रविवार, 29 दिसंबर 2024

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग बत्तीस।।हनुमानजी का विक्रम।।

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग बत्तीस।।हनुमानजी का  विक्रम।।
विक्रम का अर्थ है मन का संयम जिसने भी अपने मन को साध लिया वह विक्रम है। जिसने मन में संयम कर लिया वह विक्रमी है जो कभी उत्तेजित नहीं होते हैं उस विक्रमी हनुमानजी को कभी उत्तेजना नहीं आती। उनकी कितनी ही प्रशंसा करिए, रावण जैसा महाबली प्रशंसा कर रहा है, हनुमानजी तनिक भी फूले नहीं। कितनी अशिष्ट भाषा रावण ने हनुमानजी से बोला है अरे मूरख! अरे अधम ! अरे निर्लज्ज ! अरे सठ ! यानि।आप कल्पना कर सकते हैं कि इतने बड़े महापुरुष से रावण कितनी अशिष्टता से कहता है। महावीर विक्रम बजरंगी को यह अधम कहता है, निर्लज्ज कहता है, सठ कहता है, मूर्ख कहता है लेकिन सब बातों को सुनकर भी हनुमानजी उत्तेजित नहीं होते। रावण की कितनी भी अशिष्ट भाषा आयी लेकिन वह भाषा हनुमानजी।को उत्तेजित नहीं कर सकी, क्यों? क्योंकि, श्रीहनुमानजी अपने सम्मान के लिए बल का उपयोग नहीं करते।।अपने बल का उपयोग जब भी हनुमानजी करते हैं तो भगवान् के कार्य के लिए करते हैं। उन्होंने तो बोल।दिया, अरे रावण मुझे कोई शर्म संकोच नहीं-
मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु करि काजा ।।
हनुमानजी ने कहा कि रावण मुझे बँधन में बँधने में कोई लाज नही हैं। और देखिए! भरी सभा में रावण।अशिष्ट बात बोल रहा है। आपने कभी अनुभव किया है कि घरों में झगड़ा किस बात का है। मित्रों में झगड़ा किस बात का है। सब एक शिकायत करते हैं कि पिताजी को समझाइए यह चार लोगों के बीच में फटकारते हैं, अकेले में आप कुछ कह दीजिए मगर चार लोगों में तो मत कहो। यानि कितना हमारा सम्मान, हमारी नाक पर।रहता है। बाप ने अगर किसी के सामने बेटे को कुछ कह दिया तो इसी पर तूफान मच गया। रावण पूरी भरी सभा में सब देवता जन खड़े हैं और रावण कितनी अशिष्ट भाषा बोल रहा है और हनुमानजी क्या कह रहे हैं-
विनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन ।।
हनुमानजी जब भी बोलते हाथ जोड़ कर हे प्रभु! खायऊँ फल प्रभु लागि भूखा । यह हनुमानजी की कायरता नहीं है। आप इसे हनुमानजी की कायरता समझने की भी भूल मत करना। यह हनुमानजी की विनम्रता है। यह उनकी महानता है। दुष्ट को उसी की भाषा में मत बोलो अन्यथा दुष्टता और बढ़ेगी। दुष्ट के सामने भी।शिष्टता का ही प्रयोग हो । हनुमानजी कभी उत्तेजित नहीं होते क्योंकि मान-सम्मान का कोई भाव ही हनुमानजी।में नहीं है, वह तो मान-अपमान से कभी भी प्रभावित नहीं होते। हमारा जो भी बल है वह केवल हमारे अहम्।की तृप्ति के लिए है। कुछ भी बात हो जाए आप तुरन्त अकड़ जाएंगे। अरे पैसे में क्या रखा है किस काम।आएगा। ऐसा किसलिए है, समझता क्या है अपने को, छठी का दूध याद दिला दूँगा। अरे भई यह मत सोचो कि पैसा किस काम आएगा। विचार करो पैसा किस काम आ रहा है? पैसा किसी को रुला रहा है या हमारा।पैसा किसी रोते हुए को हँसा रहा है। पैसा किसी को गिरा रहा है या गिरे हुए को सहारा देकर उठा रहा है। हमारा पैसा किसी के प्राणों का हरण करने जा रहा है या किसी के प्राणों की रक्षा करने जा रहा है। हमारा पैसा किसी की रोजी-रोटी छीनने में लगा है या किसी की रोजी-रोटी की व्यवस्था में लगा है। यह मत देखो
कि पैसा किस काम आएगा यह देखो कि पैसा किस काम आ रहा है और किस काम आना चाहिए यही
