✓मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग इकतालीस।।संकट।।
मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी और संकट।।
संकट से हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ यह नहीं कहा संकट से हनुमान बचावें, बचाने और छुड़ाने में बहुत बड़ा अन्तर है। बचाने में तो व्यक्ति दूर
से बचा सकता है। जैसे कोई पुलिस केस हो जाए, कोई पकड़ लेता है आप किसी बड़े व्यक्ति के पास जाते हैं।
और बताते हैं कि ऐसा- ऐसा हो गया तो वह कहता है कि ठीक है हम कह देंगे, फोन कर देंगे। अब आवश्यक
तो नहीं कि फोन मिल ही जाए यह भी आवश्यक नहीं कि फोन पर रिस्पोन्स पूरा दे ही दिया जाए? टाल-मटोल
भी हो सकती है। तो बचाया दूर से जा सकता है लेकिन छुड़ाया अर्थात पास जाकर छुड़ाना माने किसी के हाथ में से छीन लाना। जब भी भक्त पर संकट आता है, दूर से नहीं हनुमानजी बिल्कुल पास जाकर छुड़ाते हैं।इस संदर्भ में हम एक बहुत ही सुन्दर कथा का रसपान करते है।
एक सुपंथ नाम के राजा थे , धर्मात्मा थे - एक बार अयोध्या में कोई संत सम्मेलन होने जा रहा था तो वह भी संत सम्मेलन में संतों का दर्शन करने जा रहे थे। रास्ते में नारदजी मिल गए। प्रणाम किया, बोले कहाँ जा रहे हैं ? राजा ने कहा संत सम्मेलन में संतों का दर्शन करने जा रहा हूँ। नारद बोले जाकर सभी संतों को प्रणाम करना। लेकिन वहाँ झूठे ब्रह्मर्षि विश्वामित्र होंगे वह क्षत्रिय हैं। क्षत्रियों को प्रणाम मत करना, वह साधु वेश में कपटी हैं। ऐसा नारदजी ने भड़काया। हनुमानजी की महिमा और भगवान् के नाम का प्रभाव भी शायद नारदजी प्रकट करना चाहते होंगे। राजा बोले जैसी आपकी आज्ञा गए सभी को प्रणाम किया, विश्वामित्रजी को नहीं किया तो क्षत्रिय जाति का यह अहंकारी स्वभाव होता है। अब तो विश्वामित्रजी गुस्से में बोले इसकी यह हिम्मत, भरी सभा में मुझे प्रणाम नहीं किया। वैसे भूल हो जाए तो कोई बात नहीं। जान-बूझकर न किया जाए तो एक्शन दिखाई दे जाता है। विश्वामित्रजी को क्रोध आ गया और दौड़कर भगवान् के पास पहुंच गए कि राघव आपके राज्य में इतना बड़ा अन्याय, गुरुओं और संतों का इतना बड़ा अपमान? भगवान बोले गुरुदेव क्या हुआ , उस राजा ने मुझे प्रणाम नहीं किया। उसको दण्ड मिलना ही चाहिए। भगवान् ने कहा ऐसी बात है तो कल मृत्युदण्ड घोषित हो गया। और सुपंथ को पता लगा कि मृत्युदण्ड घोषित हो गया और वह भी राम ने प्रतिज्ञा की है कि मैं गुरुदेव के चरणों की सौगन्ध खाकर कहता हूँ कि कल सूर्यास्त तक उसके प्राणों का अंत हो जाएगा। इधर लक्ष्मणजी ने बड़े
रोष में प्रभु को देखा, पूछा प्रभु क्या बात है। भगवान बोले आज एक अपराध हो रहा है। कैसे? बोले कैवल्य
देश के राजा सुपंथ ने गुरुदेव का अपमान किया है और मैंने प्रतिज्ञा की है कि कल उसका वध करूंगा।
लक्ष्मणजी ने कहा महाराज, कल आपका कभी नहीं आता। आपने सुग्रीव को भी बोला था कल इसका
वध करूँगा। लगता है और कुछ दाल में काला होने वाला है। बोले नहीं, यह मेरी प्रतिज्ञा है। अब सुपथं रोने
लगा तो नारदजी प्रकट हो गए, बोले क्या हुआ। बोले, भगवान् ने हमारे वध की प्रतिज्ञा की है । अच्छा-अच्छा
भगवान् के हाथ से वध होगा यह तो बड़ा भाग्य है, मौत तो अवश्यमभावी होती है। मृत्यु को तो टाला नहीं जा
सकता। बोले कमाल है। आप ही ने तो भड़काया था, आप ही अब यह कह रहे हैं। नारदजी ने कहा, एक रास्ता
मैं तुमको बता सकता हूँ। भगवान् के बीच में तो मैं नहीं आऊँगा। क्या रास्ता है, बोले तुम अंजनी माँ के पास
जाकर रोओ। केवल माँ हनुमानजी के द्वारा तुम्हारी रक्षा करा सकती है। इतना बड़ा संकट है और दूसरा कोई
बचा नहीं पाएगा। सुपथं अंजनी माँ के घर पर पछाड़ खाकर हा-हा करके रोए। माँ तो माँ हैं, बोली क्या बात
है? बेटे क्यों रो रहे हो? माँ रक्षा करो, माँ रक्षा! किसकी रक्षा करनी है? बोले मेरी रक्षा करो, बोली मैं प्रतिज्ञा
