✓।।मानसचर्चा।।उर्मिला,भारत की बेटियां।।
।।मानसचर्चा।।उर्मिला,भारत की बेटियां।।
शुद्धोऽसि - बुद्धोऽसि - निरंजनोऽसि ।।
उर्मिलाजी का दर्शन करें। हमने संतों के श्रीमुख से सुना है जब लक्ष्मणजी सुमित्रा माँ के भवन से बाहर आ रहे हैं और रास्ते में सोचते आ रहे थे कि उर्मिला से कैसे मिलूं इस चिंता में डूब रहे थे कि उर्मिला को बोल कर न गए तो रो-रो कर प्राण त्याग देगी और बोल कर अनुमति लेकर जाएंगे तो शायद जाने न दे वो मेरे साथ चलने की जिद करेंगी, रोएंगी और कहेंगी कि जब जानकीजी अपने पति के साथ जा सकती हैं तो मैं क्यों नहीं जा सकती? लक्ष्मणजी स्वयं धर्म हैं लेकिन आज धर्म ही द्वंन्द में फँस गया। उर्मिलाजी को साथ लेकर जाया नहीं जा सकता और बिना बताए जाएँ तो जाएँ कैसे? रोती हुई को छोड़ा नहीं जा सकता। स्त्री के आँसू को ठोकर मारना किसी पुरूष के बस की बात नही पत्थर दिल हृदय, पत्थर हृदय पुरुष भी बड़े से बड़े पहाड़ को ठुकरा सकता है लेकिन रोती हुई स्त्री को ठुकराना यह किसी पुरुष के बस की बात नहीं है। लक्ष्मणजी चिंता में डूबे हैं अगर रोई तो उन्हें छोड़ा नहीं जा सकता और साथ लेकर जाया नहीं जा सकता। करें तो करें क्या? इस चिंता में डूबे चले जा रहे थे कि उर्मिलाजी का भवन आ गया। इधर, उर्मिलाजी को घटना की पहले जानकारी हो चुकी है और इतने आनन्द में डूबी हैं कि मेरे प्रभु, मेरे पति मेरे सुहाग का इतना बड़ा सौभाग्य कि उन्हें प्रभु की चरणों की सेवा का अवसर मिला है। पति की सोच में डूबी श्रृंगार किए बैठी है, उर्मिला ने वो वेष धारण किया जो विवाह के समय किया था और कंचन का थाल सजाकर ,आरती का दीप सजाकर प्रतीक्षा कर रही है। आएंगे अवश्य, बिना मिले तो जा नहीं सकते? यहां भय में डूबे लक्ष्मणजी , साक्षात काल भी कांप रहा है। आप कल्पना कीजिए इस देश की माताओं के सामने काल हमेशा कांपता रहा है। माताओं को काल नहीं ले जा सकता, काल शरीर को ले जाता है। माँ को काल स्पर्श नहीं कर सकता। संकोच में डूबे लक्ष्मण जी ने धीरे से कुण्डी खटखटाई, देवी द्वार खोलो। जैसे ही उर्मिलाजी ने द्वार खोला तो लक्ष्मणजी ने आँख बंद कर लीं, निगाह से निगाह मिलाने का साहस नहीं, उनको भय लगता है, आँसू आ गए। उर्मिलाजी ने जैसे ही आँसू देखा बोल उठी कि भगवन् यह तो नाचने का समय है, आनंद का समय है उत्सव का समय है, और आपकी आँखों में आँसू ? उर्मिलाजी समझ गई कि मेरे कारण मेरे पति देव असमंजस में आ गए हैं। उर्मिलाजी ने दोनों हाथों से कंधा पकड़ लिया और कहा आर्यपुत्र घबराओ नही, धीरज धरो-
धीरज धर्म मित्र अरु नारी।आपद काल परिखिअंहि चारी।
