रविवार, 29 दिसंबर 2024

✓मानसचर्चा।।हनुमान की पूंछ रावण की मूंछ।।

जय श्री राम मानसचर्चा में आप सभी राम भक्तों का स्वागत है ।।गहिसि पूँछ कपि सहित उड़ाना। पुनि फिरि भिरेउ प्रबल हनुमाना।। के आधार पर आज हम 
हनुमान की पूंछ रावण की मूंछ।। पर चर्चा कर रहे हैं । आइए हम इस चर्चा रूपी कथा अमृत का अवगाहन कर प्रभु कृपा प्राप्त करें।हमारे हनुमानजी है"महावीर विक्रम बजरंगी" सामान्यतः बजरंगी का है कि श्री हनुमानजी का हर अंग बज्र जैसा है। रामजी की पूरी सेना में हनुमान जी ही एक ऐसे हैं जिनको कोई परास्त नहीं कर पाया है और ना ही कोई उन पर अस्त्र प्रहार  कर पाया है। सभी मूर्छित हुए हैं भगवान् तक मूर्छित हो गए। मेघनाथ के नागपास ने भगवान् तक को बांध लिया लेकिन हनुमानजी को नहीं। और जो बन्धन  अशोक वाटिका में आया है वह भी हनुमानजी की इच्छा से आया है क्योंकि बँधकर ही वह रावण के दरबार में जाना चाहते हैं और हनुमानजी  संसार यह  को दिखाना चाहते है कि कितना ही बड़ा प्रकृति या परिस्थिति का बंधन आ जाए, भगवान् की कृपा का हमेशा भरोसा करें, क्योंकि वह एक दिन पहले ही तो भगवान् की कृपा का दर्शन कर चुके हैं। जिस समय अशोक वाटिका में जानकीजी को मारने के लिए रावण ने अपनी तलवार निकाली उसी समय मन्दोदरी ने उसका हाथ पकड़ लिया, खबरदार। तभी हनुमानजी समझ गए  कि भगवान् की लीला, जब राम बचाए तो मारे कौन और जब भगवान् मारे तो बचाए कौन। तभी हनुमानजी समझ गए कि मन्दोदरी के रूप में राम ने  ही आकर रावण की तलवार को रोका है वरना वह तलवार से मार सकता था। हनुमानजी को लगा कि कितना भी बड़ा बंधन हो अगर रामजी को मुक्त करना हो तो वह कर देंगे और आज की भरी सभा में रावण ने आदेश कर दिया कि इस वानर को मार डालो और जैसे ही राक्षस तलवार लेकर दौड़े तो उसी समय विभीषणजी का आगमन हो गया, नहीं सरकार ! नीति कहती है कि नीति बिरोध न मारिए दूता ! नीति कहती है कि दूत को मारना नहीं चाहिए, भरी सभा में काल के सामने विभीषण के रूप में भगवान् की कृपा हमारी रक्षा के लिए आती है ,चूंकि हम भगवान् का भजन नहीं करते इसलिए हमें भगवान् की कृपा की अनुभूति नहीं हो पाती है। हर कदम पर तू जहाँ-जहाँ चलेगा मेरा साया साथ होगा, - तू जहाँ-जहाँ चलेगा, मेरा साया साथ होगा, ऐसे हैं भगवान्। तो भगवान् की कृपा को कभी बिसारिए मत। संसार पर भी भरोसा मत करिए पर राम पर तो  करिए ही।श्रीभरत जी ने कहा है ,मोहे रघुवीर भरोस । हनुमानजी अगर बंधन में भी बँधे हैं तो जगत् को समझाने के लिए बधे हैं कि कितना भी भयानक बंधन क्यों न हो काल भी शीश पर आकर क्यों न खड़ा हो , काल के दरबार में भगवान् विभीषण रूप में खड़े हो जाते हैं, नीति विरोध न मारिय दूता। ऐसे श्रीहनुमानजी "महावीर विक्रम बजरंगी" से कौन युद्ध कर सकता है, सब बचकर भागते हैं। एक बार रावण ने युद्ध में चतुरंगिनी सेना भेजी और भगवान बड़े चिन्तित हो गए कि इनसे कौन मुकाबला करे तो हनुमानजी ने कहा प्रभु क्यों चिंता करते हैं, और कोई नहीं है चतुरंगिनी सेना से लड़ने के लिए तो यह सेवक हनुमान हैं न। हनुमानजी के हाथ में कोई शस्त्र नहीं है, कोई गदा नहीं है, गदा भी जाने कहाँ छिपा दिया । सामान्य काल में हनुमानजी के हाथों में गदा दिखाई देती है लेकिन युद्ध में आप कहीं गदा का वर्णन नहीं सुनेंगे।