रविवार, 12 जनवरी 2025

मानस चर्चा।।श्री हनुमानजी भाग दस।। वानर तनु धरि-धरि महि - हरि पद सेवहु जाहु ।। ।।

मानस चर्चा।।श्री हनुमानजी भाग दस।। वानर तनु धरि-धरि महि - हरि पद सेवहु जाहु ।।
संकर सुवन केसरी नन्दन। तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥
केसरीनन्दन, यह तो जगत प्रसिद्ध है कि हनुमानजी केसरी नामक वानर के पुत्र हैं लेकिन शंकरसुवन
श्रीहनुमानजी शंकरजी के भी अंश हैं, अवतार हैं। कई लोग तो बोलते हैं शंकर स्वयं केसरी नन्दन, शंकरजी
स्वयं ही हनुमानजी के रूप में आए हैं। पाठ तो हमेशा यही करना चाहिए जो लिखा है। शंकरसुवन केसरीनन्दन
तेज प्रताप महा जग बन्दन सत्य यही है। शंकरजी स्वयं ही हनुमानजी का रूप लेकर पधारे हैं-
रुद्र देह तजि नेह वश । हर ते भये हनुमान ।।
श्रीहनुमानजी शंकर जी के अवतार हैं। एक बार शंकरजी से भगवान् ने पूछा था कि हे महादेव मैं रावणmको मारने के लिए जा रहा हूँ। उसके साथ मेरा भयानक युद्ध होगा आप बताइए उस युद्ध में आप हमारी क्या सहायता करेंगे? हर देवता हमारी सहायता के लिए वानर रूप लेकर आ रहा है।
वानर तनु धरि-धरि महि - हरि पद सेवहु जाहु ।।
आप बताइए शंकरजी ! आप उस समय हमारी क्या सहायता करेंगे? तो शंकरजी ने कहा कि मेरा एक रुद्र
आपकी सहायता में, सेवा में रहेगा और वही 11वां रुद्र हनुमानजी के रूप में शंकर सुवन उनका आगमन हुआ है-रुद्र देह तजि नेह वश । हर ते भये हनुमान ।।
यह विचारणीय प्रश्न है शंकरजी ने बन्दर रूप क्यों बनाया तो यह कथा बड़ी प्रिय है। शंकरजी को यह मालूम है कि भगवान् को बन्दर का रूप बहुत प्रिय है और भगवान् जिसके ऊपर कृपा करते हैं उसको बन्दर
रूप देते हैं और भगवान् अपने प्रियजन के ऊपर बहुत कृपालु रहते हैं। नारदजी की घटना आपने सुनी होगी।
नारदजी ने जब भगवान् से कहा था कि प्रभु जिसमें मेरा हित हो वही आप करें। प्रभु ने क्या उत्तर दिया।
भगवान् बोले-
जेहि विधि होइहि परम हित, नारद सुनहु तुम्हार ।
सोई हम करब न आन कछु, बचन न मृषा हमार ॥
नारद तुम हमारे परम प्रिय हो। तुम हित की बात करने आए हो, हम तुम्हारा परमहित करेंगे लेकिन मुख
से तो बोलो क्या चाहिए? बोले आपन रूप प्रभु देहु मोही। आन भाँति नहिं पावौं ओही ॥ प्रभु मुझे सुन्दर
रूप दीजिए, नारद जी ने प्रभु से सुन्दर रूप माँगा और भगवान् ने क्या कर दिया-
मुनि हित कारन कृपा निधाना। दीन्ह कुरुप न जाइ बखाना।।
नारदजी ने भगवान् से सुन्दर रूप मांगा, भगवान ने नारदजी को बन्दर रूप दे दिया। यह भगवान् ने कृपा
की है।
कृपा करके भक्त को बचा लिया। मरकट बदन भयंकर देही। नारदजी ने एक बार पूछा, भगवान् से भगवन्! यदि आपको मेरा विवाह नहीं कराना था तो सीधे-सीधे मना कर देते। भगवान् ने कहा कि नारद, तुम
उस समय सुनने के लिए तैयार नहीं थे। तुम तर्क दे सकते थे। अपनी शादी कर चुके और बेटे की शादी के
लिए मना कर दिया। तुम मेरी बात सुनते नहीं। ठीक है महाराज, तो फिर आपने बन्दर रूप क्यों बना दिया?
