीस साल हो गए घर
से गए हुए। हमने दूसरी बार उसका नाम भी नहीं जाना, सुना है, कहाँ इधर आएगा? माँ हूँ न मैं, उसकी
आवाज पहचानती हूँ। अन्धी माँ भी अपने बेटे की आवाज पहचानती है, रामू है। माँ रामू-रामू करके दौड़कर
आयी और स्वामी रामदासजी ने प्रणाम किया, माँ के चरणों से लिपटे। माँ ने यह नहीं कहा कि मैंने सुना है।
तू बहुत सिद्ध हो गया है। ऐसा नहीं कहा। माँ ने कहा, रामू मैंने सुना है कि तू बड़ा जादूगर हो गया है। तेरी
जादूगरी की चर्चा बहुत सुनने को मिलती है। अरे बेटा, मेरे ऊपर भी जादू कर दे मेरी आँखें अंधी हो गई हैं।
मैं तुझे देख सकूं मेरे ऊपर भी जादू कर दे और ऐसी कथा आती है कि स्वामी जी ने फिर दोनों हाथों से माँ
की आँखों को स्पर्श किया और माँ की ज्योति वापस आ गयी तो बेटा कितना बड़ा भी सिद्ध होगा पर माँ
के लिए तो वह जादूगर ही है। माँ तो भगवान् की भी पिटाई कर सकती है और बंधन में बांध सकती है।
इसलिए अगर छोटे बनने की, विनम्रता की कला आ गयी तो राक्षसों की नगरी में भी हमको संत और भक्ति
के दर्शन हो सकते हैं। आखिर राक्षसों की नगरी है लंका, लेकिन हनुमानजी को संत मिले कि नहीं। आखिर
विभीषण कौन है, लंकिनी कौन है, त्रिजटा कौन है? क्या इनको संत नहीं मानेंगे। हनुमानजी को लंका में भी
संत मिल गए और हमको वृन्दावन में भी दिखाई नहीं दिए। हम पूरा जीवन इसी तर्क-वितर्क में हैं कि कौन
सिद्ध है, शुद्ध है, बड़े हैं, प्रसिद्ध हैं किनका दर्शन करें?
अरे कदम-कदम पर आगे पीछे संतों में बैठे हो, फिर कहते हैं कोई संत हो तो बताइए। जब तुम्हारी
आँखें ही अंधी हैं तो तुमको दिखेगा कैसे? संतों को मत देखो, अपने भीतर की श्रद्धा को देखो, तुम्हारे भीतर
श्रद्धा की खिड़की है तो संत के दर्शन होंगे। खिड़की बंद हो गयी तो सूर्य का क्या दोष, सूर्य तो उदित है।
दरवाजा ही बंद है तो इसके लिए क्या करें। हमारा अहंकार संत मिलन नहीं होने देता, हमारा झूठा बड़प्पन संतों के दर्शन नहीं होने देता। चार शब्द अंग्रेजी के आ गए, पागल हो गए बस अब हमारे बराबर कोई योग्य नहीं
क्योंकि हम अपनी गिटपिट-गिटपिट से उस सरल साधु के हृदय को तोलना व नापना चाहते हैं। तुम्हारा क्या
लेना-देना, तुम आदर दो, न दो, मानो तो, न मानो तो, उस पर क्या अन्तर पड़ने वाला है लेकिन तुम जीवन
भर अभागे रह जाओगे क्योंकि तुमको कृपा नहीं मिलेगी। तुम केवल अकड़ और क्रोध लेकर इस दुनिया से चले जाओगे। यदि अकड़कर रहोगे तो भार हमेशा सिर पर ढोओगे, शीश झुकाओ तो भार नीचे गिर जाएगा। जब हनुमानजी का जानकीमाँ से वार्तालाप होने लगा तो माँ से कहा कि माँ चिंता मत करो, धैर्य धारण करो।भगवान् आएंगे और आपको आदर सहित यहाँ से ले जाएंगे। माँ ने मन में सोचा कि बंदर बोलता अधिक है।
जरा सा बंदर है और बातें बहुत बड़ी-बड़ी करता है। माँ ने पूछा क्यों हनुमान-
