सोमवार, 23 दिसंबर 2024

मानसचर्चा।। श्रीहनुमानजी भाग सत्ताईस।।रामदूत।।

मानसचर्चा।। श्रीहनुमानजी भाग सत्ताईस।।रामदूत।।
दूत स्वामी का संदेशवाहक होता है। स्वामी का हितकारक होता है। स्वामी का प्रभाव स्थापित करने वाला होता है। शास्त्र में दूत के कई गुण बताए हैं। दूत वही जो अपनी बात बिना संकोच के धड़ल्ले से बोल सके। दूसरे, दूत विलक्षण स्मरण शक्ति वाला होना चाहिए। तीसरे उसकी वाणी अकाट्य हो, वो जो तर्क प्रस्तुत करे सामने वाला उसको काट ना पाए। इतना गुण, इतनी विलक्षण प्रतिभा, इतना विलक्षण गुण व ज्ञान किसी दूसरे वानर में दिखाई नहीं देता । भगवान् के संदेश को देना यह दूत का कार्य है। जानकीजी के पास जब हनुमानजी पहुंचे हैं तब जानकी जी चिता बनाकर जलने को बैठी हैं। त्रिजटा से अग्नि की माँग करती हैं। कहीं से भी ला कर दे। त्रिजटा ने समझाया, बिटिया धैर्य धारण करो,निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी ! और समय एक जैसा नहीं रहता। अभी अंधकार है, प्रकाश भी होनेवाला है लेकिन त्रिजटा का भी
जानकीजी पर प्रभाव न हुआ जो जानकीजी चिता बना कर जलने के लिए बैठी थीं। श्रीहनुमानजी ने अपनी
वाणी से जानकीजी को भगवद् प्राप्ति का भरोसा दिला दिया। माँ चिंता मत कर, चिंता मत कर माँ ने पूछा
क्या कभी प्रभु मुझे मिलेंगे? और यह प्रसंग बड़ा मार्मिक है। जब यह परिचय हो गया कि हनुमान् भगवान्
का दूत है और मुद्रिका यही लेकर आया है तो उस मुद्रिका को देखकर और भगवान् के स्वभाव का सुमिरन
कर जानकीजी की आँखों से आँसू की झड़ी लग गयी। बहुत मार्मिक स्वर माँ ने कहे हनुमान् मैंने तो सुना है,
सुना नहीं जाना है कि प्रभु तो बहुत कोमल हैं-
कोमल चित कृपालु रघुराई। कपि केहि हेतु धरी निठुराई ॥
भगवान् का सुमिरन कर जानकी जी बहुत रोई । वचनु न आव नयन भरे बारी । अहह नाथ मोहिं निपट बिसारी। आँखों से आसुओं की धारा बही, वाणी बोल नहीं पा रही हैं। जब व्यक्ति भाव में होता है, रुदन के भाव में होता है तो केवल आँसू-आँसू हिलकी-हिलकी । शब्द नहीं आते, जानकीजी की भी वही दशा है। बेटा सामने बैठा है। वह भी समर्थ बेटा बैठा है और उसकी माँ हिलकी भर-भर कर रोती हैं। आप कल्पना करिए हनुमानजी पर क्या बीतती होगी? और जानकीजी के शब्द देखिए- कोमल चित कृपालु रघुराई। कपि केहि हेतु धरी निठुराई ॥ भगवान कैसे कठोर हो गए हैं कपि केहि हेतु धरी निठुराई । मैं कैसी अभागी हो गई हूँ। अहह नाथ मोहि निपट बिसारी, प्रभु ने क्या मुझे विसार दिया? क्या कभी मेरा सुमिरन उनको नहीं हुआ? हनुमानजी ने कहा माँ आप यह जो कहती हैं, भगवान् ने आपको बिसार दिया। मुझे लगता है कि आपने भगवान् की कृपा को बिसार दिया। यह तुम क्या कह रहे हो ? मेरा मन तो हर क्षण हर पल, प्रतिपल, निज पद नयन दिए मन राम पद कमल, प्रभुराम के पद-कमलों में लगा हुआ हैं। मैं तो प्रतिपल प्रतिक्षण उनके
नाम का सुमिरण कर उनमें डूबी हूँ। परन्तु मुझे लगता है कि प्रभु ने ही मुझे बिसार दिया है। हनुमानजी ने पूछा आपके पास इसका प्रमाण क्या है कि प्रभु ने आपको बिसार दिया। बोली मेरे पास प्रमाण है, जब जयंत
ने मेरे ऊपर चञ्चु प्रहार किया था तो प्रभु इतने आवेश में आ गए, क्रोध में आ गए कि 'सींक धनुष सायक
संधाना' कि सींक का धनुष बाण बनाकर जयंत के पीछे लगा दिया। लेकिन रावण तो मेरा हरण करके लाया
है और प्रभु को मालूम है और इसके बावजूद रावण चैन की नींद सो रहा है और प्रभु ने अभी तक बाण
नहीं भेजे। हनुमानजी ने कहा माँ आपको कैसे लगता है, माँ, कि बाण आपके पास नहीं आए हैं? मैं कहता
हूँ, बाण भेजा है। जानकीजी ने कहा, कहाँ हैं बाण? हनुमानजी ने कहा, जयन्त जी के पीछे तो सींक का ही
बाण था, मैं सीधे साक्षात् बाण के रूप में ही तो आया हूँ-
