सोमवार, 23 दिसंबर 2024

मानसचर्चा।।श्रीहनुमान भाग चौबीस।। शील।।

मानसचर्चा।।श्रीहनुमान भाग चौबीस।। शील।।
हनुमानजीको माँ का आशीर्वाद है । होहुँ तात बल शील निधाना, देखिए गुण के साथ शील होना आवश्यक है। शील आएगा माँ के आशीर्वाद से भक्ति की कृपा गुण में शील के साथ जुड़ी है और भक्ति श्रीहनुमानजी के आशीर्वाद से मिलेगी, अन्यथा तो गुण अभिमानी हो जाता है। हमारे सबके गुण अभिमान लेकर आते हैं और हनुमानजी के गुण भगवान् को लेकर आते हैं। गुण माने योग्यता तथा गुण रस्सी को भी कहते हैं। गुणवान अनेक प्रकार के बन्धनों में बंधे भी देखे जाते हैं। गुण अभिमान के बन्धन में हमको बाँध देते हैं। गुण बहुत धीरे-धीरे शील के साथ आते है। बहुत सुन्दर चौपाई लिखी है-
सिमिटि सिमिटि जल भरहिं तलाबा ।
जिमि सद्गुन सज्जन पहिँ आवा।।
गुण के साथ शील चाहिए, धर्मशील, विनयशील, दानशील- 
विनयशील करुणा गुण सागर।
जयति बचन रचना अति नागर।
शील माने दयालुता, विनम्रता, सरलता, सहजता। आपने प्रहलादजी की कथा सुनी है। प्रहलादजी ने अपने तपोबल से तीनों लोकों का राज्य अपने वशीभूत कर लिया। इन्द्र घबराकर भगवान् के पास आए और इन्द्र ने कहा महाराज लगता है कि मेरा सिंहासन भी जानेवाला है क्योंकि प्रहलादजी ने अपने बल से तीनों लोकों पर आधिपत्य कर लिया है। मेरा राज्य मुझे कैसे मिले युद्ध मैं उनसे कर नहीं सकता इतने बलवान हैं। भगवान ने कहा कि प्रहलादजी भी दानशील व शीलवान हैं। आप जाइये ब्राह्मण का वेष बनाकर और जो माँगना है उनसे माँग लीजिए, वे मना नहीं करेंगे। ब्राह्मण वेष बनाकर इन्द्र प्रहलादजी के दरबार में आए, प्रहलाद ने अन्तर्दृष्टि से जान लिया कि ब्राह्मण रूप में इन्द्र है। पूछा,अरे ब्राह्मण देवता कैसे आगमनहुआ,
क्या चाहते हैं। ब्राह्मण ने एक-एक करके बल, वैभव, सम्पति, ऐश्वर्य, राज्य, शक्ति जो कुछ भी उनको माँगना
था माँगते चले गए। तथास्तु - तथास्तु प्रहलाद देते चले गए। जब सब कुछ दे दिया तो इन्द्र ने कहा कि अब मुझे आपका सत्य चाहिए सत्य भी दे दिया, शक्ति भी चाहिए शक्ति भी दे दी। अंत में कहा कि हमें आपका शील भी चाहिए। प्रहलादजी ने कहा हम आपको शील नहीं देंगे। तो ब्राह्मण वेशधारी इन्द्र ने कहा आपने तो सब कुछ देने का वचन दिया था तो आप मना क्यों कर रहे हैं? यह आपको शोभा नहीं देता। तो प्रहलादजी ने मुस्कुराकर कहा कि ब्राह्मण देवता शील मांगना न तो आपके हित में है, न मेरे हित में है। पूछा कैसे ? तब प्रह्लाद जी ने हँसकर कहा कि महाराज, मैं आपको जानता हूँ, आप तो इन्द्र हैं और ब्राह्मण वेष में आप मुझसे छल करके माँगने आए हैं। यह जानने के बावजूद भी कि आप छल करके मुझसे सब कुछ माँग रहे हैं, फिर भी दे रहा हूँ यह मेरा शील ही तो है। अगर मैं शील भी आपको दूँगा तो मारपीट के सब कुछ आपसे छीन लूँगा । इसलिए भलाई इसी में है कि शील छोड़ जाइए, सब कुछ ले जाइए। अन्यथा शील मैंने आपको दे दिया तो मैं सब कुछ आपसे छीन लूँगा । ज्ञान के साथ अगर शील है 'होहु तात् गुणशील निधाना' गुण