करती हूँ कि तुझे कोई नहीं मार सकता। मैं तेरी रक्षा करूंगी। बता तो सही, फिर पूरी घटना बताई, लेकिन
माँ तो प्रतिज्ञा कर चुकी थी। बोली, अच्छा कोई बात नहीं तुम अन्दर विश्राम करो। माताजी ने हनुमानजी बुलाया, हनुमानजी आए माँ को प्रणाम किया, माँ को थोड़ा चिन्तातुर देखा तो पूछा माँ, क्या बात है। बोली, मैं एक प्रतिज्ञा कर चुकी हूँ शरण आगत की रक्षा की और तुमको उसकी रक्षा करनी है। हनुमानजी ने कहा माँ, कैसी बात करती हो। आपका आदेश हो गया तो रक्षा उसकी अपने आप हो जाएगी। बोली पहले प्रतिज्ञा करो, बोले भगवान श्रीराम के चरणों की सौगन्ध खाकर कहता हूँ कि जो आपकी शरण में आया है, उसकी रक्षा होगी। माँ ने उस राजा को बुला लिया, बोली यह हैं। पूछा कौन मारने वाला है बोले भगवानराम ने प्रतिज्ञा की है ।तब हनुमानजी ने कहा यार तूने तो मुझे ही संकट में फँसा दिया। दुनिया तो गाती थी संकट से हनुमान छुड़ाएं। आज तूने हनुमान् को ही संकट में डाल दिया। खैर, मैं माँ से प्रतिज्ञा कर चुका हूँ। देखो जैसा मैं करूँ, करू तुम घबराना नहीं। भगवान् ने धनुष-बाण उठाए और चले मारने के लिए, हनुमानजी दूसरे रास्ते से जाने लगे तो भगवान् ने पूछा हनुमान् कहाँ जा रहे हो। तो हनुमानजी ने कहा प्रभु आप कहाँ जा रहो हो। बोले मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने जा रहा हूँ। हनुमानजी ने कहा मैं भी अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने जा रहा हूँ। भगवान ने कहा तुम्हारी क्या प्रतिज्ञा है, हनुमानजी ने कहा पहले आप बताइए आपने क्या प्रतिज्ञा की है । उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा बताई । हनुमानजी ने कहा मैं उसी की रक्षा करने के लिए जा रहा हूँ। भगवान् ने कहा मैंने अपने गुरुदेव के चरणों की सौगन्ध खाई है कि मैं उसका वध करूँगा। हनुमानजी ने कहा मैंने अपने भगवान के चरणों की सौगन्ध खाई है कि मैं उसकी रक्षा करूँगा। यह लीला लक्ष्मणजी देख रहे हैं, मुस्कुरा रहे हैं, यह क्या लीला हो रही है? जैसे ही भगवान् का आगमन देखा तो राज तो यह रोने लगा।पर हनुमानजी ने कहा रोइए मत, मेरे पीछे खड़े हो जाइए। संकट के समय हनुमानजी आगे आते हैं। भगवान् ने अभिमंत्रित बाण छोड़ा। हनुमान जी दोनों हाथ उठाकर श्री राम जय राम जय जय राम बोलने लगे। श्रीहनुमानजी भगवान् के नाम का कीर्तन करें और बाण विफल होकर वापस लौट जाए। जब सारे बाण निष्फल हो गए तो भगवान् ने ब्रह्मास्त्र निकाला। जैसे ही छोड़ा हनुमानजी की छाती में लगा लेकिन परिणाम क्या हुआ? प्रभु श्री राम ही मूर्छित होकर गिर पड़े, बाण लगा हनुमान जी को, मूर्छा भगवान् को अब तो बड़ी घबराहट हो गई। हनुमानजी दौड़े, मेरे प्रभु मूर्छित हो गए। क्यों मूर्छित हो गए क्योंकि जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर । हनुमानजी के हृदय में भगवान् बैठे है तो बाण तो भगवान् को ही लगेगा, बाकी सब घबरा गए। क्या हो गया? हनुमानजी ने प्रभु के चरणों में प्रणाम किया और सुपंथ को अपनी गोद में रखकर ले आए। श्रीहनुमानजी ने सुपंथ को भगवान् के चरणों में बिठा दिया। प्रभु तो मूर्छित हैं। हनुमानजी बहुत रो-रोकर कीर्तन कर रहे थे कि प्रभु की मूर्छा दूर हो जाए भगवान् की मूर्छा धीरे-धीरे दूर होती चली गयी और प्यार में, स्नेह में चूंकि भगवान् को अनुभव हो गया था कि बाण मेरे हनुमान् के हृदय में लगा तो उसे चोट लगी होगी तो भगवान् इस पीड़ा के कारण मूर्छित हो गए। जब यह कीर्तन करने लगे तो भगवान् हनुमान जी के सिर पर।हाथ फिराने लगे तो धीरे से हनुमान जी सरक गए पीछे और भगवान् का हाथ सुपंथ के सिर पर आ गया और दोनो हाथों से भगवान् सुपंथ का सिर सहलाने लगे। नेत्र खोले तो देखा सुपंथ भगवान् के चरणों में था । मुस्कुरा दिए भगवान। हनुमान् तुम जिसको बचाना चाहोगे, उसको कौन मार सकता है। संकट ते हनुमान छुड़ावें ।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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