विक्रम है। हनुमानजी रावण की अशिष्ट भाषा में भी मौन यानि एक बार तो रावण ने यहाँ तक कह दिया कि
अरे मूर्ख तेरी मृत्यु निकट आई देख तो सही तेरे बराबर में कौन खड़ा है। तो हनुमानजी ने मुड़कर देखा, बोले
तुझे इससे डर नहीं लग रहा है कि मौत तेरे पास खड़ी है। बोले डर तो नहीं लग रहा है बोले क्यों? तो फिर
हनुमानजी ने कहा खड़ी तो मेरे पास है पर देख तुझे रही है, इसलिए मुझे डर नहीं लग रहा है। पूछा तेरे पास
आकर क्यों खड़ी है, मेरे पास क्यों नहीं आयी? तो बोले पूछने आयी है कि रावण का अभी काम करना है
या कुछ दिन बाद करना है। थोड़ी बहुत हनुमानजी मजाक करते थे अन्यथा हनुमानजी तो मौन ही रहते हैं।
हमारे संतों का कहना है कि-
मूरख कामुक बाँबिया, निकसत बचन भुजंग।
ताकी औषधि मौन है, विष नहिं व्यापत अंग ।।
अगर सामने वाला अशिष्ट है तो आप मौन हो जाइए। अगर एक गाली देगा तो सैकड़ों की संख्या में
वापस आएंगी और अगर मौन हो गए तो एक की एक ही रहती है। हनुमानजी शांत मौन खड़े हैं, उत्तेजित
नहीं होते हैं। मैंने सुना है बड़ी उपहास की कथा है। सही या गलत मुझे नहीं पता लेकिन मैंने सुनी है।
एक बार अकबर ने बीरबल से कहा कि बीरबल हम तुम्हारे पिताजी से मिलना चाहते हैं। हम देखना
चाहते हैं कि जिन्होंने इतने योग्य पुरुष को जन्म दिया है वह पिता कैसे होंगे। हम उनकी भी योग्यता देखना
चाहते हैं। बीरबल ने कहा वह गांव के बूढ़े व्यक्ति; वह कहां राजदरबार में आएंगे? रहने दीजिए। अकबर
बोले, नहीं, हम तुम्हारे पिता जी से मिलना चाहते हैं और देखना चाहते हैं कि जिससे तुम्हारी प्रखर बुद्धि है
हम उनकी भी परीक्षा लेना चाहते हैं। अब यह बड़ा मुश्किल हो गया बीरबल को मालूम है कि वह बिल्कुल
गाँव के हैं उनको कुछ आता जाता नहीं और राजा जिद कर रहा है। अगर पिता जी उनका उत्तर दे न पाए तो
बादशाह पिताजी का अपमान करेंगे जो मैं सह नहीं सकता। न ही राजा से बिगाड़ सकता हूँ। तो क्या करूं?
बीरबल घर आए और पिताजी से कहा कि पिता जी एक धर्म संकट आ गया है। बोले कल आपको राजदरबार
चलना है और सम्राट आपकी योग्यता की परीक्षा लेंगे। वह कितने भी प्रश्न आपसे पूछें बस इतना करना कि
आप मौन रहना, बाकी मैं सम्भाल लूंगा। पिता जी को समझा-बुझाकर दरबार में ले आये। दरबार लगा और
बादशाह का आगमन हुआ। पिताजी को बादशाह ने प्रणाम किया और कहा कि आपने जैसे योग्य पुत्र को जन्म दिया है। हमारी इच्छा थी कि आपका दर्शन करें, आपकी योग्यता का भी दर्शन करें। तो अकबर ने बीरबल के पिताजी से प्रश्न पूछना प्रारम्भ किया। बीरबल ने पिताजी को देखकर इशारा कर दिया मौन, तो बीरबल के पिताजी कुछ बोले नहीं। दूसरा प्रश्न किया फिर मौन, तीसरा प्रश्न किया फिर मौन अब भरी सभा में बादशाह
का उत्तर न दे, न सिर हिलाए, बिल्कुल जड़वत् से बैठे हैं तो बादशाह का अहंकार जाग गया कि मैं बोल
रहा हूँ मगर यह बूढ़ा मेरे प्रश्नों का उत्तर नहीं दे रहा है। अकबर बोला, बीरबल एक बात बताओ, अगर
किसी मूर्ख से पाला पड़ जाए तो क्या करना चाहिए? यह अकबर ने बीरबल से प्रश्न किया उनके पिताजी
के लिए। बीरबल ने कहा सरकार उस समय मौन ही रहना चाहिए और कुछ नहीं। बीरबल के पिता को मूर्ख
बोल रहा है। मौन ही होना चाहिए तो। जो किसी प्रकार से उत्तेजित न हो वही विक्रम है, वही बजरंगी है।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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