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना।एही भाँति चलेउ हनुमाना।
हनुमानजी ने कहा प्रभु ने इस वक्त मुझे ही बाण बना कर भेजा है और इसका ज्ञान आपको भी हो चुका था कि प्रभु का बाण आ चुका है। जब आप रावण को फटकार रही थीं तब मैं अशोकवाटिका के वृक्ष के ऊपर बैठा था। आपने रावण को फटकार कर कहा था-
खल सुधि नहिं रघुवीर बान की।
क्या तुझे भगवान् के बाण की सुधि नहीं। इसका अर्थ है कि आपको ज्ञान हो चुका था कि भगवान का बाण आ चुका है। बस माँ इतना ही अन्तर है। भगवान् कभी ऐसा नहीं करते कि जीव को अपनी कृपा से अलग करें। प्रभु की कृपा तो जीव पर सदा रहती है। कई बार जीव उसका अनुभव नहीं करता। आपको सामने संकट के रूप में रावण तो दिखाई दे रहा था लेकिन आपके शीश पर भगवान् की कृपा मेरे रूप में विराजमान थी, वो नहीं दिखाई दे रही थी और यह मनुष्य का स्वभाव है। संकट चूंकि हमेशा आँखों के सामने रहता है इसलिए वह दिखाई देता है, इसलिए मनुष्य हमेशा संकट का रोना रोता है लेकिन कृपा हमेशा सिर पर रहती है। सिर पर जो वस्तु रहती है वह दिखाई नहीं देती लेकिन रहती सिर पर है। भगवान् की कृपा हमेशा जीव के साथ है क्योंकि संकट हमेशा आँखों के सामने है, कृपा दिखाई नहीं देती, कृपा तो भगवान् के भजन से अनुभव होती है। कृपा तो परमात्मा की प्रत्येक जीव पर है लेकिन जो भजन से दूर हुए हैं उनको भगवान की कृपा का अनुभव नहीं होता। और यह सिद्धान्त एकदम स्वीकार कर लीजिए कि भगवान् जीव को बीच मझधार में संकट में अकेला, असहाय नहीं छोड़ते। अगर कोई प्रारब्ध के वशीभूत उसके जीवन में संकट आ रहा है तो कोई न कोई कृपा का कारण भी उसके साथ आ रहा है। अगर प्रभु ने प्रारब्ध के वशीभूत उसके जीवन का कोई द्वार बंद किया है तो सहायता के रूप में पीछे से कोई खिड़की जरूर खुलती है। अगर कोई अपने परिवार में अकाल मृत्यु हो रही है तो इसका अर्थ है इसके पहले बहू के गर्भ में बालक का आगमन हो चुका है, ऐसा कभी नहीं होता कि मौत हो जाए पर बच्चे का जन्म न हो, भगवान की कृपा कदम,-कदम पर है। हनुमानजी ने कहा, माँ! न प्रभु निष्ठुर हुए हैं, न प्रभु ने आपको बिसारा है मुझे ऐसा लगता है आपने उनके स्वरुप, उनके स्वभाव को बिसारा है। अगर आपको भरोसा नहीं तो आप भगवान् के ही श्रीमुख से सुन लें कि आपके विरह में मेरे प्रभु कितने व्याकुल हैं। उन्हीं की वाणी में सुन लीजिए-
रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर ।
अस कहि कपि गदगद भयउ भरे बिलोचन नीर।।
हनुमानजी तो मौन हो गए। अब आप लाइव टेलीकास्ट देखिए, माँ! सीधा दर्शन करो यह संदेश कौन बोल रहा है।
राम कहेउ बियोग तव सीता।मो कहूँ सकल भए बिपरीता।
नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू।काल निसा सम निसि ससि भानू ।।
कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा बारिद तपत तेल जनु बरिसा ।।जे हित रहे करत तेइ पीरा। उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा ॥
कहूँ तें कछु दुख घटि होई काहि कहीं यह जान न कोई ॥
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा।जानत प्रिया एक मनु मोरा ।।
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं । जानु प्रीति रसु एतनेहि माहीं ॥
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही । मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही ।।
कह कपि हृदयँ धीर धरु माता। सुमिरि राम सेवक सुखदाता॥
उर आनहु रघुपति प्रभुताई। सुनि मम बचन तजहु बिकलाई ॥
और ये जो शब्द बोले हैं वो हनुमानजी नहीं कह सकते हैं कोई बेटा माँ को प्रिय कहकर नहीं सम्बोधित कर सकता। हनुमानजी ने कहा माँ प्रभु की वाणी आप सीधे-सीधे सुनिए । जो अभिमानशून्य होता है वही