धैर्य की, धर्म की, मित्र की, और नारी की आपत्ति के समय ही परीक्षा होती है। आपको शायद यह लगता होगा कि मुझे घटना की जानकारी नहीं है। लेकिन मुझे तो पूरी जानकारी है और मुझे यह भी मालूम है कि आप भगवान् की सेवा में 14 वर्ष के लिए जा रहे हैं और मैं समझ रही हूँ कि आप संकोच में डूबे हैं कि उर्मिला साथ जाने की जिद करेगी तो ध्यान से सुनिये, मैं साथ जाने की जिद क्या, जाने के बारे में सोच भी नहीं रही हूँ। यह तो मेरा सौभाग्य है कि मेरा सुहाग प्रभु के साथ उनकी सेवा में जा रहा है। और सुनिए ! मैंने किसी भोगी के घर का अन्न नहीं खाया, मैं योगीराज जनक की बेटी हूँ, योगी की गोद में खेली हूँ। भोगी की गोद में नहीं । मस्तक ऊपर उठाइये। अपनी साड़ी के पल्लू से उर्मिलाजी ने लक्ष्मण जी के आँसू पोंछे। तब लक्ष्मण जी उर्मिलाजी से लिपटकर इतना रोये हैं कि उनके आँसू थम नहीं रहे हैं। सामान्यतः लक्ष्मणजी जीवन में रोते नहीं हैं। जीवन में केवल तीन बार रोने का उल्लेख है पहली बार आज, दूसरी बार तब जब लंका में जानकीजी की अग्नि परीक्षा हुई थी और उस अग्नि परीक्षा में जब काठ किन चिता को लक्ष्मण जी को तैयार करना पड़ा और तीसरी बार वह तब रोये जब जानकीजी को लक्ष्मणजी वन में छोड़ने गये। जब लव-कुश माँ के गर्भ में थे। सामान्यतया काल रोता नहीं है, रुलाता है। लक्ष्मणजी कहते हैं कि उर्मिला तेरे चरणों में सिर रखकर रोऊ, आज तूने मुझे गिरने से, डगमगाने से बचा लिया। उर्मिलाजी दौड़ कर गईं अन्दर से थाल सजाकर लाई, दीपक जलाए, आरती उतारी, रोली, चावल से टीका किया और जिस समय पाँव छूने को झुकीं तो उर्मिला जी ने आँसूओं को पोंछ लिया। उर्मिला जी को लगता है कि यदि एक भी आँसू पति के चरणों में गिर गया तो वनवास काल में मेरे पति को मेरी याद आएगी। मेरी याद परमात्मा की सेवा में रुकावट आएगी, मैं दु:ख सहन कर सकती हूँ लेकिन पति को दुःख में नहीं डाल सकती। खड़े होकर विनम्र विनती की कि आर्यपुत्र यह मेरा सौभाग्य है कि आप प्रभु की सेवा में जा रहे हैं। अब मेरी एक प्रार्थना स्वीकार कीजिए। आज जिस दीपक से मैं आपकी आरती उतार रही हूँ जब आप चौदह वर्ष बाद लौटें तब भी मैं उसी दीपक से आपकी आरती उतारूं यही मेरी तमन्ना है,बस इतनी कृपा करना कि यह दीपक हमेशा जलता रहे। चौदह वर्ष तक मैं इस दीपक को बुझने नहीं दूंगी, बस मेरे दीपक को धोखा न देना। ऐसा सुना है कि चौदह वर्ष उर्मिलाजी ने इस दीपक को बुझने नहीं दिया और हमने यह भी सुना है कि जिन परिवारों में अखण्ड दीपक जलते हैं, अधर्म प्रवेश नहीं कर पाता, जब भी प्रवेश करेगा, धर्म ही करेगा। चौदह वर्ष तक जो वेश धारण किया था वह वेश उतारा ही नहीं, श्रृंगार भी नहीं उतारा, चौदह वर्ष तक अपने महल का द्वार भी बंद नहीं किया और न ही अन्न का सेवन किया, चौदह वर्ष तक उर्मिलाजी सोयी नहीं। शास्त्र कहते हैं कि लक्ष्मणजी के द्वारा मेघनाथ का वध हुआ था किन्तु आत्मा कहती है कि वह उर्मिलाजी की तपस्या के कारण मारा गया। उर्मिलजी के इस अखंड तप ने मेघनाथ का वध किया है। यह रघुवंश की पुत्रवधू है, योगीराज महाराज