बुधवार, 11 दिसंबर 2024

श्याम गौर की जोड़ी

मानस चर्चा।।श्यामगौरकीजोड़ी।।
राम-लक्ष्मण और भरत-शत्रुघ्न इन लोगों  की  श्याम
और गौर की जोड़ी कैसे बनी, जबकि इनका क्रम ऐसा नहीं है आइए इस अद्भुत श्यामगौरकीजोड़ी बनने के बारे में चर्चा करते हैं। बाबा गोस्वामी तुलसीदासजी कहते है:-बारेहि ते निज हित पति जानी। लछिमन रामचरन रति मानी।।स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननी तृन तोरी।।'तृन तोरी'-तिनका तोड़ना लोकोक्ति है,मुहावरा है, कहावत है,सुन्दर वस्तुको देखकर बुरी नजर से बचाने के लिये तिनका तोड़नेकी रीति है।तिनके की ओट लेकर अथवा तिनके को तोड़कर माताएं देखती हैं कि नजरका प्रभाव तिनके पर पड़े, बच्चे को नजर न लगे । जैसे - 'सुंदर तनु सिसु बसन बिभूषन नखसिख निरखि निकैया । दलि तृन, प्रान निछावरि करि करि लैहैं मातु बलैया ॥ '  बालपने ही से अपना हितैषी और अपना स्वामी जानकर श्रीलक्ष्मणजीने श्रीरामजीके चरणोंमें प्रेम किया,अर्थात् रामचरणानुरागी हुए ( एवं रामप्रेमाभिमानी भी हुए ) ॥ श्रीभरत शत्रुघ्न दोनों भाइयोंमें स्वामी-सेवक की जिस प्रीति की प्रशंसा है वैसी प्रीति हुई ॥  श्याम गौर दोनों सुन्दर जोड़ियोंकी छबिको माताएँ तिनका तोड़-तोड़कर देखती हैं ॥  ऐसा बाबा कहते हैं। आइए इस कथा का आनंद ले और श्याम गौर  जोड़ी   की रसभरी कथा का रसपान करें। 
  एक बार की बात है कि कौसल्याजी की दासी किसी कारणसे श्रीसुमित्राजी के महलमें गयी तो वहाँ उसने दोनों पुत्रों(श्रीलक्ष्मण, श्रीशत्रुघ्नजी ) को राजाकी गोदमें खेलते देखा और वहाँसे कौसल्याजीके महल में आयी तो यहाँ भी उसने उन दोनोंको देखा। संदेह होने से वह बीसों बार कौसल्या - भवनसे सुमित्रा - भवनमें और सुमित्रा - भवनसे कौसल्या - भवन में गयी - आयी । यह देख राजाने उससे हठ करके पूछा कि तेरा चित्त किस मोह - भ्रममें पड़ा हुआ है, क्या बात है जो तू बीसों बार इधर से उधर जाती- आती है ? तब उसने बताया कि यहाँ श्रीसुमित्राजीके दोनों पुत्रोंको श्रीरामजीके निकट देखती हूँ और वहाँ दोनों को आपकी गोदमें बैठे पाती हूँ;
इससे मैं परम संदेहमें पड़ रही हूँ। प्रमाण है -' इमौ च बालकौ राजन् शत्रुसूदनलक्ष्मणौ । कौसल्याङ्के मया दृष्टौ रामस्य निकटे स्थितौ ॥ अत्रैव तव चाङ्के वै वर्त्तेते सुमनोहरौ । तत्र गच्छामि तत्रैव चात्र ह्यायामि अत्र वै ।' राजा यह सोचकर कि यह क्या बक रही है, शीघ्र कौसल्याजीके भवनमें गये और वहाँ श्रीरामके साथ लक्ष्मण, शत्रुघ्नको बालक्रीडा करते देखा, फिर कौसल्या - भवनके झरोखेसे, सुमित्रा - भवनमें दोनों पुत्रोंको माताके पास देखा तब तो राजा को भी  परमाश्चर्यको हो गया,वे कुछ निर्णय न कर सके । यथा - ' ययौ शीघ्रं तया सार्द्ध कौसल्याभवनं नृपः ॥ तत्र व नरेशोऽपि चात्मनो ददृशे सुतौ ॥ क्रीडन्तौ रामचन्द्रेण सुमित्रातनयौ तु तौ । तस्मिन्काले स्मितं चक्रे कौसल्या यत्र तिष्ठति ॥ गवाक्षे च मुखं कृत्वा सुमित्राभवने नृपः । विलोकयामास सुतौ क्रीडन्तौ जननीयुतौ । यदा तु निर्णयं कर्तुं न शशाक
