मानसचर्चा।। श्रीहनुमानजी भाग छब्बीस।।हनुमानजी का पद।।
मानसचर्चा।। श्रीहनुमानजी भाग छब्बीस।।हनुमानजी का पद।।
हनुमानजी के लिए बाबा ने कहा है कि
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहूं लोक उजागर।
और हनुमानजी वानरों के रक्षक भी हैं। राखेहू सकल कपिन के प्राणा यह कपियों के वास्तव में ईश्वर हैं, रक्षक हैं। जय कपीस तिहूं लोक उजागर। श्रीहनुमान का यश तीनों लोकों में है। स्वर्ग में देवता इनका यशोगान करते हैं। मृत्युलोक में राम-रावण संग्राम में सारे ऋषि-मुनि, सारे मानव एवं दानव सभी ने यहाँ तक की दानवराज रावण ने भी हनुमानजी की प्रशंसा की है।पाताललोक मेंअहिरावण व महिरावण भगवान् का हरण करके ले गए थे तो जाकर देवी की प्रतिमा में विराजमान होकर श्रीहनुमानजी ने भगवान् की रक्षा की है। वह बड़ा मार्मिक प्रसंग है। हनुमानजी देवी की प्रतिमा में प्रवेश कर गए। अहिरावण, महिरावण ने देवीजी को प्रसन्न करने के लिए 56 भोग लगाए और हनुमानजी युद्ध में बहुत दिनों तक भोजन नहीं कर पाए थे। टोकरी पे टोकरी चढ़ाए जा रहे हैं। हनुमानजी कह रहे हैं ले चले आओ, ले चले आओ और हनुमानजी लड्डू खा-खा कर बहुत प्रसन्न, अहिरावण और महिरावण
देखकर मन ही मन बहुत प्रसन्न कि आज देवी जी बहुत प्रसन्न हैं। हनुमानजी सोच रहे हैं कि बेटा चिंता मत कर। एक साथ इसका फल दूँगा । तो पाताललोक में, नागलोक में अहिरावण, महिरावण, भूलोक में ऋषि व मुनि, मृत्युलोक में देवता, लोकउजागर ऐसे श्रीहनुमानजी जिनका यश सर्वत्र व्याप्त है। हनुमान चालीसा की चौपाई-
राम दूत अतुलित बल धामा अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।कह रही है कि श्रीहनुमानजी महाराज भगवान् श्रीराम के दूत हैं रामदूत हैं। जानकीजी के पास में गए तो माँ ने यही प्रश्न किया, तुम हो कौन, अपना पता व परिचय दो। तो हनुमानजी ने अपने परिचय में इतना ही कहा रामदूतमैं मातु जानकी । सत्य सपथ करुना निधान की। अपने परिचय में हनुमानजी यही बोले माँ मैं भगवान् श्रीरामजी का दूत हूँ। हनुमानजी की वाणी सुनकर माँ ने कहा दूत बन कर क्यों आया है भैया, तू तो पूत बनने के योग्य
है। पूत बन कर क्यों नहीं आया? हनुमानजी बोले पूत तो आप बनाओगी तभी तो बनूँगा। मैंने इतना कहा तो
जानकीजी आगे जब भी बोलीं हमेशा पूत शब्द का प्रयोग किया
हैं सुत कपि सब तुमहि समाना।
जब-जब बोली हैं जानकीजी, पुत्र बोल कर सम्बोधित किया इसके बाद भगवान् बोले हैं- सुनु सुत तोहि उरिन मैं
नाहीं। क्योंकि पुत्र का जो प्रमाण पत्र है वह तो माँ देती है। भगवान् अगर पहले पुत्र कह कर सम्बोधित कर
देते तो जगत की व्यवहारिक कठिनाई खड़ी हो जाती, क्योंकि पुत्र तो माँ के द्वारा प्रमाणित होता है। क्योंकि
माँ जो बोलेगी, माँ ही तो बोलेगी कि मैंने जन्म दिया है। इससे पहले माँ ने पुत्र कह कर सम्बोधित किया फिर जब भगवान् भी बोलते हैं तो पुत्र कह कर ही बोलते हैं। रावण के पास भी जब हनुमानजी गए तो रावण ने पूछा अरे बन्दर तेरे पास पद कौन सा है। किस पद की हैसियत से तू यहाँ पर आया है क्योंकि समाज में प्रतिष्ठा पद की है और जब से पद को प्रतिष्ठा मिली है तब से समाज में ईर्ष्या व द्वेष बढ़ा है। फिर बुरे से बुरा व्यक्ति पद प्राप्त कर लेता है, और इस कारण प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेता है। जो बुरे से बुरा व्यक्ति पद पर बैठा है उसको आप आदर देते हैं। अच्छे से अच्छा व्यक्ति चरित्रवान व्यक्ति अगर छोटा है, किसी पद पर नहीnहै तो हम उसको सम्मान नही देते हैं। हम अपने घर के नौकर को कहाँ सम्मान देते हैं। बेईमान से बेईमान