जनक की कन्या है, रामराज केवल राम के कारण नहीं आया है। रामराज्य जनकजी की बेटियों के कारण आया है। इस रामराज्य के भव्य भवन की नींव में जनकजी की बेटियां बैठी हैं। इनकी पीठ पर ही यह अयोध्या का राज्य है जिसकी आज चारों तरफ जय-जयकार हो रही है, वह जय जयकर जनकजी के परिवार के कारण आया है। भगवान् राम ने तो केवल उसके ऊपर कलश की स्थापना की है। चलते-चलते उर्मिला ने कहा कि मेरी याद मत करना, मेरा तो नाम ही उर्मिला है। मैं तो आपसे एक क्षण भी दूर नहीं हूँ। यह भी बात आपने सुनी होगी कि जब लक्ष्मणजी को शक्ति लगी और इस परिवार की नारियों को कितना भरोसा है अपने पतिव्रत पर, अपने धर्म पर जब संजीवनी बूटी लेकर लौट रहे थे हनुमानजी, तो ऐसी घटना आती है कि अयोध्या के ऊपर से उड़ान थी तो भरतजी ने भूलवश, संदेहवश बाण मारकर नीचे गिरा दिया। कौशल्या माँ भी मिलने गईं, सुमित्राजी भी मिलने गईं। सब लोग मिलने गए। हमने सुना है कि उर्मिलाजी भी गईं। कौशल्याजी ने हनुमानजी से कहा कि हनुमान् राघव को जाकर बोलना कि राम की शोभा लक्ष्मण के साथ है अगर मेरा लखन जीवित नहीं हुआ तो राम की अयोध्या में कोई आवश्यकता नहीं है। मेरा संदेश दे देना।
सुमित्राजी ने कहा- नहीं, नहीं भैया! माँ की बात मत सुनना, राघव को जा कर कहना कि शोक मुक्त हों,
लक्ष्मण को छोड़ें, मेरा शत्रुघ्न अभी जीवित है दूसरा बेटा। हनुमानजी सोच रहे हैं कि कैसी माँ है एक बच्चा
मृत्यु की गोद में है, काल के गाल में है और दूसरे बेटे को भी प्रस्तुत कर रही है। हनुमानजी ने उर्मिलाजी की
ओर देखा कि इनके ऊपर क्या बीतती है, देखा तो उर्मिलाजी सबकी बात सुन रही हैं और मंद-मंद मुस्कुराती खड़ी हैं। तो हनुमानजी ने बोला, माँ आप भी कुछ बोलिए, आपके पति के प्राण संकट में हैं। उर्मिलाजी ने कहा मेरे पति के प्राण कभी संकट में नहीं हो सकते। हनुमानजी ने कहा मैं स्वयं संकट में देखकर आया हूँ
तभी तो संजीवनी लेने आया हूँ। सूर्योदय की अवधि है। पूरब दिशा में लालिमा आ चुकी है और लंका यहाँ
से कोसों दूर है। और आप कहती हैं कि प्राण संकट में नहीं हैं और सूर्य उदित हो गया तो उनके प्राण कैसे
बच पाएंगे? उर्मिलाजी ने कहा हनुमानजी आप अपनी चिंता करिए। मेरे पति के प्राणों की चिंता मत करिए।
हनुमानजी बोले, सूर्योदय की अवधि है। अगर उससे पहले औषधि नहीं पहुंची तो ? तब उर्मिला जी ने कहा,
तुमको दो-चार दिन अयोध्या में विश्राम करना हो तो कर लो तब तक मैं सूर्य को उदित होने ही नहीं दूंगी। हनुमानजीबोले, आप सूर्य को कैसे रोकोगी? बोलीं कि मैं सूर्यवंश की बहू हूँ, मेरा विवाह सूर्यवंश में हुआ है। सूर्य हमारे कुल के पुरखे हैं और कोई पुरखा यह नहीं चाहेगा कि जब मैं आँख खोलूं तो मेरी आँखों के सामने विधवा बहू खड़ी हो। सूर्य उदित ही नहीं होगा। आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। मेरे