बुधवार, 11 दिसंबर 2024

✓मानस चर्चा।।रघुकुलके कुलदेवता।।

मानस चर्चा।।रघुकुलके कुलदेवता।।
एक बार जननी अन्हवाए।करि सिंगार पलना पौढ़ाए ॥ 
निजकुल इष्टदेव भगवाना।पूजा हेतु कीन्ह अस्नाना ॥ 
'निज कुल इष्टदेव भगवाना'  । रघुकुलके कुलदेवता श्रीरंगजी हैं। 'भगवान्' कहकर जनाया कि और कोई देवी-देवता इस कुलके इष्ट नहीं हैं, स्वयं भगवान् विष्णु ही इष्टदेव हैं। रघुवंशी वैष्णव हैं। वाल्मीकिजी ने इनके कुलइष्टको 'जगत नाथ' नामसे लिखा है। ' श्रीरंग क्षेत्र - माहात्म्यमें श्रीरंगजीका विस्तृत वर्णन है। जब सृष्टिके
आदिमें भगवान्ने चतुर्भुजरूप हो जलमें शयन किया और उनकी नाभिकमलसे ब्रह्माजी उत्पन्न हुए एवं ब्रह्माको
सृष्टि रचनेकी आज्ञा हुई तब उन्होंने प्रार्थना की कि इसमें पड़कर मैं संसारमें लिप्त न हो जाऊँ। भगवान्ने आज्ञा दी
कि हमारा स्मरण - भजन करते रहना, इससे संसार - बन्धनमें न पड़ोगे । उस समय ब्रह्माजीने भगवद्-
आराधन की विधि पूछकर फिर प्रार्थना की कि जिससे हमारी उत्पत्ति हुई है इसी स्वरूपका ध्यान मुझे दीजिये । भगवान्ने उस समय यह विमान उनको दिया था। 'रंग' नाम विमानका है जो प्रणवाकार है । उसीमें भगवान्‌का अर्चाविग्रह भी विराजमान था। जो ध्यान और आराधन ब्रह्माजीको बताया गया वही 'पंचरात्र' नामसे ख्यात है। राजा इक्ष्वाकुने जब मनु महाराजसे इसे पढ़ा तब उनको इसका पता लगा; उनकी लालसा हुई कि भगवदाराधनके लिये उस विग्रहको प्राप्त करें । अतः तप करके ब्रह्माजीको प्रसन्न करके वे उसे माँग लाये । परधामयात्राके समय विभीषणजीको श्रीरामचन्द्रजीने यह विग्रह देकर कहा कि ये इस कुलके देवता जगन्नाथ हैं - ' आराधय जगन्नाथं इक्ष्वाकुकुलदैवतम्।'
तुम इनका आराधन करना परंतु मार्गमें कहीं रखना नहीं, पृथ्वीपर रख दोगे तो ये फिर वहाँसे न हटेंगे। विभीषणजी
कावेरी-तटपर चन्द्रपुष्करणी क्षेत्रमें पहुँचे तो उनको लघुशंका लगी तब इन्होंने विमान वहाँ रख दिया, फिर विमान वहाँसे न उठा। (कहा जाता है कि आजतक विभीषणजी वहाँ पूजन करने आते हैं। लगभग सं० २०१० की बात है कि वह सरकारी तौरपर परस्पर वाद-विवाद होनेके कारण बंद रहा था, खुलनेपर उसके भीतर दीपक जलता और पूजन किया हुआ पाया गया)। साभार  वेदान्तशिरोमणि श्रीरामानुजाचार्य, वृन्दावन ।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