तो हनुमानजी चतुरंगिनी सेना से भिड़ गए और भगवान् इस तमाशे को लक्ष्मणजी  के साथ खड़े हो कर देख रहे हैं। हाथियों से हाथी मारे, घोड़े से घोड़े संघारे, करें क्या हनुमानजी , हाथियों पर हाथियों को पटक दें और घोड़ों को घोड़ों पर पटक दें, रथों को रथों पर पटक दें। सामने वाले को वैसे पछाड़े और जो पीछे रहे उनको पूँछ में लपेट लपेट कर पटक रहे हैं। और उन्हें सीधे लंका में फेंक देते हैं। प्रभु इस लड़ाई को देख रहे हैं और कह रहे हैं कि लखन देखो लड़ाई, हनुमान् की युद्ध की कला देखो। हनुमानजी क्या सुन्दर लड़ रहे है। जब पूरी चतुरंगिनी सेना मारी गयी तो सायंकाल के समय रावण  पत्रकारों से वार्ता करता है। आज के क्या समाचार हैं तो रावण का जो मुख्य प्रवक्ता है उससे रावण कह रहा है कि- आज तो तहस-नहस करके आई चतुरंगिनी सेना, पत्रकार चेहरा लटकाये बैठा है। तब रावण ने गरज  कर पूछा क्या समाचार है ?तब पत्रकार ने  कहा कि समाचार गम्भीर है। क्या गम्भीर है, बोले , सब मारे गए, अच्छा सब वानर मारे गए। उन्होंने कहा वानर नहीं मारे गए आपकी पूरी सेना मारी गई। बोले पूरी सेना, बोले हाथियों से हाथी मार डाले, घोड़ों से घोड़े मार डाले, रथियों से रथी मार डाले बोले और जो शेष बचे थे उन्हें वानर ने पूँछ में बाँध कर, फेंक कर मार डाला। आपको पता ही है कि रावण हनुमानजी की पूँछ से बहुत चिढ़ता है । लंका में जब हनुमानजी जानकीजी के पास आए तब भी रावण को हनुमानजी की पूंछ ने बहुत परेशान किया है।जब रावण खराटे लेकर सो रहा है, मुंह फाड़ कर सो रहा है तब हनुमानजी ने अपनी पूँछ को उसकी नाक में घुसाया। इस तरह रावण दे छींक, दे छींक मारता है ,और जब रावण फिर खराटे ले तो फिर हनुमानजी नाक में पूँछ घुसा दें। सोते-सोते भी रावण बड़बड़ाता रहा अरे इस वानर की पूँछ को पकड़ो, अरे इस वानर की पूंछ को पकड़ो, सारी लंका में पूँछ ही पूँछ।अब रावण को यह लगा कि कैसे इस वानर को मारा जाए तो रावण ने अपनी साठ हजार सैनिकों की अमर सेना जो अमृत पीए हुए है ,जो कि मरती नहीं है ,अपने सेनापति से बोला इसको भेजो, जाओ और जब अमर सेना को आदेश हुए तो भगवान् भी घबरा गए कि इस सेना को कैसे मारा जाए, यह तो अमर हैं इनको मारा नहीं जा सकता। जिसको किसी भी प्रकार से भगवान् भी मार न पाए वही तो अमर है। और अमर है ऐसा दुर्गुण जिसे न तो संत सुधार पाए न भगवंत सुधार पाए वही तो अमर है। जो मरने को ही तैयार नहीं है जो बुराई मरने को भी तैयार नहीं है उसको कौन मारे ? भगवान् तो घबरा गए हनुमानजी ने कहा भगवन् चिंता मत करो हम हैं न! भगवान बोले- तुम राक्षसों को मार सकते हो,पर यह तो अमर सेना है।।अमर को तो अमर मार सकता है। हनुमानजी ने कहा हम भी अमर हैं चिंता मत करो। तुम अमर कैसे हो । बोले हमको माँ ने आशीर्वाद दिया है।