व्यक्ति अगर पद पर विराजमान हो, आप उसको आदर देते हैं। समाज में चरित्रवान ईमानदार को कहाँ सम्मान
मिलता है। रावण ने भी पूछा तेरे पास पद कौन सा है और हनुमानजी जीवन भर पद से दूर रहे। देखिए एक बात है, पद से तो दूर रहे पर क्या पद पर विराजमान रहे। उन्होंने जगत का पद नहीं लिया, जगत पिता के पद पर विराजमान रहे। आपने वह घटना सुनी होगी! भगवान् ने एक बार हनुमानजी से बहुत प्रेम के भाव मे बोला भगवान् ने कहा हनुमान आज मन में एक बात आ रही है मानो तो कहें? हनुमानजी बोले बोलिए प्रभु क्या कह रहे हैं? भगवान बोले हनुमान तुमको तो मालूम है कि कोई जगत में हमारा तनिक सा भी कार्य करता है, सहयोग करता है तो हम उसको दस-दस गुना करके वापस करते हैं। अंगद ने हमारा सहयोग किया हमने उसको किष्किन्धा का युवराज बना दिया। सुग्रीव ने हमारा सहयोग किया हमने किष्किन्धा का राजपाद उसको दे दिया। विभीषण ने हमारा सहयोग किया तो हमने लंका का राजपद उसे दे दिया और भले आदमी तुमने तो सारा जीवन हमको दे दिया लेकिन कभी हमने तुम्हें अपने हाथों से कुछ न दिया। यह मुझे मालूम है किन्तु तुम निवृत्तिमार्गी हो, तुमको कुछ नहीं चाहिए लेकिन मेरी प्रसन्नता के लिए कि मुझे अच्छा लगे कि मैंने हनुमान् को कुछ दिया है। आज तुम कुछ मांगो, जब भगवान् ने कहा कि तुम कुछ मांगो, हनुमानजी भी थोड़े मूड़ में आ गए। हनुमानजी कहा कि सचमुच कुछ देना चाहते हो या वैसे ही किसी मीठी बात में फँसाना चाहते हो? भगवान् ने कहा माँग तो सही तेरे मन में कुछ मांगने की इच्छा तो आई, बोल क्या चाहिए, हनुमानजी ने
कहा भगवन् एक तो हम पद नहीं ले सकते क्योंकि पद लेने का अर्थ है कि मनुष्य को भूत बनना पड़ता है.
जिसके पास पद आएगा उसको भूत बनना पड़ेगा और पद मेरे पास आ नहीं सकता क्योंकि मेरे पास भूत भी
नहीं आ सकता फिर कहते हैं मेरे बारे में सबको मालूम है ना-
भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥
तो हनुमानजी ने कहा कि पद मेरे पास आएगा नहीं, क्योंकि पद के साथ भूत जुड़ा है और भूत मेरे नाम से
ही भागता है। भगवान् ने कहा हमारी इच्छा है, हमारी इच्छा के लिए माँगो हनुमानजी ने कहा कि ऐसा है तो सुनिये आपने सबको एक-एक पद दे रखे हैं किसी को युवराज पद, किसी को राजपद मैं एक पद से तो राजी नहीं हूँगा । भगवान ने कहा माँग तो सही कितने पद चाहिए? जब भगवान् ने पूछा कितने पद चाहिए तो तुरन्त हनुमानजी ने भगवान के दोनों चरण पकड़े और बोले मुझे तो ये दोनों पद चाहिए। बाकी कोई पद किसी को भी दे दीजिए।
जाहि न चाहिय कबहुँ कछु, तुम्ह सन सहज सनेह ।
बसहु निरन्तर तासु उर, सो राउर निज गेह ।।
भगवान् मुझे तो आपके चरण पद चाहिए और भगवन् बाकी पद देकर आप भूत बनाना क्यों चाहते हैं, मैं तो अभूतपूर्व रहना चाहता हूँ। और सचमुच में श्रीहनुमानजी अभूतपूर्व हैं। क्योंकि जब रावण ने पूछा अरे
पास पद कौन सा तो हनुमानजी ने यही उत्तर दिया।
जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि ।
तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥
मैं श्रीराम दूत हूँ।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।
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