भगवान् का दूत बनता है। रामदूत का अर्थ है कि वाणी और शब्द तो भक्त के होते हैं लेकिन उसमें संदेश
भगवान् का होता है। जिस वाणी में भगवान् का संदेश न हो, जो वाणी भगवान् का सुमिरन न कराती हो, जो
शब्द भगवान् के दर्शन की उत्सुकता न जगाते हों वो शब्द सांसारिक हैं, वो शब्द रामदूत के नहीं हो सकते,
वो कामदूत के होते हैं। हनुमानजी रामदूत हैं, वाणी हनुमानजी की है लेकिन संदेश उसमें भगवान् का होता है।
ये दो अवतारों में है। दो लोग भगवान् के दूत बने हैं। रामावतार में हनुमानजी और कृष्णावतार में वंशी । इन दोनों ने दूत का काम किया दूत माने भगवान् का संदेश पहुँचाने वाला। आखिर वंशी के स्वर के द्वारा ही तो वो गोपियों तक अपना संदेश पहुँचाते थे। वंशी बजायी, गोपियों ने सुनी और दौड़कर गोपियाँ भगवान् के पास आती थीं। जो कार्य कृष्णावतार में बंशी करती थी वही कार्य रामावतार में हनुमानजी करते थे। एक बार गोपियों ने बंशी से पूछा (थोड़ी ईर्ष्या भी हो गयी थी कि क्यों री बंशी, वैसे तो तू कोरे बांस की है कितने ही छिद्र तेरे भीतर हैं, फिर भी तू हमेशा श्याम सुन्दर के हाथों में, होठों पर रहती हो। हम इतने रूपवान, गुणवान, बुद्धिमान हैं लेकिन हमको कभी इतना प्रेम नहीं करते। ऐसा तेरे अन्दर कौन सा गुण है? तो बंशी ने कहा कि मेरे अन्दर एक ही गुण है। क्या गुण है? बोली मेरे अन्दर कोई गुण नहीं है यही गुण है।।आप तो गुणों से भरी हुई हैं और भगवान् के हाथों में वह रहता है जिसमें कोई गुण नहीं है अन्यथा जिसमें
गुण है वो गुणों के हाथ में रहता है और बंशी ने कहा क्या आपको मालूम है कि भगवान् के हाथों में आने के
लिए उसे कितने पापड़ बेलने पड़े? क्या करना पड़ा? बोले, मैंने अपना तन कटवाया, मन कटवाया, जिसने मुझे
कटवाया उससे मैंने पूछा भी नहीं, अपने मन की भी मैंने नहीं कही कि कहाँ ले जाओगे ? चारपाई बनाओगे,
सीढ़ी बनाओगे, लाठी बनाओगे, अर्थी में लगाओगे। मैंने यह भी नहीं पूछा कि कहाँ लेकर जाओगे, जहाँ ले
जाओ सर्वांग समर्पण, न शिकवा, न शिकायत। तन कटवायो, मन कटवायो, ग्रन्थिन-ग्रन्थिन मैं छिदवायो ।
मेरी एक-एक गांठ को गरम-गरम सलाखों से छेदा गया और फिर जैसो चाहते हैं श्याम मैंने वैसो ही स्वर
सुनायो । ऐहि कारण निज अधरन पर मोहि धरत मुरारी, भगवान् जैसा स्वर चाहते हैं मैं वैसा ही सुनाती हूँ।
आप अपना स्वर भगवान् को सुनाती हो और मैं भगवान् का स्वर आपको सुनाती हूँ। हनुमानजी भगवान् का
स्वर सुनाते हैं। भगवान का संदेश पहुंचाते हैं बंशी कृष्णावतार में भगवानकृष्ण का संदेश सुनाती हैं। भगवान्
के हाथों में रहना है, उनके होठों पर रहना है। भगवान श्रीराम के होठों पर हमेशा हनुमानजी रहते हैं - राम जासु
जस आपु बखाना ॥
अगर हमें भगवान श्रीकृष्ण के होठों पर रहना हो तो अपने जीवन को बंशी बनाना होगा-
जीवन है तेरे हवाले मुरलियावाले ॥
हम तो मुरली तेरे हाथ की। चाहे जैसे बजा ले मुरलिया वाले ॥
जीवन है तेरे हवाले मुरलिया वाले ॥
जो कार्य श्रीहनुमानजी करते थे वही कार्य कृष्णावतार में बंशी करती थी। जानकीजी को जाकर संदेश दिया, रावण को जाकर संदेश दिया। अवध में भरतजी को जाकर भगवान का संदेश दिया श्रीहनुमानजी ने जब भरतजी ने पूछा कि तुम हो कौन तो श्रीहनुमानजी ने उत्तर दिया-
मारुतसुत मैं कपि हनुमाना। नामु मोर सुनु कृपा निधाना।।
दीनबन्धु रघुपति कर किंकर।सुनत भरत भेंटेउउठि सादर।
कपि तब दरस सकल दुख बीते। मिले आजु मोहि राम पिरीते ॥
एहि संदेस सरिस जग माहीं । करि विचार देखेउँ कछु नाहीं ॥
श्रीहनुमानजी जहाँ भी जाते हैं प्रभु दूत बनकर, संदेश लेकर जाते हैं।
रामदूत अतुलित बलधामा, अजनि पुत्र पवनसुत नामा।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।

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