के साथ शील है तो भगवान् रहेंगे, गुण के साथ अभिमान रहेगा तो मान और अपमान के साथ हमेशा रोते रहेंगे जैसे
सिमिटि सिमिटि जल भरहिं तलाबा। जिमि सदगुन सज्जन पहँ आवा।। ऐसे ही सद्गुण अपने आप आते हैं। एक नियम समझिए, जीवन में एक सद्गुण आपके अन्दर आ
गया तो एक ही सद्गुण सारे सद्गुणों को बुला लेता है और जीवन में यदि एक भी दुर्गुण आ गया तो सारे
दुर्गुणों को बुला लेता है। आ जाओ आ जाओ आपको भी जगह मिल जाएगी। सारे रिश्तेदारों को भी अपने
यहाँ बुला लेते हैं। एक कहावत है कि- गांव के लोग अपनी लड़की की शादी के लिए लड़का देखने गए। लड़का देखा
अच्छी नौकरी में था, किसी पड़ौसी से पूछा कि बिटिया की शादी पक्की करना चाहते हैं। चूंकि पड़ौसी ही असलियत जानते हैं और पड़ौसी ही असलियत बताते हैं। पड़ौसी ने कहा लड़का तो अच्छा है, सर्विस भी अच्छी करता है, लेकिन लड़के को पुरानी खाँसी है। आजकल खाँसी, टी.बी. कोई ऐसा रोग नहीं है जो ठीक न हो पाए। आजकल अच्छी-अच्छी औषधि बन गई है यह भी ठीक हो जाएगी। लड़के को टी.बी. है क्या? बोले नहीं, साहब टी.बी. तो क्या, नई उम्र का बालक है लड़कों के साथ पीने की आदत पड़ गई है। ओह तो इसका मतलब लड़का शराब भी पीता है क्या? नहीं साहब इस मंहगाई के जमाने में कौन शराब पी पाएगा वो।तो जब कभी जुए में हाथ लग गया तो थोड़ी सी पी लेता है। अच्छा-अच्छा लड़का जुआरी भी है। नहीं-नहीं।साहब जुए के लिए रोज-रोज पैसा कहाँ से लाएगा वो तो कभी-कभी किसी की जेब साफ कर लेता है या किसी की साईकिल या स्कूटर मिल जाता है तो दाव लगा लेता है। अच्छा तो लड़का चोरी भी करता है। तो एक दुर्गुण आया हजार दुर्गुण पीछे चले आए, एक सद्गुण आएगा तो वो हजारों सद्गुणों को बुलाएगा। जल हमेशा गड्ढे में ही भरता है ऊँचे-ऊँचे पर्वत के शिखर खाली रह जाते हैं। छोटी-छोटी पोखर भर
जाती हैं क्योंकि जो अकड़कर खड़ा है उस पर कृपा की वर्षा तो होगी परन्तु सारा जल व्यर्थ में इधर-उधर
बह जायेगा क्योंकि जल तो गड्ढे में ही भरता है। जो विनम्र है उसके अन्दर कृपा आकर बैठ जाएगी। इसको
गोस्वामीजी ने सज्जन कहा है-
जिमि सरिता सागर महँ जाहीं।
जद्यपि ताहि कामना नाहीं ।।
तिमि सुख सम्पत्ति बिनहिं बुलाये । 
धरमसील पहँ जाहि सुहाये ॥
सिमिटि - सिमिटि जल भरहिं तलाबा ।
जिमि सद्गुन सज्जन पहिँ आवा ॥
सरिता जल जलनिधि मँहु जाई । 
होई अचल जिमि जिव हरि पाई ।।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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