बहुत सारे कुरूप रूप थे कोई और रूप ही बना देते । भगवान् ने कहा नारदजी मैंने तुम्हें बन्दर इसलिए बनाया
था कि एक दिन बन्दर बनाकर मैने तुम्हें जीवन भर बन्दर बनने से बचा लिया। अगर कहीं तुम शादी कर लेते तो जीवन भर शादी करके तुम्हें घरवाली के सामने बन्दर बनकर नाचना पड़ता। और गोस्वामी जी संकेत देते हैं-नारी विवश नर सकल गुसाईं, नाचहि नट मरकट की नाई। जैसे नट के सामने बन्दर नाचता है वैसे
शादी के बाद पुरुष अपनी पत्नी के सामने नाचता है। नारद मैं भी भुगत रहा हूँ, नाचना पड़ा कि नहीं, आखिर
नाचते-नाचते लंका तक गए कि नहीं। सबको नाचना पड़ता है तो मैंने सोचा नारद मेरा सबसे प्रिय है इसका
हित इसी में है कि इसको बन्दर के नाच से बचाऊँ। एक दिन का बन्दर बनाकर मैंने जीवन भर के बन्दर बनने
से बचा लिया। देखो सब नाचते हैं। हरियाणा में आपने सुना होगा कि पत्नी को वीरवाणी कहते हैं। वीरवाणी
का मतलब क्या है पुरुष वीर है और उसकी वाणी क्या है घरवाली, वह जैसा बोलेगी वैसे करना है, वह जो कहेगी सो इसे करना है। बड़े-बड़े तगड़े, देहधारी, योद्धा बीवी के सामने घिघियाते हैं क्योंकि वाणी तो उसकी है पत्नी की वाणी वीरवाणी। घर में यदि शान्ति चाहते हो तो घर में घुसे कि वाणी बंद कर लो और घर में श्रोता बनकर जाओ और वक्ता बनना है तो बाहर बनो, जो बोलना है, घर के बाहर बोलो। घर में जाइए श्रोता बनकर, सिर झुकाकर बैठ जाइए जैसे आप कथा में जाते हैं कथा अच्छी लगे न लगे, समझ में आए न आए उनको तीन घण्टे बैठकर सुनना ही नहीं है बल्कि झूठी-सच्ची तालियां भी बजानी हैं। कथावाचक समझते हैं
कि हमारी कथा बड़ी पसंद आ रही है वह ताली बजा रहे हैं। हम समझते हैं प्रशंसा कर रहा है तो जैसे श्रोता
बेचारा तीन घण्टे प्रशंसा कर रहा है। कृपया जितनी देर घर पर रहो श्रद्धालु बनकर और बीच में वाह-वाह
कहिये। क्या बात कही है यह बात तो कभी हमने सोची ही नहीं। शंकरजी ने सोचा भगवान् जब हित करते
हैं तो हित नहीं, परमहित करते हैं तो बन्दर बना देते हैं और बन्दर रूप भगवान् को परम प्रिय है। शंकरजी
का मानना है कि जगत तो नचाएगा या तो रामजी के बन्दर बनो या काम के बन्दर बनो। हनुमानजी राम के
बन्दर हैं और हम सब काम के बन्दर हैं। हमको चौबीस घण्टे काम नचाता है, श्री हनुमानजी को देखिए-
छम-छम नाचे देखो वीर हनुमाना ।
कहते हैं लोग इसे राम का दिवाना।
छम-छम नाचे देखो वीर हनुमाना ।।
पाँव में घुंघरू बाँध के नाचे,
राम जी का नाम इसे बड़ा प्यारा लागे ।
राम जी ने देखो इसे खूब पहिचाना,
छम-छम नाचे देखो वीर हनुमाना ॥
जहाँ-जहाँ कीर्तन होता श्रीराम का,
लगता है पहरा वहाँ वीर हनुमान का।
रामजी के चरणों में है इनका ठिकाना,
छम-छम नाचे देखो वीर हनुमाना ॥
नाच नाच श्रीराम को रिझाये,
आनन्द में रात दिन -नाचता ही जाये।
