✓मानस चर्चा ।।हनुमानजी भाग एक।।सुनु कपीस लंकापति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गम्भीरा ।।
मानस चर्चा ।।हनुमानजी भाग एक।।सुनु कपीस लंकापति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गम्भीरा ।।
सुंदरकांड की इस प्रश्नवाचक चौपाई में बीरा शब्द श्री हनुमान के लिए ही आया है ।अतः हम इसी बीरा शब्द के आधार पर श्री हनुमानजी पर चर्चा कर रहे हैं,चौपाई है-
सुनु कपीस लंकापति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गम्भीरा ।।
यह चौपाइ उस प्रसंग की हैं जब भगवान श्री राम लंका विजय का संकल्प कर चले हैं और सागर के किनारे
पहुँचे हैं। प्रभु सागर के किनारे विराजमान हैं। चार सौ कोस का विशाल अथाह सागर हिलोरें मार रहा है। प्रभु
थोड़े से चिन्तातुर भाव में हैं। बैठे-बैठे प्रभु सोच रहे हैं कि अब सागर कैसे पार हो ? प्रभु ने बाँये देखा, दाँये देखा। एक ओर सुग्रीवजी विराजमान हैं, एक ओर लंकाधिपति विभीषण महाराज विराजमान हैं। श्रीहनुमानजी सेवा में हैं। लक्ष्मण जी रक्षा में खड़े हैं। प्रभु ने सबको देखा और प्रश्न किया?
सुनु कपीस लंका पति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गम्भीरा ॥
संकुल मकर उरग झष जाती। अति अगाध दुस्तर सब भाँती ॥
प्रभु ने चिंता के भाव से पहले सुग्रीवजी की ओर निहारा, सुन कपीस! हे कपियों के ईश्वर हे सुग्रीव जी! फिर लंकाधिपति महाराज विभीषण की ओर देखकर कहा है, हे लंकाधिपति! और यह 'बीरा' गोस्वामीजी ने हनुमानजी के लिए संकेत किया है। हे वीर हनुमान् जी 'केहि विधि तरिअ जलधि गम्भीरा' इतना गहरा सागर ! अथाह दूर-दूर तक अनन्त जलराशि और इसके अन्दर अनेक, कुलसहित भयानक जलचर “संकुल, मकर उरग झष जाती” इसको कैसे पार करें ? “केहि विधि तरिअ ?” इसको कैसे पार करें ? बड़ा गम्भीर प्रश्न प्रभु ने उपस्थित किया। मुझे ऐसा लगता है कि भगवान् को ये सागर पार करना क्यों कठिन लगता है ? जिसका नाम भवसागर पार कराता हो और जिसका काम भवसागर पार कराना हो उनको यह सामान्य सागर पार करने के लिए चिन्तातुर होना पड़े, ये शायद लीला का दृश्य है। सच तो यह है कि भगवान यह प्रश्न हम सबके पार होने के लिए कर रहे थे। हम सब भवसागर में डूबे हैं। इस संसार रूपी क्रूज अर्थात् इस संसार रूपी विशाल जहाज पर आए हैं और संसार सागर में डूबे हैं। वहां विशाल महासागर , मीलों दूर तक फैला है जहाँ तक दृष्टि जाती है, वहाँ तक अथाह सागर हिलोरें मारता हुआ ऐसा नील वर्ण लगता है जैसे आकाश भूतल पर अवतरित हो गया हो। तो प्रभु ने जब सबकी ओर देखा, सबने अपने-अपने अनुसार, अपनी-अपनी मति के अनुसार, बुद्धि के अनुसार कहा भगवन् ! यह सागर आपका कुलगुरु है, इसकी विनय पूर्वक प्रार्थना करें, हाथ जोड़कर इससे मार्ग की कामना करें, यह हमको मार्ग देगा। प्रभु को तो अच्छा लगा, लेकिन लक्ष्मणजी को अच्छा नहीं लगा। लक्ष्मणजी के मन को ,यह सुहाया नहीं, लक्ष्मणजी ने कहा, कैसी
