सोमवार, 23 दिसंबर 2024

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग तीस ।।मां अंजना।।

मानसचर्चा।। श्री हनुमानजी भाग तीस ।।मां अंजना।। 
ऐसा सुना गया कि जिस समय युद्ध समाप्त हो गया, लंका विजय के बाद प्रभु अवध को लौट रहे थे, पुष्पक विमान गन्धमादन पर्वत के ऊपर से उड़ रहा था तो हनुमानजी ने कहा प्रभु यहां मेरी माँ निवास करती हैं। बहुत दिन हो गए, माँ के दर्शन नहीं हुए, आज्ञा हो तो मैं दर्शन कर लूँ। भगवान् बोले हनुमान् जिस माँ ने तुम्हारे जैसे पुत्र को जन्म दिया हो उनका दर्शन करने का मन तो हमारा भी बहुत है, चलो हम भी दर्शन करेंगे। विमान नीचे उतर आया, दौड़ कर हनुमानजी ने माँ को प्रणाम किया। प्रभु ने भी जाकर प्रणाम किया और बोले माँ आपके दर्शन पाकर मेरे नेत्र धन्य हो गए, माँ आपने ऐसे पुत्र को जन्म दिया। तो अंजनी माँ ने हनुमानजी से पूछा, पुत्र! कुम्भकरण को किसने मारा? हनुमानजी बोले, माँ प्रभु ने मारा। अच्छा,
मेघनाथ को? बोले, उनको लखनजी ने मारा। अच्छा रावण को किसने मारा? बोले रावण को भगवान् ने मारा।
इतना बोलना था कि अंजनीमाँ क्रोध में आ गयीं और बोलीं आगे से मुझे मुँह नहीं दिखाना । चले जाओ, क्यों
मैंने तुम्हें इसलिए दूध पिलाया था कि भगवान् को श्रम करना पड़े? राक्षसों का वध करने के लिए? तुमने मेरे
दूध को लजा दिया। अंजनी माँ के दूध में इतनी ताकत थी उसी समय गन्धमादन चोटी पर जब दूध की धारा
फेंकी तो गन्धमादन के खण्ड-खण्ड हो गए। इतना ताकतवर दूध मैंने तुम्हें पिलाया और प्रभु को श्रम करना
पड़ा। मुझे शक्ल दिखाने की आवश्यकता नहीं है। प्रभु हाथ जोड़कर बोले, माँ क्रोध मत करो। हमने नहीं मारा
कोई राक्षस। यह तो हनुमान् मार-मार कर अधमरा कर देते थे। हमको यश देने के लिए कहते थे, प्रभु, आप
इसको मुक्ति दे दीजिए। मारने का काम तो हनुमान ने किया है हमको तो केवल यश दिलाने के लिए कहते
थे कि प्रभु ने मारा। ऐसी माँ के गर्भ से हनुमानजी का जन्म, अंजनीपुत्र और पिता का नाम बाद में जुड़ा है। पवनसुतनामा और पवन के पुत्र भी कहे गए। चूंकि मैंने ऐसा सुना है कि अंजनी माँ यही तपस्या करती थीं, बहुत ही अच्छा बलवान योग्य पुत्र मुझे मिले, ऐसी आकांक्षा से तप कर रहीं थीं। उस समय श्रृंगार करके टहल रही थीं, टहलते-टहलते अंजनीमाँ को लगा कि कोई मुझे पीछे से छू रहा है। माता ने कहा कौन मुझ पतिव्रता को छू रहा है। दिखाई कोई दे नहीं रहा था, फिर बोली, मैं श्राप दूंगी, नहीं तो सामने आओ, सामने से तो कोई नहीं आया परन्तु पीछे से आवाज आई, मैं पवनदेव हूँ। इस समय साक्षात् शंकरजी तुम्हारे पुत्र रूप में जन्म लेना चाहते हैं। मैंने शंकरजी के तेज को तुम्हारे शरीर में स्थापित कर दिया है, उससे तुम्हारे पतिवृत्य को नुकसान नहीं होगा। उससे तुम्हें बहुत तेजस्वी शंकरजी का अवतार मिलेगा। ऐसा कहकर पवनजी वहाँ से चले गए। इसलिए अंजनीपुत्र के साथ ही हनुमानजी पवन पुत्र भी कहलाए जाने लगे। अंजनी पुत्र पवन सुतनामा। पवनसुत का दूसरा  कि पवन स्वयं नहीं दिखाई देते हैं। पवन का कार्य दिखाई देता है। उनका अनुमान होता है उनका कार्य रूप तो दिखाई देता है लेकिन उनका कर्ता रूप दिखाई नहीं देता। प्रभु ने जब धनुष तोड़ा लेत चढ़ावत खचत गाढ़े, काहु न लखा देख सबु ठाढ़े। भगवान् का भी कार्य दिखाई देता है परन्तु उनका कर्ता रुप दिखाई नहीं देता है। ऐसे ही पवन का कार्य दिखाई देता है। कर्ता नहीं दिखाई देता है। अपना नाम नहीं वह स्वयं पीछे हट जाते हैं। वह कहते हैं कि जब किसी पुष्प की सुगंध आती है तब आप कहते हैं कि पुष्प की कितनी सुन्दर सुगन्ध आ रही है न कि पवन की सुगन्ध आ रही है। कहते हैं चमेली की बहुत ही मनमोहक सुन्दर सुगन्ध आ रही है, चम्पा की कितनी सुन्दर सुगन्ध आ
रही है, चन्दन की कितनी सुन्दर सुगन्ध आ रही है। कभी नहीं कहेंगे कि पवन कितनी सुगन्धित है। पवन सुत
का दूसरा भी अर्थ है, पवन के तीन गुण हैं शीतल, मंद और सुगन्ध। पवन जब शीतल हल्का चलता है तो
शीतलता प्रदान करता है, मंद-मंद चलता है तो मर्यादा की रक्षा करता है। जब पवन तेज होता है तो माताओं
की मर्यादा भंग होती है, उनके वस्त्र इधर-उधर होते हैं। इसलिए हनुमानजी ने भी बोला है एक मैं मंदमति ।
शीतल और मंद पवन अगर सुगन्धित होती है तो भी आनन्द देती है। लू चलती है तो सब लोग बचना चाहते
हैं। जब ठण्डी शीतल वायु चलती हैं तो बोलते हैं कि कितनी शीतल वायु है, कितनी सुगन्ध आ रही है। हमारे
अन्दर जो मन्दता भर दे, खुशबू भर दे, यही पवन का गुण है। ऐसा है हमारा देश जहां के माता-पिता मां अंजना और पवनदेव हैं।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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