भक्तों में भक्त बड़ा दुनिया ने माना,
छम-छम नाचे देखो वीर हनुमाना ।।
शंकरजी ने सोचा कि क्यों न मैं राम के इशारे में नाचूं अन्यथा काम के इशारे में नाचना होगा। शंकरजी
स्वयं हनुमानजी के रूप में पधारे - संकर सुवन केसरीनन्दन । तेज प्रताप महा जगबंदन ॥
हनुमानजी के तेज के प्रताप का तो कोई वर्णन नहीं कर सकता। आपने सुना होगा कि बाल्यकाल में
जब विद्या अध्यन की बात आयी तो हनुमानजी सूर्यनारायण के पास आए। सूर्य ने कहा, कहाँ बालक आ रहे हो, मेरे पास मत आओ जल जाओगे, झुलस जाओगे तो हनुमानजी बोले, आपसे मुझे शिक्षा लेनी है, ज्ञान लेना है। तो सूर्यनारायण ने कहा कि मेरा तेज इतना अधिक है कि तुम सह नहीं पाओगे। बोले, चिन्ता मत
कीजिए तुम्हारा तेज मैं पी लेता हूँ और जगत मेरे तेज से प्रकाशित होगा तो वहीं तेज सूर्यदेव का हनुमानजी ने
लिया है मुँह में हनुमानजी के तेज से जगत प्रकाशित हुआ है। बड़ी सुन्दर कथा है, सूर्य को लगा क्या छोटा
बन्दर का बालक हमसे ज्ञान लेगा। सूर्य ने कहा मैं तुमको शिक्षा नहीं दे सकता। बोले क्यों, बोले मेरी गति बहुत तेज है, तुम दौड़ नहीं सकते मेरे साथ। बोले तुम उल्टे दौड़ोगे तो गुरु की ओर पीठ करके दौड़ोगे, गुरु के तो सन्मुख रहा जाता है। हनुमानजी ने कहा कि चिंता मत कीजिए मैं आपकी ओर दृष्टि करके ही दौडूंगा, आपके घोड़े के रथों की गति से भी ज्यादा मेरी गति होगी और हनुमानजी की गति के सामने सूर्यनारायण के घोड़े भी थक गए। कथा ऐसी आती है कि चार दिन में जितना भी ज्ञान सूर्य के पास था सम्पूर्ण ज्ञान हनुमान ने ले लिया। सूर्य के पास चार दिन बाद कुछ ज्ञान देने को बचा ही नहीं, सूर्यनारायण ने भगवान् से प्रार्थना की कि प्रभु यह कौन बालक आपने मेरे पास भेज दिया। मेरा सारा ज्ञान समाप्त हो गया। यह जो उत्तर देता है मेरे प्रश्नों के, उसके बारे में मैं स्वयं नहीं जानता। तो हनुमानजी के ज्ञान को भगवान् ने कुण्ठित कर दिया और जब हनुमानजी का ज्ञान कुण्ठित हो गया तो हनुमानजी ने भगवानराम का आह्वान किया। राम प्रकट हुए, हनुमानजी से रामजी ने कहा कि तुम्हारे ज्ञान को कुठित करने वाला ऐसा जगत में न पैदा हुआ है न होगा
लेकिन मैं भी साक्षात् ज्ञान हूँ, ब्रहम हूँ लेकिन मैं भी जब गुरुदेव से शिक्षा लेने गया था तो मैं भी उतने ही
प्रश्नों की, ज्ञान की चर्चा करता था जितना मेरे गुरुदेव आसानी से जानते हैं और बता सकते हैं। गुरुओं की
कभी परीक्षा नहीं लेनी चाहिए तुम्हारे ज्ञान को कौन कुण्ठित करेगा। जाओ, गुरुओं की महिमा की रक्षा करना तुम्हारा धर्म है, कर्त्तव्य है। फिर श्रीहुनमानजी गए और वह तेज, वह प्रताप प्राप्त किए , जगत् जिसका वन्दन कर रहा है।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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