कायरों जैसी बात है महाराज ? कादर मन कहुं एक अधारा । दैव-दैव आलसी पुकारा।। वे कहते हैं कि प्रभु कायर और आलसी, दैव दैव की पुकार करते हैं। हम तो रघुवंशी हैं, हम पुरुषार्थी हैं, हमारे तरकश में अग्निबाण हैं, एक सागर क्या अनन्त सागर सोखे जा सकते हैं। बाण चढाइये ना , प्रभु मुस्कुरा दिए। चूँकि विभीषण जी की बात काटी नहीं जा सकती और लक्ष्मण जी को डाँटा नहीं जा सकता। दोनों की बात रखनी थी। जामवंत जी बुद्धिमान थे, वृद्ध थे और जब संकट आए तब वृद्धों की सलाह जरूर लेनी चाहिए। भगवान् ने जामवंत जी से पूछा आप बताएं सागर कैसे पार करें ? जामवंत जी ने कहा महाराज ! हमारी सेना में नल और नील नाम के दो शिल्पी हैं। 'शिल्प कर्म जानहिं नल-नीला ।' आपकी आज्ञा हो तो इस पर सेतु बाँधा जा सकता है, पुल बनाया जा सकता है। प्रभु सोच रहे हैं चार सौ कोस का सागर बिना किसी आधार के पुल बने तो बने कैसे ? प्रभु ने संकट मोचन श्रीहनुमानजी की ओर निहारा। हनुमान् जी मुस्कुरा दिए।हनुमान् , तुम बोलो न कैसे सागर पार करें ? हनुमानजी ने कहा प्रभु ! अनुभव ही सबसे ज्यादा प्रमाण हुआ करता है। इसमें तनिक भी चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं। मेरे पास इस सागर को पार करने का अनुभव है और मैं ऐसा मानता हूँ कि मेरा अनुभव सबको पार करा देगा । भगवान् ने पूछा तुम्हारे पास कौन सा अनुभव है- प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं।।भगवन् यह तो अनुभव सिद्ध है। आपके नाम की महिमा इसको तो क्या हजारों हजार मील लम्बे सागरों को पार करा सकती है। इसकी पुष्टि गोस्वामी जी ने नाम की महिमा में भी किया है-कलिजुग केवल नाम अधारा। सुमिरि सुमिरि नर उतरहिं पारा ।। भवसागर पार करने का उपाय श्रीहनुमान जी के पास है। और अगर श्रीहनुमानजी को प्राप्त करना हो तो कौन सा उपाय है। गोस्वामीजी ने कहा है कि यदि हनुमानजी को प्राप्त करना है तो श्री हनुमानचालीसा इसका उपाय है। क्योंकि हनुमानचालीसा हनुमानजी का सिद्ध मंत्र है। हनुमानचालीसा हनुमानजी का सिद्ध ग्रन्थ है। हनुमानजी को प्राप्त करने का यह सिद्ध पंथ है। विश्व का कोई भी हिन्दू, चाहे वह विश्व के किसी भी कोने में रहता हो, वह तीन मंत्र अवश्य जानता है। एक तो वेद का जो महामंत्र है गायत्री मंत्र ! इसे हर हिन्दू जानता है और हिन्दू का हर बालक जानता है,अगर नहीं जानता है तो इसे जानना ही चाहिए “ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितु र्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्” । संसार का हर हिन्दू गायत्री मंत्र को जानता है। किसी भी उपासना, पद्धति को मानने वाला हिन्दू भी “मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी ॥ " इस चौपाई को जानता भी है और गाता भी है। तीसरे शुद्ध हो, अशुद्ध हो, पूर्ण हो, अपूर्ण हो लेकिन संसार का प्रत्येक हिन्दू श्रीहनुमानचालीसा को भी जानता है। लोग कहते हैं कि आजकल युवक धर्म से विचलित हो रहे है लेकिन ऐसी बात नहीं है। युवकों में हनुमानजी तथा हनुमानचालीसा के प्रति आकर्षण दिखाई देता है, यह हनुमानजी की महिमा है। हनुमानजी को यदि प्राप्त करना है तो हनुमानचालीसा का आश्रय लें और एक विशेष बात,हर व्यक्ति की कोई न कोई एक निजी पसन्द होती है, रुचि होती है। हनुमानजी की रुचि क्या है? रामचरित्र सुनवे को रसिया । हनुमानजी की रुचि है श्रीरामनाम सुनने में वे रामचरित्र सुनने के रसिक हैं, जब भी सुनते हैं वे भगवान् की मंगलमय कथा सुनते हैं। यह हनुमानजी की रुचि का विषय है। भगवान् जब सुनते हैं तो हनुमानजी की कथा सुनते हैं। जब युद्ध के समय लंका में प्रभु सायंकाल अवकाश के क्षण में होते थे तो जामवंत जी को अपने पास बुलाते थे और जामवंत जी के श्रीमुख से हनुमानजी की कथा सुनते थे- गोस्वामी जी ने इसका संकेत किया है। पवनतनय के चरित सुहाये । जामवंत रघुपतिहिं सुनाये ॥ भगवान् जब भी सुनते हैं हनुमानजी का चरित्र सुनते हैं और जब भी अपने श्रीमुख से सुनाते हैं तो हनुमानजी की ही कथा सुनाते हैं- गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई।बार बार प्रभु निज मुख गाई।
जब भी हनुमानजी की कुछ सुनने की इच्छा होती है तब वहाँ श्रीराम कथा होती है और जब भगवान् को कुछ सुनने की इच्छा होती है तब वहाँ हनुमानजी की कथा होती है । हनुमानचालीसा, हनुमानजी का सिद्ध मंत्र, क्योंकि भगवान शिव और पार्वतीजी इसके साक्षी हैं “होय सिद्धि साखी गौरीसा।" हनुमानचालीसा एक सिद्धि प्रदाता ग्रन्थ है। इहलोक व परलोक की सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाला है। यह पूरा का पूरा आशीर्वाद से भरा हुआ है क्योंकि हनुमानजी को आशीर्वाद माँ ने दिया है- अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।अस बर दीन्ह जानकी माता। आशीर्वाद के रूप में हनुमानचालीसा की प्रत्येक चौपाई के अन्दर जानकीजी विराजमान हैं, माँ विराजमान हैं। यह हनुमानजी की शक्ति है जो माँ ने उन्हें प्रदान की है इसलिए हनुमान चालीसा हमें भोग भी दे सकता है और भगवान् से भी मिला सकता है। राम मिलाय राजपद दीन्हा। यह भक्ति भी देता है और मुक्ति भी देता है। यह परलोक को भी सम्भालता है और इहलोक को भी सम्भालता है। आदि दैहिक,आदि दैविक, आदि भौतिक जो भी इच्छा हो यह हनुमानजी के द्वारा, हनुमानचालीसा के द्वारा पूर्ण की जा सकती है। यह भवरोग को मिटाने वाला मंत्र है, इसकी विशेषता है कि इसमें किसी प्रकार के विशेष अनुष्ठान करने की भी आवश्यकता नहीं है। किसी भी देवता को आप प्रसन्न करना चाहेंगे तो बहुत ही विधि-विधान से उनका अनुष्ठान करना पड़ेगा, उसके मंत्र हैं, मन्त्रों की आहुतियां हैं, नियम हैं, बहुत सारी व्यवस्थायें है, तब कहीं जाकर वह देव प्रसन्न होते हैं, कृपा करते हैं, लेकिन श्रीहनुमानचालीसा को सारे विधि-विधान, सारे नियम, सारी व्यवस्थाओं से गोस्वामीजी ने अलग कर दिया और एक ही व्यवस्था दी है-जो यह पढ़े हनुमानचालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ गोस्वामीजी महाराज ने लिखा है कि जो यह पढ़े यानि कोई भी स्त्री-पुरुष चाहे वह किसी भी संवर्ग को केवल पढ़े, इसका कोई और दूसरा विधि निषेध नहीं है, एक ही विधि है कि इसको पढ़िये और एक ही निषेध है कि इसका पठन-पाठन कभी छोड़िए नहीं।