अजर अमर गुण निधि सुत होऊ । करहिं बहुत रघुनायक छोहू ।।
हम आज देखते हैं कि ये कैसे नहीं मरते हनुमानजी को तो मालूम है कि इनको कितना ही मारो कुछ।भी करो ये मरते तो हैं नहीं तब क्या करें? हनुमानजी ने कहा ऐसी बुराई जो मिटने को तैयार नहीं, मरने को तैयार नहीं, बदलने को तैयार नही, उसको आँखों से दूर कर दो, उसे दृष्टि से हटा लो। बुराई अगर सही नहीं हो रही है तो उसकी उपेक्षा करो, उसको अपनी दृष्टि से दूर कर दो, उसका चिंतन बंद कर दो, अपने आप मर जाएगी। बुरे लोग जीवित क्यों हैं। हमारे द्वारा बुरे लोगों को जीवन प्रदान हो रहा है। मेरा कथन अन्यथा मत लीजिए और उसके लिए मैं किसी और वजह से कह रहा हूँ कि आज समाज में बुराई कितने बड़े पैमाने पर दिख रही है। सच में बुराई दिखाई नहीं दे रही है बल्कि दिखाई जा रही है अखबार के माध्यम से, चैनलों के माध्यम से। इतना बड़ा देश है जिसमें लगभग एक सौ चालीस करोड़ जनता रह रही है। इसमें कुछ न कुछ तो गलत होगा ही, कुछ लोग लड़ेंगे, कुछ अश्लीलता होगी लेकिन वही चीजे खोज-खोज कर, ढूंढ-ढूँढ कर, बीन-बीन कर लाई जा रही है और दिखाई जा रही है। एक चैनल सुबह से वही बुराई चालू करता है। वही नहीं और बताओ क्या हो रहा है? और बताओ कैसा लग रहा है? लोग कैसा कह रहे हैं? तुम्हारे लिए रो रहे हैं। लोग तुम्हारे चैनलों को रो रहे हैं तो बुराई को दिखाइए मत, बुराई को प्रसारित मत करिए, बुराई का प्रदर्शन मत करिए, शुभ का दर्शन कराइए बुराई को अंधेरे में छुपा दीजिए तो बुराई छुप जाएगी, नष्ट हो जाएगी। बुराई को अगर प्रकट करोगे तो ऐसा लगेगा कि सर्वत्र बुराई ही बुराई है। यह जो अमर सेना है, ऐसी बुराई है जो न मरने को तैयार है न सुधरने को ही तैयार है। तो हनुमानजी ने सोचा कि इनको आँखों से दूर कर दूँ। लड़ना तो इनसे बेकार है, सुधार की कोई गुंजाईश नहीं है तो जो खेल में परास्त होता है तोउससे दुश्मनी भी नहीं बनती। इनको खेल में मारो, दूर फेंको इनको। हनुमानजी ने अपनी पूँछ बढ़ाई और साठ हजार अमर सेना को अपनी पूँछ में लपेटा और पहले तो  कसके घुमाया और जब घुमाते घुमाते चक्कर आ गया और यह मूर्छित होने लगे तो हनुमानजी ने इतनी जोर से इन्हें ऊपर फेंका कि जो पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति है उसके ऊपर अंतरिक्ष में चले गए। जैसे अंतरिक्ष में यान घूमते रहते हैं। अंतरिक्ष में ऊपर जाओ, हनुमानजी ने कहा, जाओ ऐसे ही चक्कर काटते रहो, वहीं बैठे टीवी देखते रहो, आपस में बात करते रहो, अखबार पढ़ते रहो। मारने की आवश्यकता नहीं पड़ी। आँखों से दूर कर दिया। रावण तो बड़ा प्रसन्न बैठा कॉफी पी रहा है, हुक्का गुड़गुड़ा रहा है। सन्ध्या के समय अखबार वाले फिर आ गए। सारे चैनलों के कैमरे सेट हो गए। रावण आया काफी का कप हाथ में लेकर, बोले क्या समाचार है? पत्रकार बोले- गए-गए। कौन गए? बोले सब गए। बोले क्या सेना सारी लौट गयी, लंका से तपस्वी सारे लौट गए? बोले नहीं तपस्वी और वानर तो सब जमे हुए हैं फिर कौन गया? बोले।