महीपतिः ॥'  तब गुरु वसिष्ठ बुलाये गये और उनसे सब वृत्तान्त कहा गया। उन्होंने क्षणभर ध्यान कर विचार किया कि यह इनकी बालक्रीडा है। ये एक क्या दस-बीस हजार तथा करोड़ों, असंख्यों रूप धारण कर सकते हैं, इसमें संशय क्या, किंतु राजाको यह बताना उचित नहीं, नहीं तो उनको वात्सल्यरसका सुख न मिलेगा । गुरुजी ने  कहा कि यह गन्धर्वकी माया है, हम उपाय करते हैं, अब यह माया न होगी और अन्तमें राजासे कहा कि जैसा मैं कहता हूँ वैसा आप करें। लक्ष्मणजी सदा रामजीके महलमें उनके साथ खेलें और शत्रुघ्नजी भरतजीके साथ रहें तो आगे ऐसी माया फिर न होगी । प्रमाण है - ' यथा ब्रवीमि राजेन्द्र तथा कुरु नरोत्तम । रामस्तु लक्ष्मणेनापि सदा क्रीडतु मन्दिरे।भरतो रिपुहन्ता च वयसोशानुसारतः। न कदाचिद्भ्रमस्त्वेवं तव राजन्भविष्यति॥'  राजाने यह बात सुमित्राजीसे कही और उन्होंने वैसा ही किया । नित्य ही प्रातःकालमें वे लक्ष्मणजीको उठाकर श्रीरामजीके पास और शत्रुघ्नजीको भरतजीके पास पहुँचा देती थीं।
उपर्युक्त चरितसे यह सिद्ध हुआ कि चारों भाई अलग-अलग रहते थे। श्रीलक्ष्मणजी श्रीरामजी की सेवा में और शत्रुघ्नजी श्रीभरतजीकी सेवामें रहना चाहते थे। यह कैसे हो; उसके लिये यह लीला रची गयी । वसिष्ठजीने उनका आशय जानकर वैसा ही उपाय कर दिया। इस चरितसे स्पष्ट है कि बालपनेसे ही श्रीलक्ष्मणजीका प्रेम श्रीरामजी में और शत्रुघ्नजीका श्रीभरतजीमें था । ' स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी'  । लक्ष्मणजी और शत्रुघ्नजी अपने-अपने स्वामी पास रहनेसे प्रसन्न रहते हैं । अतः माता लक्ष्मणजी को रामजीके पास और शत्रुघ्नजीको भरतजीके पास रख देती हैं। इस प्रकार(श्याम - गौरकी ) दो जोड़ियाँ हो जाने से अधिक शोभा हो जाती है। इसीसे जोड़ी की छबि हमें दिखती हैं । यथा - 'दीन्हि असीस देखि भल जोटा ॥ '  'स्याम गौर किमि कहउँ बखानी । गिरा अनयन नयन बिनु बानी ॥ '  [ इन दोनोंमें श्याम - गौरकी एक जोड़ी है। आगे भी कहा है— 'सखि जस राम लषन कर जोटा । तैसेइ भूप संग दुइ ढोटा ॥'  इत्यादि । 'स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी' का ऐसा भी अर्थ हो सकता है कि राम - भरत दोनों श्यामकी एक जोड़ी और लक्ष्मण - शत्रुघ्न दोनों गौरकी एक जोड़ी। पर एक श्याम और एक गौर अर्थात् राम-लक्ष्मण और भरत शत्रुघ्नकी जोड़ी ही प्रसंगानुकूल है जिसे श्याम - गौरकी एक जोड़ी कहा है ।इस श्याम गौर की जोड़ी की कृपा सतत हम सब पर बनी रहे।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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