जैसे हम अखबार पढ़ते हैं, जैसे हम पत्र-पत्रिका पढ़ते हैं, उसका कोई नियम नहीं होता। अखबार पढ़ते जाते
हैं, उसके साथ चाय भी पीते जाते हैं। अखबार पढ़ते-पढ़ते मित्र से बात भी करते जाते हैं। तो जैसे पढ़ने का वहाँ कोई नियम नहीं है ऐसे ही हनुमानचालीसा के पढ़ने का भी कोई नियम नहीं है। कोई पढ़े, कैसे भी पढ़े, कहीं भी पढ़े और कभी भी पढ़े। यह अपना फल देगा ये शत-प्रतिशत गारण्टी है। भगवान शिव इसके साक्षी हैं और इसके लिए किसी पात्रता की भी आवश्यकता नहीं है। कोई पात्रता नहीं, एक ही पात्रता है कि इसका नियमित पाठ करें। नियमित पाठ ही इसकी पात्रता है। बालक पढ़ें, बूढ़े पढ़ें, युवक पढ़ें, युवती पढ़ें, स्त्री पढ़ें, पुरुष पढ़ें, शुद्ध पढ़ें, अशुद्ध पढ़ें, शुभ पढ़ें, अशुभ पढ़ें, जैसे चाहे वैसे पढ़ें, जहाँ चाहें वहाँ पढ़ें और जब चाहें तब पढ़ें। समय की भी कोई मर्यादा नहीं, सुबह पढ़ें, शाम पढ़ें, दोपहर पढ़ें, रात्रि पढ़ें, आसन पर बैठकर पढ़ें, चारपाई पर लेटकर पढ़ें, यह फल देगा। मज्जन फल पेखिअ ततकाला। काक होहिं पिक बकउ मराला। एक विशेषता हनुमानजी की और है, आप हर देवता से हर वस्तु नहीं ले सकते, क्योंकि जैसे केन्द्रीय सरकार की कैबिनेट होती है और हर कैबिनेट मंत्री के पास उसका एक विभाग होता है तो वह अपने विभाग का निर्णायक होता है, वह दूसरे मंत्रालय के अन्दर अपना कोई सुझाव तो दे सकता है, निर्णय नहीं दे सकता, आप जिस देवता की उपासना करेंगे उस देवता के पास जो शक्ति है, जो आशीर्वाद है वही वह आपको दे सकता है, लेकिन हनुमानजी ऐसे देव हैं कि आप इनसे जो चाहें वह प्राप्त कर सकते हैं। और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई । सब प्रकार के सुखों को प्रदान करना यह हनुमानजी के वश में है क्योंकि वें मात्र देव नहीं हैं बल्कि देवाधिदेव महादेव के अवतार हैं। इसलिए आप जो चाहें सो इनसे प्राप्त कर सकते हैं। किसी ने क्या खूब गाया है हनुमानजी के बारे में-
दुनियां में देव हजारों हैं, बजरंग बली का क्या कहना।
इनकी शक्ति का क्या कहना, इनकी भक्ति का क्या कहना।
दुनियां में देव हजारों हैं, बजरंग बली का क्या कहना ।।
ये सात समुन्दर लांघि गये, और गढ़ लंका में कूद गये।
रावण को डराना क्या कहना, लंका को जलाना क्या कहना।
दुनियाँ में देव हजारों हैं, बजरंग बली का क्या कहना ।।
जब लक्ष्मण जी बेहोश हुए, संजीवन बूटी ले आये।
पर्वत को उठाना क्या कहना, लक्ष्मण को बचाना क्या कहना।
दुनियां में देव हजारों हैं, बजरंग बली का क्या कहना ।।
हे भक्तो ! इनके हृदय में, सियाराम की जोड़ी बैठी है।
ये राम दिवाना क्या कहना, गुण गाये जमाना क्या कहना।
दुनियां में देव हजारों हैं, बजरंग बली का क्या कहना ।।
श्री हनुमानजी अनुपम हैं, अद्वितीय हैं और इसलिए हम हनुमानजी से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु आप अपने
भक्तों पर कृपा बनाए रखना।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।


0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]
<< मुख्यपृष्ठ