आपकी अमर सेना गयी। बोले कि क्या मर गयी? बोले, नहीं अमर सेना मर नहीं सकती, लंका छोड़कर गयी।और केवल लंका छोड़कर नहीं, धरती भी छोड़कर ,आकाश को चली गयी, हमने तो जो देखा है। हमको तो पता नहीं, कहाँ गयी। हमको तो मालूम ही नहीं है, धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के ऊपर चले गए हैं। कैसे गए? बोले पूँछ में लपेट कर अरे क्या बकते हैं? बार-बार पूँछ, काटो पूँछ। सरकार पूँछ कैसे कटेगी? जिस पूँछ को आप नहीं जला पाए, तो चैनल वाले कैसे काट सकते हैं। यह तो पूँछ बढ़ती है, जितनी पूँछ हम काटेंगे उतनी ही बढ़ेगी। उस वानर की विशेषता ही यह है, तब रावण ने सोचा कि पहले पूँछ का ही सत्यानाश किया जाए। पहले इस पूँछ को ही हटाओ। रावण ने अपनी जासूसी से पता लगवाया कि वानर कभी अकेले में भी रहता है क्या? तो पता लगा कि संध्या समय समुद्र के किनारे संध्या वन्दन करते देखा जाता है। देखो इस देश के वानर युद्ध के समय भी सन्ध्या करते हैं, मगर आज का ब्राह्मण भी संध्या नहीं करते हैं। कैसी विचित्र बात है कि वानर सन्ध्या करता है, युद्ध के समय करता है। हम घर में भी नहीं करते। तो रावण ने सुना सन्ध्या के समय समुद्र के किनारे सन्ध्या कर रहा है तो धीरे से रावण आया चोरी से, रावण को चोरी करने की बड़ी आदत है, बहुत बड़ा चोर है। छुपके-छुपके चला आ रहा है। हनुमानजी ध्यान में ही बैठे हैं। इसने आते ही हनुमानजी की पूँछ पकड़ ली। इसको पूँछ से तो चिढ़ थी ही पूँछ को झटका मारता है। कई बार तो गिर पड़ा। जरा सी पूँछ खींची तो धम्म से गिरा तो हनुमानजी इधर-उधर देखें तो इधर-उधर हो जाता, सामने नहीं आता। बार-बार हनुमानजी की पूँछ खींचता है परन्तु पूँछ उखड़ नहीं पा रही है। बहुत देर हो गई, रावण न सामने आने को तैयार, न पूँछ छोड़ने को तैयार है तो हनुमानजी ने जय श्रीराम बोला और  आकाश की और उछाल मार दी। अब हनुमानजी आकाश में उड़े जा रहे हैं। पूँछ रावण के हाथ, रावण डर के मारे बोला, भोलेनाथ, हे शंकर भगवान्, रक्षा करो। अभी तक रावण हनुमानजी की पूँछ उखाड़ता था पर अब डर रहा है कि कहीं पूँछ न उखड़ जाए। हे भगवान् कहीं पूँछ उखड़ी और मैं धम्म से नीचे गिरा तो बे मौत ही मरा। जो रावण अब तक पूँछ उखाड़ने की कोशिश कर रहा है, अब कह रहा है कि हे भगवान्, इस पूँछ से बचाओ पूँछ मत उखड़े। पूँछ की रक्षा करो, पूँछ की रक्षा करो। गोस्वामीजी ने बहुत सुन्दर वर्णन किया है-
गहिसि पूँछ कपि सहित उड़ाना। पुनि फिरि भिरेउ प्रबल हनुमाना।।
जैसे ही रावण ने पूँछ पकड़ी हनुमानजी ने उड़ान भर दी फिर आकाश में हनुमानजी ने  रावण की जो धुनाई की है कि  धीरे से रावण ने कहा काहे को मारे डाल रहा है। छोड़ मुझे छोड़। तब हनुमानजी ने रावण को लंका में फेंका है। ऐसे हैं श्रीहनुमानजी 
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।






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