सोमवार, 23 दिसंबर 2024

मानसचर्चा।।माता सुमित्रा और लक्ष्मण।।

मानसचर्चा।।माता सुमित्रा और लक्ष्मण।।
हमारे यहाँ माता का नाम पहले आता
है। यह भारत की संस्कृति है। यही भारत का स्वभाव है। आपने आजकल विवाहों के निमंत्रण-पत्र देखे होंगे।
निमंत्रण पत्र में भी श्रीमती एवं श्री । पहले कभी रहा होगा, श्री एवं श्रीमती लेकिन अब पहले माँ का नाम ।
माँ का जो स्थान है भारत वर्ष में सर्वोत्तम है इसलिए हमने इस देश की धरती को भी माँ कहा है। भारतमाता
और इस देश की नहीं पूरे विश्व की धरती को माता माना है। माँ का प्रतिबिम्ब पृथ्वी माँ है, पालन करती है।
सबका। और इसलिए हमने भगवान् की भी पूजा की है तो उसको भी हमने माँ कह कर पुकारा है। त्वमेव
माता भगवान् का पहले हमने माँ के रूप में दर्शन किया है। पिता कह कर बाद में सम्बोधित किया है। त्वमेव
माता च पिता त्वमेव। इसका कवि ने कितना सुन्दर वर्णन किया है। सभी भाव से गाइए। तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हों, तुम्ही हो बन्धू सखा तुम्हीं हो। तुम्हीं हो साथी, तुम्हीं सहारे, कोई न अपना सिवा तुम्हारे ।जो खिल सके ना वो फूल हम हैं, तुम्हारे चरणों की धूल हम हैं। कृपा की दृष्टि सदा ही रखना, तुम्हीं हो बन्धु सखा तुम्हीं हो।
आरती भी गाते हैं तो यही गाते हैं- मातु-पिता तुम मेरे सरन गहूँ किसकी ।।तुम बिन और न दूजा आस करूँ जिसकी ।।ॐ जय जगदीश हरे |माताओं के द्वारा ही जगत् में महापुरुषों की रचना हुई है। उनके द्वारा ही हमारे देश को
हैं। माताएं बच्चों को दूध पिलाते समय, गोद खिलाते समय, भगवान् से यही प्रार्थना करती हैं।बुद्धोऽसि - शुद्धोऽसि - निरंजनोऽसि ॥महापुरुष मिले मेरा बेटा बुद्ध बने, जाग्रत बने, मेरा बेटा विकार रहित शुद्ध बने और मेरा बेटा माया में लिप्त न हो जाए। निर्लिप्त रहे माया से मुक्त हो। ऐसी माता में आप सुमित्रा माता का दर्शन करो। आखिर लक्ष्मण जी कहाँ सेआए, लक्ष्मणजी में जो भी गुण हैं वो सुमित्रा माता की कृपा के कारण हैं। बनवास की घटना देखिए । लक्ष्मणजी प्रभु के साथ बनवास जाने के लिए आतुर हैं। प्रभु ने कहा पहले माँ से आज्ञा ले लो। लक्ष्मणजी ने कहाप्रभु आप चले तो नहीं जाएंगे? प्रभु ने कहा, नहीं जाएंगे। लक्ष्मणजी सुमित्रामाताजी के पास गए। सुमित्राजी नेबोला क्या हुआ बेटा, बाजे बज रहे थे। जय-जयकार हो रही थी, एकदम सब शांत हो गया। क्या बात है, मुहूर्त बदल गया क्या? माँ तुमको मालूम है क्या हुआ है? अयोध्या का भाग्य फूट गया है। क्या हुआ है? श्रीराम जी को चौदह वर्ष का वनवास हुआ है, प्रभु माँ जानकीजी के साथ वन को जा रहे हैं और मैं भी तू फिर यहाँ क्यों आया है। भगवान जी ने कहा, पहले माँ से आज्ञा लाओ- माँगहुं बिदा मातु सन जाई ।माँ, कौन माँ? लक्ष्मणजी ने कहा तू मेरी माँ है न। सुमित्राजी ने कहा, मैं तेरी माँ नहीं हूँ। लक्ष्मणजी ने कहा तू मेरी माँ नहीं तो मेरी माँ कौन है? सुमित्रा जी ने कहा, लखन बेटा! मैं तो तेरी धरोहर की माँ हूँ, केवल गर्भ धारण करने के लिए भगवान ने मुझे माँ बनाया है। तेरी माँ तो कोई और है और उन्हीं से आज्ञा लो और उन्हीं की सेवा में जाओ। तो पूछा वह माँ है कौन? सुमित्राजी ने कहा: बेटा मैं तो देह वाली माँ हूँ और देह वाली माँ कितने दिन तेरा साथ देगी? 70 साल, 80 साल, 90 साल और 100 साल देह वाली माँ तो तुझे एकदिन छोड़ देगी लेकिन जन्मान्तर तक तेरे साथ रहनेवाली उस माँ की सेवा में जाओ, देह वाली माँ में मत डूबो । है कौन? बोली- तात तुम्हारि मातु बैदेही, पिता राम सब भाँति सनेही । सुमित्राजी ने असली माँ का दर्शन करा दिया। अयोध्या कहाँ हैं? अवध जहाँ राम, और सुनो लखन! जौं पै सीय राम बन जाहीं अवध तुम्हार काज कछु नाहीं। अयोध्या में तुम्हारा कोई काम नहीं है। हमको कोई आवश्यकता नहीं है। तुम्हारा जन्म ही राम की सेवा के लिए हुआ है और शायद तुमको यह भ्रम होगा कि भगवन् माँ कैकयी के कारण से वन को जा रहे हैं। इस भूल में मत रहना। लक्ष्मणजी ने पूछा फिर जा क्यों रहे हैं, माँ बोली-
