मानसचर्चा।।श्रीहनुमानजी भाग पच्चीस।।सज्जन पर कृपा।।
मानसचर्चा।।श्रीहनुमानजी भाग पच्चीस।।सज्जन पर कृपा।।
सज्जन के पास सारे सद्गुण आया करते हैं बुलाने नहीं पड़ते। सज्जन शब्द मानस का प्रिय शब्द है।
मानस में सज्जन की परिभाषा है। हनुमानजी ने विभीषण के द्वार पर यह शब्द प्रयोगं किया इहाँ-कहाँ सज्जन कर बासा। हनुमान ने विभीषण को सज्जन के रूप में देखा। यहाँ सज्जन कैसे निवास करता है। सज्जन क्यों कहा क्योंकि विभीषण जब जागे हैं तो भगवान् के नाम का सुमिरन किया है।
राम-राम तेहिं सुमिरन कीन्हा ।
हृदय हरष कपि सज्जन चीन्हा ॥
एक तो श्रीहनुमानजी ने सज्जन की परिभाषा दी, सज्जन कौन है? जो भगवान् रामचन्द्रजी का सुमिरन
करे, हनुमानजी को वही सज्जन दिखाई देता है।
राम-राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयं हरष कपि सज्जन चीन्हा ॥और ऐसे सज्जन को पहचान कर श्रीहनुमानजी गद्गद् हो गए और जो राम नाम का सुमिरन करे वह सज्जन है। दूसरे सज्जन की परिभाषा सागर से आई है। जब चन्द्रमा पूर्णमासी का होता है तब आपने सुना होगा कि सागर में ज्वार उठता है, सागर उमड़ता है और यह गोस्वामीजी ने संकेत दिया है।
सज्जन सुकृत सिन्धु सम होई।
देखि पूर बिधु बाढहिं जोही ।
जो दूसरे को बढ़ता हुआ देखकर आनन्द में उमड़े, वह सज्जन है। हम दूसरे को बढ़ता देख कर जलते हैं। सागर उमड़ता है, सागर उछलता है, चन्द्रमा आकाश में बढ़ रहा है और धरती पर सागर उमड़ रहा है। जो किसी को आकाश में बढ़ता हुआ, उड़ता हुआ उठता हुआ, उमड़ता हुआ देखता है उसमें सज्जनता वास करती है। जिसका हृदय उमड़ता हो, प्रसन्नता से भरता हो वह सज्जन है। हम सबकी दशा कैसी है। अब हम अपने बारे में विचार करें कि हम कितने सज्जन हैं। पड़ौसी का बालक प्रथम श्रेणी में पास हुआ है। सुनकर अपने को कैसा लगता है? हमारा पड़ौसी हमसे ज्यादा महंगी कार खरीद कर ले आया है, देखकर हमको कैसा लगता है ? हमारे पड़ौसी का कारोबार हमसे आठ गुना बढ़ गया है। सुनकर हमें कैसा लगता है? सज्जन की परिभाषा बाहर मत ढूंढिये। सज्जन की परिभाषा अपने अन्दर खोजिए। सच यह है कि हम किसी को बढ़ता देख ही नहीं सकते, देखना तो बहुत बड़ी बात, हम सुन नहीं सकते। मनुष्य का स्वभाव देखो न, कोई किसी की बुराई कर रहा हो, बड़े-बड़े व्यक्ति की बुराई कर रहा हो तो आप कभी नहीं टोकेंगे कि नहीं-नहीं, आप नहीं जानते उनके बारे में हमको मालूम है। इतने सज्जन हैं, उनके बारे में आप कैसे बोल रहे हैं? आप उनकी बुराई को रस लेकर सुनते जाएंगे। बहुत ज्यादा आप बड़प्पन दिखाएंगे तो नमक मिर्च नहीं लगाएंगे। शान्ति से सुन लेंगे।
लेकिन अगर कोई किसी की प्रशंसा कर रहा हो तो आप तुरन्त टोक देंगे। नहीं-नहीं, आप क्या जानते हो उनके बारे में? उनके बारे में तो हम जानते हैं, हमको मालूम है। यह हमारा स्वभाव है। हम बुराई को तत्काल अपनी सहमति देते हैं। किसी में दोष है या नहीं हमको मालूम नहीं परन्तु हम तुरन्त सहमति देते हैं कि ऐसा जरूर होगा। आप ठीक कह रहे हैं, लेकिन अगर कोई किसी की प्रशंसा करे तो हम तत्काल टोकते हैं, रोकते हैं कि नहीं-नहीं, आपको मालूम नहीं। यह भीतर जो ईर्ष्या की जलन है न, यह किसी दूसरे की प्रशंसा सुनने के लिए तैयार नहीं है। किसी को बढ़ता हुआ देखना इसको पसंद ही नहीं। एक बहुत सुन्दर कथा है, एक सज्जन ने किसी संत से आशीर्वाद ले लिया तो उन्होंने कह दिया, जाओ सागर की उपासना करो। अगर सागर प्रसन्न हो गए तो तुमको सागर एक चमत्कारी शंख प्रदान कर देंगे जिससे जो चाहो ऐश्वर्य-वैभव ले सकते हो। इसलिए उसने सागर के किनारे जाकर अनुष्ठान किया और सागर ने प्रसन्न होकर इनको एक शंख प्रदान कर दिया और कहा कि जाओ इसको दूध से अभिषेक करके
जो चाहोगे वह मिलेगा। इसमें एक शर्त जुड़ी है कि इससे जितना तुम्हें मिलेगा उससे दोगुना तुम्हारे पड़ौसी को
