सोमवार, 23 दिसंबर 2024

मानसचर्चा।।हनुमानजी भाग पाँच।। हनुमानजीकी पूंछ / पूछ सबसे लम्बी क्यों।।

मानसचर्चा।।हनुमानजी की  पूंछ / पूछ सबसे लम्बी क्यों।। यहां हम पूंछ शब्द में श्लेष करते हुवे क्रमशः पूंछ अर्थात् दुम tail और पूछ अर्थात् सम्मान respect के अर्थों में चर्चा करेंगे।हम इन  दोनों अर्थों  को लेते हुवे इस चर्चा का अंग बनकर हनुमान कथा के आनंद सागर में डुबकी  लगाए। किसी ने गोस्वामीजी से एक बार पूछा कि  पूरी सेना में हनुमानजी की सबसे ज्यादा लम्बी पूँछ क्यों है ? गोस्वामीजी ने कहा कि हनुमानजी की पूँछ सबसे लम्बी इसलिए है क्योंकि उनकी मूँछ नहीं है।हम प्रायः  यही पाते हैं कि हनुमानजी की मूँछ नहीं है। बिल्कुल क्लीन सेव, दाढ़ी तो है पर मूँछ नहीं। दाढ़ी गम्भीरता का प्रतीक है। मूँछ अहंकार का प्रतीक है। आजकल तो बिना मूँछ वाले भी भी जरा-जरा सी भी बात पर मूँछ ऐंठने लगते हैं। हनुमानजी में किसी प्रकार की भी ऐंठ नहीं, एकदम विनम्र इसलिए हनुमानजी की पूँछ है।और रावण को हनुमानजी से अगर कुछ भी चिढ़ है तो उनकी पूँछ से है। क्योंकि रावण दुष्ट है और दुष्ट व्यक्ति हमेशा सज्जनों की पूँछ से चिढ़ते हैं। और यह तमाशा देखे कि सारी दुनिया पूँछ के पीछे ही पड़ी है कि हमें तो कोई पूछता ही नहीं,हमारी पूछ हो तब न हम वहां जाएं। जहाँ देखो पूँछ का झगड़ा। हम सब पूँछ के पीछे भाग रहे हैं और पूँछ हनुमानजी के पीछे भाग रही है। इसलिए रावण को हनुमानजी की पूँछ से बहुत चिढ़ है। उसने कहा कि बन्दर की पूँछ में आग लगा दो और यह हर युग का नियम रहा है जब भी सज्जनों की पूँछ बढ़ती है तो दुष्टों के हृदय में ईर्ष्या की आग जलती है। और वह ईर्ष्या की आग सज्जनों पूँछ को प्रतिष्ठा को जलाने की कोशिश करती है लेकिन परिणाम क्या हुआ जैसे ही हनुमान जी की पूँछ जलाई-
बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला।रहा न नगर बसन घृत तेला।
अर्थात् नियम यह  है जब भी समाज के निकृष्ट कोटि के लोग सज्जनों की प्रतिष्ठा की पूँछ जलाने की कोशिश करेंगे तो उस पूंछ को  जलाना तो दूर की बात है वह पूँछ और अधिक बढ़ जाएगी। हनुमानजी की पूंछ का बाल भी बांका नहीं हुआ और उसके पीछे एक और कारण है। किसी ने हनुमानजी से पूछा कि आपकी पूँछ क्यों नहीं जली । हनुमानजी बोले, माँ ने रक्षा की थी। चूंकि लंका में आग नहीं लगाई  गई थी पावक लगाई गई  थी।जैसा कि रावण का आदेश भी था। तेल बोरि पट बाँधि पुनि,पावक देहु लगाई।और पावक में मेरी माँ जानकी  बैठी हुई है। आपने पंचवटी की घटना सुनी होगी जिसमें जब भैया लक्ष्मण कन्द, मूल, फल लेने जंगल में गए हैं तब भगवान् ने जानकीजी से कहा कि आप अपने तेज को पावक में समाहित कर दीजिए, अब मैं नर  लीला  करने जा रहा हूँ।रावण आएगा आपको स्पर्श नहीं कर पाएगा। आपका ऐसा तेजस्वी शरीर है। मायावी रूप धारण करिए ताकि लीला आगे बढ़े उस समय भगवान ने कहा कि
तुम्ह पावक महुं करहु निवासा।
जौ लगि करौं निसाचर नासा ॥ 
यह भगवान ने आज्ञा दी थी कि तुम पावक में निवास करो ।और रावण ने भी अग्नि को आज्ञा नहीं दी थी पावक को कहा था-
तेल बोरि पट बाँधि पुनि । पावक देउ लगाइ ॥
और जहाँ माँ बैठी हो वहाँ माँ क्रोध में दुष्टों को जलाएगी और वात्सल्य भाव में बालक की रक्षा करेगी,इसलिए हनुमानजी की पूँछ का बाल भी बांका नहीं हुआ।इस प्रकरण में यह भी हमें याद रखना चाहिए कि-
उलंघ्यसिन्धों: सलिलं सलिलं 
य: शोकवह्नींजनकात्मजाया:।
आदाय तैनेव ददाहलंका
नमामि तं प्राञ्जलिंराञ्नेयम।
अब आप विचार करें  कि शास्त्रों में पावक किसे कहते हैं? पावक कहते हैं भगवान के क्रोध को गोस्वामीजी  ने तो कहा ही है कि राम रोष पावक सौं जरहीं । भक्त के अपमान के समय भगवान् को जो रोष आता है उसको पावक कहते हैं। भगवान् सब कुछ सहन कर सकते हैं लेकिन अपने भक्त का अपमान सहन नहीं करते हैं। राम रोष पावक सो जरहीं, प्रभु राम तो कहते हैं कि मैं तो संतों का दास हूँ, संत तो मेरे शीश पर रहते हैं।
मैं तो हूँ संतन को दास संत मेरे मुकुटमणि ॥
पग चायूँ और सेज बिछाऊँ नौकर बनूँ हजाम।
हाँक बैल बनूँ  गड़वारौ बिनु तनुख्वा रथवान।
अलख की लखता बनी ॥
मैं तो हूँ संतन को दास संत मेरे मुकुटमणि ॥
श्रीहनुमानजी इतने अभिमान शून्य हैं। अपने बल का उपयोग अपने मान-अपमान के लिए नहीं करते।बल का उपयोग भगवान् प्रभु के कार्य के लिए करते हैं। और चूंकि हनुमानाजी अभिमान शून्य  हैं इसलिए हनुमानजी
भगवान् के प्रिय हैं। आप प्रभु राम  कोई झांकी ऐसी नहीं देखेंगे जो बिना हनुमानजी के हो। इसलिए किसी ने अच्छा गाया है कि 'दुनिया चले न श्रीराम के बिना, राम जी चले ना हनुमान के बिना' भगवान् , बिना हनुमानजी के एक कदम भी नहीं चलते। ऐसे “जय हनुमान ज्ञान गुन सागर" श्रीहनुमानजी ज्ञान और गुण के सागर हैं।
सिन्धु हैं, समुद्र हैं, ज्ञानिनाम् अग्रगण्यम् इतना बल व ज्ञान होने के बावजूद भी श्रीहनुमानजी अभिमानशून्य हैं।
इसीलिए हनुमानजी की पूँछ सबसे लम्बी  है इसलिए हनुमानजी की सदैव जय होती है।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।

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