हैं सुत कपि सब तुम्हहिं समाना। जातुधान अति भट बलवाना।। माँ ने पूछा क्या भगवान् के पास जितने भी बन्दर हैं सब तुम्हारे जैसे ही हैं क्या? हनुमानजी ने कहा
नहीं माँ हमारे जैसा कोई नहीं है। उन सबमें हम ही बड़े हैं बाकी तो सब छोटे छोटे हैं। माँ ने कहा तो फिर
हो गया काम, हमारी मुक्ति भी हो गई और तुम्हारे प्रभु ने लंका भी जीत ली? हनुमानजी ने पूछा माँ ऐसा क्यों
बोलती हो, क्या आपके मन में कुछ संदेह है, बोली हाँ-
मोरें हृदय परम सन्देहा । सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा ॥ यहाँ सभी राक्षस बहुत बड़े-बड़े हैं और तुम सब छोटे-छोटे इसलिए मेरे मन में संदेह है। हनुमानजी ने
माँ को जयश्रीराम कहा और-
कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा ॥
एकदम हनुमानजी अति विराट हो गए, माँ ने आँखें बंद कर लीं। बस बस सीता मन भरोस तब भयऊ,
पुनि लघुरुप पवनसुत लयऊ। पुनः लघु रूप जानकीजी प्रसन्न हो गईं। माँ ने कहा कि जब तू इतना विराट,
इतना बड़ा है तो तू मेरे पास छोटा क्यों आया। हनुमानजी ने कहा माँ बेटा कितना भी बड़ा हो जाए माँ को हमेशा
छोटा ही दिखाई देता है। सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥ श्रीहनुमानजी माँ
के सामने गए सूक्ष्म रूप धारण कर और जब बुराई के सामने गए तो विराट रूप धर कर हम बुराई के सामने
कई बार छोटे हो जाते हैं। बड़ों के सामने छोटे बनो, श्रेष्ठ के सामने लघु बनो, लेकिन बुराई के सामने छोटे हो
जाओगे तो बुराई सटक लेगी आपको। बुराई के सामने अपने को इतना बड़ा कर लो कि वह आपके ऊपर प्रहार
तो क्या देख भी न सके आपकी ओर, जब हनुमानजी लंका जला रहे थे तो उस समय कैसा दृश्य था-
बालधी बिसाल बिकराल, ज्वाल ज्वाल मानौं,
लंक लीलिबे को काल रसना पसारी है ॥
कैंधौ ब्योमबीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु ।
बीररस बीर तरवारि सो उघारी है ।
'तुलसी' सुरेस चापु कैंधौ दामिनी कलापु,
कैंधों चली मेरु ते कृषानु सरि भारी है ।।
देखें जातुधान जातुधानी अकुलानी कहैं,
काननु उजार्यो अब नगरु पजारि है ।
पूरे आकाश में अग्नि की लपटें खड़ी हो गयीं, बुराई के सामने जब संघर्ष करना हो तो इतने प्रबल हो
जाइए कि बुराई का साहस ही न हो। हनुमानजी को जब आग लगाने की आज्ञा हो गयी तो हनुमानजी भी
प्रसन्न हो गए। मैं समझ गया कि शारदा प्रसन्न हो गयीं। क्योंकि रावण की जिह्वा पर आकर बैठ गयी। जब
त्रिजटा ने कहा था कि सपने वानर लंका जारी मैं सोच रहा था कि कहाँ से व्यवस्था करूंगा। वाह माँ शारदा
बड़ी तूने कृपा की, प्रभु के कारण तूने बड़ा हाथ बंटाया।
ऐसे श्री हनुमानजी जो हर जगह अपने को छोटा मानते हुवे सदा बड़ा काम ही करते हैं,अपनी कृपा हम सब पर बनाए रखें।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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