मिलेगा, यह इस शंख की विशेषता है। अब यह शंख तो ले आया और सोचने लगा कि इस शंख से मांगूंगा तो पड़ौसी का दोगुना हो जाएगा और पड़ौसी को ही तो चौपट करने के लिए मैंने पूजा की थी। बड़ी मुश्किल से उसने शंख को पूजाघर में रख दिया। पत्नी को यह मालूम था कि शंख की पूजा से जो चाहो वो मिलता है, तो यह व्यक्ति कहीं बाहर गया और पत्नी ने शंख उठाया दूध से अभिषेक किया। पूजा-अर्चना की हाथ जोड़ कर यह मांगा कि हमें एक गाड़ी और एक बंगला मिल जाए। पड़ौसी को दो गाड़ी और दो बंगले मिल।गए। जब पति आए और देखा कि पड़ौसी के दो बंगले, दो बड़ी-बड़ी गाड़ी। पत्नी से पूछा, तुमने इस शंख की पूजा की थी क्या? हाँ इतने दिनों से खाली रखा था। अरे पगली, पूजा तो की परन्तु पड़ौसी दोगुना हो गया। मैं नहीं कर सकता था क्या? मैं पड़ौसी के कारण नहीं कर पा रहा था। भले ही हम भूखे मरें परन्तु
पड़ौसी को भोजन नहीं मिलना चाहिए।अब पुरुष ने शंख की पूजा की। शंख ने पूछा बोलो क्या चाहते हो तोबोला ऐसा करो सरकार, मेरे घर के सामने पानी का बहुत बड़ा संकट है एक गहरा कुआं खोद दो तो शंख ने इसके सामने एक गहरा कुआं खोदा और पड़ौसी के सामने दो कुएं खुदवा दिए क्योंकि पड़ौसी को दूने का आशीर्वाद था । तो शंख ने कहा और कोई चाह बोलो बोला- मेरी एक आंख फोड़ दो, जो होगा सो देखा जाएगा। जब मेरी एक आँख फूटेगीं, तो पड़ौसी की दोनों आँख फूटेगीं। यह मनुष्य की प्रकृति है जो दूसरे को।बढ़ता न देख पायें, वो दुर्जन है। यह जो सहानुभूति शब्द है न यह बहुत चालाकी का शब्द है। सहानुभूति आप।सभी संकट में दिखाते हैं। किसी की कोठी या फैक्ट्री में आग लग गई या किसी की कोठी को नगरपालिका के बुलडोजर ने ढहा दिया तो आप दिखाने के लिए सहानुभूति के शब्द लेकर घड़ियाली आँसू लेकर चले जाओगे । लेकिन किसी पड़ौसी ने बहुत बड़ा बंगला बनवा लिया तो उस खुशी में लड्डू बांटने नहीं जाओगे।
किसी का बालक फेल हो गया तो सहानुभूति देने चले जाओगे लेकिन किसी का बालक पास हो गया तो
खुशी में लड्डू लेकर नहीं जाओगे तो सहानुभूति आपकी चतुराई है। आप उसे दुःख में देखना चाहते हैं और
दिखावे के मीठे शब्द बोलकर अपने मन को आनन्दित करना चाहते हैं तो क्या यह सज्जनता है? आसमान में
चन्द्रमा पूर्ण हो रहा है और नीचे धरती पर समुद्र उमड़ रहा है इसको सज्जनता कहते हैं। जो दूसरे की बढ़ती
को देखकर उमड़े। उसको सज्जन कहते हैं। और तीसरी सज्जनता की परिभाषा भगवान् ने दी-
जननी जनक बंधु सुत दारा।
तनु धनु भवन सुहृद परिवारा।।
सब कै ममता ताग बटोरी।
मम पद मनहि बाँध बरि डोरी।
अस सज्जन मम उर बस कैसें।
लोभी हृदयं बसइ धनु जैसें ॥
भगवानजी ने विभीषणजी को कहा है नौ जगह मनुष्य की ममता रहती है। माता, पिता, भाई, पुत्र, स्त्री, शरीर, धन, घर, मित्र और परिवार में जहाँ-जहाँ हमारा मन डूबता है जहाँ-जहाँ हम डूब जाते हैं, इन सब ममता।के धागों को बट कर एक रस्सी बना, तब उस ममता की रस्सी को मेरे पैरों से बाँध दे अर्थात हमसे ममता करे वह सज्जन है ।चौथी परिभाषा हनुमानजी कहते हैं - सज्जन कौन है, बोलते, उठते, सोते, जगते हरि नाम लेता है, भगवान् का सुमिरन करता है, वो सज्जन।है। सागर कहते हैं जो दूसरे को बढ़ते हुए देख उमड़ता हो, वो सज्जन है जो सबकी ममता मुझसे जोड़ दे, मेरे चरणों में छोड़ दे “सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणंब्रज ।” जो सबकी ममता को मुझसे जोड़ दे सबका दर्शन।मेरे अन्दर करे, वह सज्जन है। बाबा गोस्वामीजी लिखते है कि ऐसे सज्जन से हनुमानजी हठपूर्वक मित्रता करते हैं।
एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी ।
साधु ते होइ न कारज हानी ।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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