पति को कुछ नहीं होगा। आपको कैसे मालूम? तो उर्मिलाजी बोली, मेरा दीपक मुझे बता रहा है। दीपक जल रहा है तो इसका मतलब कि मेरे पति जीवित हैं। और सुनो मैं तो लंका नहीं गयी थी, तुम तो लंका से आए हो? यह बताओ इस समय मेरे पति कहाँ हैं। हनुमानजी बोले भगवान् की गोद में हैं। उर्मिलाजी ने कहा भैया! अगर मेरे पति भोग की गोद में होते तो काल उनको मार देता पर जो भगवान की गोद में लेटा है, उसको काल छू भी नहीं सकता है। वह हमेशा चिरंजीवी रहता है। मेरे पति भगवान् की गोद में लेटे हैं और मैं भगवान् के करुणामयी स्वभाव से मै पूर्ण परिचित हूँ , मुझे यह मालूम है कि मेरे प्रभु को मेरे पति के जागने का संकल्प ज्ञात है, भगवान् को यह जानकारी है कि लखन माँ के चरणों में चौदह वर्ष तक नहीं सोने का संकल्प लेकर आया है, सोयेगा नहीं और प्रभु का स्वभाव बहुत ही कोमल है- अति कोमल
रघुवीर सुभाऊ । जद्यपि अखिल लोक कर राऊ। प्रभु को लगता है मेरा छोटा भाई लखन दिनभर इतने बड़े-बड़े राक्षसों से लड़ता है, थककर चूर हो जाता है और फिर सन्ध्या समय माँ को दिए संकल्प को याद करता है और सोता नहीं है। इसको विश्राम कैसे दिलायें, भगवान् ने मेघनाथ के बाण के बहाने से मेरे पतिदेव को अपनी गोद में विश्राम के लिए लिटाया है। जो राम की शरण में रहता है वह विश्राम के लिए रहता है, वह कभी मरण में नहीं जाता।
जो आनन्द सिंधु सुख रासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी ॥
सो सुखधाम राम अस नामा । अखिल लोक दायक विश्रामा ||
जो भगवान श्रीराम की गोद में होगा वो विश्राम में होगा, आराम में होगा-
सकल लोक दायक विश्रामा।
जब लक्ष्मण ने चौदह वर्ष जागरण का संकल्प ले लिया। तब हमने सुना, नींद लक्ष्मणजी के पास आयी और नींद ने लक्ष्मणजी से कहा कि आज तक हमको कोई नहीं जीत पाया और आज आपने हमको जीत लिया है। हमसे कोई वरदान मांगिये। तो लक्ष्मण जी ने कहा मुझे तो कोई आवश्यकता नहीं है मगर तुम उर्मिलाजी के पास चली जाओ। नींद उर्मिला जी के पास आई। उर्मिला जी से कहा आप हमसे कोई वरदान मांगिए, पूछा किसने भेजा है तो बोली आपके पतिदेव ने भेजा है। बोली उन्होंने हमें जीत लिया है हम उन्हें वरदान देना चाहती थीं तो उन्होंने कहा जाओ, उर्मिला जी के पास जाओ। मांगो वरदान मांगो तो उर्मिला जी ने कहा अगर वरदान देना चाहती हो तो एक वरदान दो कि चौदह वर्ष जब तक मेरे पति भगवान् के चरणों की सेवा में लगे हैं उनको मेरी याद न आए। पत्नी कहती परमात्मा की सेवा में उनको भोग की याद न आए, उनको काम की याद न आए। जो रघुवर की सेवा में बैठे हैं उनको घर की याद न आए। ऐसी है हमारे भारत की ये आदर्श नारियां जिन पर हमें हमेशा ही गर्व रहेगा।जय मां उर्मिला।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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