तुम्हरेहिं भाग राम बन जाहीं। दूसर हेतु तात कछु नाहीं ॥
दूसरा कोई कारण नहीं है तुम्हरे भाग राम वन जाहीं। लक्ष्मणजी ने कहा, माँ मेरे कारण क्यों वन जा रहे हैं। माँ ने कहा, तू जानता नहीं है अपने को, मैं तुझे जानती हूँ। तू शेषनाग का अवतार है, धरती तेरे शीश पर है और धरती पर पाप का भार इतना बढ़ गया है कि तू उसे सम्भाल नहीं पा रहा है। इसलिए राम तेरे सर के भार को कम कर रहे हैं। दूसर हेतु तात कछु नाहीं और जब भगवान् केवल तेरे कारण जा रहे हैं तो तुझे मेरे दूध की सौगंध है कि चौदह वर्ष की सेवा में स्वप्न में भी तेरे मन में कोई विकार नहीं आना चाहिए। लक्ष्मणजी ने कहा माँ अगर ऐसी बात है तो सुन ले तू जब स्वप्न की शर्त दे रही है तो मैं चौदह वर्ष तक
सोऊँगा ही नहीं और जब सोऊँगा ही नहीं तो कोई विकार नहीं आएगा। यह जगत का अद्वितीय भाई है यह भैया और भाभी की सेवा के लिए चौदह वर्ष जागरण का संकल्प ले रहा है। लेकिन अगर छोटा भाई बड़े भाई
की सेवा के लिए चौदह वर्ष का संकल्प लेता है तो बड़ा भाई पिता माना जाता है। उसको भी पिता का भाव
चाहिए। जैसे पिता अपने पुत्र की चिंता रखता है, ऐसे ही बड़ा भाई अपने छोटे भाई की पुत्रवत् चिंता करे तब
वह बड़ा भाई कहलाने लायक है। ऐसी सुमित्रा जैसी माताऐं के जिनके कारण ऐसे भक्त पैदा हुए, सेवक पैदा
हुए, महापुरुष पैदा हुए। कल्पना कीजिए अवध तुम्हार काज कछु नाहीं ।जाओ भगवान् की सेवा में, यहाँ तुम्हारा कोई काम नहीं है और अब हम अपने ऊपर विचार करें। अनुभव क्या कहता है? लड़का अगर शराबी हो जाए परिवार में चल सकता है। लड़का अगर दुराचारी हो जाए तो भी चलेगा, जुआरी हो जाए चलेगा, बुरे से बुरा लड़का चलेगा लेकिन लड़का साधु हो जाए, संन्यासी हो जाए,
समाजसेवक बन जाये, तो अपना-अपना हृदय टटोलो कैसा लगता है? सारे रिश्तेदारों को इकट्ठा कर लेते हैं
कि, भैया इसे समझाओ। हम चाहते तो हैं कि इस देश में महापुरुष पैदा हों, हम चाहते तो हैं कि राणा और
शिवाजी इस देश में बार-बार जन्म लें लेकिन मेरे घर में नहीं पड़ौसी के घर में। क्या इससे धर्म बच सकता
है? क्या इससे देश बच सकता है? माँ ने अपने दुधमुहें बच्चों को इस देश की रक्षा के लिए दीवारों में चिनते
अपनी आँखों के सामने देखा है। आप कल्पना कर सकते हो कि माँ के ऊपर क्या बीती होगी? तेरह साल का बालक माँ के सामने सिर कटाता है। माँ ने आँख बंद कर लीं, कोई बात नहीं जीवन तो आना और जाना है। देह आती और जाती है। धर्म की रक्षा होनी चाहिए। जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उनकी रक्षा करता है। धर्मो रक्षति रक्षतः । इस देश की रक्षा के लिए कितनी माताओं की गोद सूनी हुई। कितनी माताओं के सुहाग मिटे, कितनों की माथे की बिंदी व सिन्दूर गए। कितनों के घर के दीपक बुझे, कितने बालक अनाथ हुए, कितनों की राखी व दूज के त्यौहार मिटे। ये देश, धर्म, संस्कृति तब बची है। ये नेताओं के नारों से नहीं बची, ये माताओं के बलिदान से बची, इस देश की माताओं ने बलिदान किया।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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