रविवार, 12 जनवरी 2025

मानसचर्चा ।। श्रीहनुमानजी भाग चौदह।।रामकथा और हनुमानजी।।

मानसचर्चा ।। श्रीहनुमानजी भाग चौदह।।रामकथा और हनुमानजी।।
भरहिं निरन्तर होहिं न पूरे तिन्ह के हिय तुम्ह कहुँ गृह रुरे
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमाँश्च विभीषण।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ।
जब तक राम कथा जीवित रहेगी तब तक श्रीहनुमानजी रहेंगे। हम भी इसी लोभ से गाते रहते हैं। परिणाम
क्या होता है कथा का, हमको मालूम नहीं, लोभ यही है जब तक कथा कहते रहेंगे श्रीहनुमानजी हमारे बीच में
रहेगें। ध्रुवजी ने भी भगवान् से यही प्रार्थना की थी। ध्रुवजी ने कहा था कि प्रभु मुझे पिता की गोद न मिलने
के कारण मेरे मन में इच्छा थी कि मुझे एक बार पिता की गोद मिले तो मुझे आपकी गोद मिली। यह मेरे
बालकपन की जिद थी लेकिन भगवन् अब मुझे एक वरदान दे दीजिए। भगवान् ने पूछा क्या चाहिए, तो ध्रुव
जी ने बड़ी अनोखी चीज माँगी। भगवान् ने नारद, ब्रह्मा, विष्णु सनकादिक सभी को बुला लिया और कहा कि
देखो इस बालक की माँग तो देखो। भगवन्, यही इच्छा है कि संतों के चरणों में बैठकर सदा आपकी कथा
सुनता रहूँ, बस इतना वरदान दे दो। भगवान् ने पूछा कि कथा को चाहते हो हमको क्यों नहीं चाहते हो। ध्रुवजी
ने कहा प्रभु नाराज मत होईये, आपसे तो बड़ी जल्दी ऊब हो जाती है। आपका दर्शन थोड़ी देर का तो अच्छा
लगता है, उसके बाद आपसे ऊब होने लगती है लेकिन आपकी कथा से कभी तृप्ति नहीं होती है-
भरहिं निरन्तर होहिं न पूरे तिन्ह के हिय तुम्ह कहुँ गृह रुरे।।मन करता है कि सुनते रहें, सुनते रहें कान कभी थकते नहीं हैं। बिहारीजी का बहुत सुन्दर श्रृंगार है फूल बंगले में
फूलों में सज रहे हैं श्री वृन्दावन बिहारी ॥
और संग में सज रही हैं वृषभानु की दुलारी ॥
फूलों में सज रहे हैं....
कितनी देर दर्शन करोगे, कितनी देर खड़े रहोगे, थक जाओगे पुजारी जी हटा देंगे। व्यवस्थापक बाहर कर
देंगे, लेकिन भगवान् की कथा में तीन-तीन घण्टे बैठे हैं जो तीन मिनट कहीं नहीं बैठ सकते वह तीन घण्टे कथा
में बैठे हैं क्यों? क्योंकि कथा का आकर्षण है। यह आवश्यक नहीं कि जहाँ भगवान राम हों वहाँ भगवान् की कथा हो ही। लेकिन यह निश्चित है कि जहाँ भगवान् की कथा होती है, वहाँ भगवान् अवश्य होंगे। नारदजी
ने एक बार पूछा था कि प्रभु यदि अचानक आपसे मिलना हो तो कोई अपना ठिकाना बताइए। साकेत, बैकुण्ठ, योगी का हृदय, क्षीर सागर कहाँ मिलोगे? भगवान् ने कहा इनमें से एक भी जगह नहीं मिल पाऊंगा तो-
नाहं वसामि बैकुण्ठे, योगिनाम् हृदये न च।
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारदः ।।
बोले, जहाँ मेरे भक्त मेरी कथा का गुणगान करेंगे वहाँ मैं बैठा कथा सुनता मिलूंगा। भगवान् स्वयं कथा में विराजमान हैं। भारत में कितने तीर्थ हैं, कितना बड़ा देश है। पूरा जीवन आप दौड़ते रहिए तो भी सब तीर्थों
का दर्शन नहीं कर पाएंगे लेकिन एक जगह यदि सारे तीर्थों का दर्शन करना हो तो कहीं मत जाइए। रामकथा
में आइए आपको सब तीर्थों का दर्शन हो जाएगा।
तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं ।
तत्रैव गंगा यमुना च वेणी गोदावरी सिन्धु सरस्वती च ।
सर्वानि तीर्थानि वसन्ति तत्र यात्राच्युतोदार कथा प्रसंग ॥
जहाँ भगवान् की कथा होगी वहाँ सारे तीर्थ तत्रैव गंगा, यमुना आदि सभी नदियों से भरे समुद्र के क्रूज पर भी यदि कथा हो तो भी सारे तीर्थ वहाँ विराजमान होते ही हैं। क्योंकि वहाँ भगवान् की मधुर मंगलमय कथा हो रही है इसलिए भगवान्की  कथा श्रवण करें, सारे तीर्थों का फल मिल जाएगा। जो भगवान् के साथ रहता है वह भगवान् के चरणों में रहता है। हनुमानजी जब भगवान् के साथ रहते हैं तो आपको प्रभु के चरणों में ही मिलेंगे। जो भगवान् की कथा में रहता है वह भगवान् के मन में रहता है। इसलिए भगवान् स्वयं बोले कि जो मेरे मन में रहता है।।उनके प्रति मेरा व्यवहार कैसा रहता है-
अस सज्जन मम उर बस कैसे। लोभी हृदय बसहिं धन जैसे ।।।जो मेरी कथा में रहते हैं वह सब सज्जन हैं और सज्जन मेरे हृदय में निवास करते हैं और मैं उनको अपने
हृदय में ऐसे छुपाकर रखता हूँ जैसे लोभी अपने हृदय में धन को अपने पास छुपाकर रखता है। 
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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