रविवार, 29 दिसंबर 2024

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग इकतीस।।सुरसा और हनुमानजी।।

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग इकतीस।।सुरसा और हनुमानजी।।
आपने एक घटना सुनी होगी। श्रीहनुमानजी जा रहे थे, देवताओं ने सापों की माँ सुरसा को भेजा। सुरसा ने
मुंह फाड़कर कहा कि मैं तुझे खाऊंगी, हनुमानजी ने कहा, माँ, ऐसे तो इस शरीर का कोई उपयोग नहीं है।
लेकिन मैं रामकाज के लिए जा रहा हूँ तो प्रभु का संदेश माँ को दे आऊँ और माँ का संदेश प्रभु को । इसके
बाद तू खा लेना जैसा तेरा मन करे। सुरसा ने कहा नहीं मैं तो आए शिकार को छोड़ती नहीं हूँ। हनुमानजी
ने कहा नहीं मानती तो खा ले। खाना चाहती हो तो खा लो। सुरसा ने हनुमानजी को निगलने के लिए एक
योजन का मुँह फाड़ा। हनुमानजी ने जयश्रीराम बोला और दो योजन के हो गए क्योंकि हनुमानजी को भगवान
का आशीर्वाद है तैं मम प्रिय लक्ष्मण ते दूना। लक्ष्मणजी साक्षात् नाग हैं और यह नागों की माँ है । शेषनाग
है लक्ष्मण । हनुमानजी दूने हो गए सुरसा ने दो योजन मुँह फाड़ा हनुमानजी चार योजन हो गए। सुरसा ने चार
योजन मुँह फाड़ा हनुमानजी आठ योजन हो गए। सुरसा ने आठ योजन मुँह फाड़ा हनुमान जी सोलह योजन
हो गए। सुरसा ने सोलह योजन मुँह फाड़ा तुरत पवनसुत बत्तीस भयऊ, यानि बत्तीस योजन हो गए। सुरसा
ने बत्तीस योजन मुँह फाड़ा हनुमानजी चौंसठ योजन हो गए और गोस्वामी जी ने लिखा है-
जस-जस सुरसा बदनु बढ़ावा । तासु दून कपि रुप देखावा ।।
सत योजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रुप पवनसुत लीन्हा ॥
बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मांगा बिदा ताहि सिरु नावा ।।
जैसे-जैसे सुरसा बढ़ती गयी हनुमानजी दो गुने होते चले गए।सटक भी नहीं पाई और फिर क्या हुआ श्रीहनुमानजी अति लघु रूप हो गये। अंकगणित में सबसे छोटा अंक एक माना जाता है और जिसकी कोई।कीमत नहीं होती उसे शून्य कहते हैं। हनुमानजी शून्य हो गए। हनुमानजी विराटतम भी हो जाते हैं और अति लघु भी हो जाते हैं। या तो इतने बड़े हो जाओ कि किसी के मुँह में नहीं आओ या तो इतने छोटे हो जाओ कि किसी की आँख को दिखाई न दो यह विक्रम है। किसी भी प्रकार से बड़े होने में भी और लघु होने पर भी जिनका कोई अतिक्रमण न होता हो वह श्रीहनुमानजी हैं। वही बड़े कार्य कर सकते हैं। अंत में हनुमानजी सुरसा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और वह उनको आशीर्वाद देकर चले जाती हैं।
राम काज सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान ।।
आसिष देइ गई सो, हरषि चलेउ हनुमान ।।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