मानस चर्चा।।संग का प्रभाव।।
मानस चर्चा।।संग का प्रभाव।। आधार मानस की यह प्रसिद्ध लाइन
“हानि कुसंग सुसंगति लाहू। लोकहुँ बेद बिदित सब
काहू॥” कुसंग से हानि और सुसंग से लाभ होता ही है,यह बात लोक , वेद यहां तक कि सभी को मालूम है।इसी बात को कवि रहीम ने भी कहा है कि
रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग।
करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग ।।
अर्थात् जिनकी प्रवृत्ति उजली और पवित्र है अगर उनकी संगत नीच से न हो तो अच्छा ही है।
नीच और दुष्ट लोगों की संगत से कोई न कोई कलंक लगता ही है।
पद्मपुराण में एक कथा है ~
एक बार एक शिकारी शिकार करने गया, शिकार नहीं
मिला, थकान हुई और एक वृक्ष के नीचे आकर सो गया।
पवन का वेग अधिक था, तो वृक्ष की छाया डालियों के यहाँ- वहाँ हिलने के कारण कभी कम-ज्यादा हो रही थी।
वहीं से एक अति सुन्दर हंस उड़कर जा रहा था, उस हंस ने देखा कि वह व्यक्ति बेचारा परेशान हो रहा है।
धूप उसके मुँह पर आ रही है तो ठीक से सो नहीं पा रहा है, तो वह हंस पेड़ की डाली पर अपने पंख खोल कर बैठ गया ताकि उसकी छाँव में वह शिकारी आराम से सोयें।जब वह सो रहा था तभी एक कौआ आकर उसी डाली पर बैठा। इधर-उधर देखा और बिना कुछ सोचे-समझे शिकारी के ऊपर अपना मल विसर्जन कर वहाँ से उड गया। तभी शिकारी उठ गया और गुस्से से यहाँ-वहाँ देखने लगा और उसकी नज़र हंस पर पड़ी और उसने तुरंत धनुष बाण निकाला और उस हंस को मार दिया।
हंस नीचे गिरा और मरते-मरते हंस ने कहा:- मैं तो आपकी सेवा कर रहा था, मैं तो आपको छाँव दे रहा था, आपने मुझे ही मार दिया? इसमें मेरा क्या दोष? शिकारी ने कहा :- यद्यपि आपका जन्म उच्च परिवार में हुआ, आपकी सोच आपके तन की तरह ही सुन्दर है, आपके संस्कार शुद्ध है, यहाँ तक कि आप अच्छे इरादे से मेरे लिए पेड़ की डाली पर बैठकर मेरी सेवा कर रहे थे, लेकिन आपसे एक गलती हो गयी। जब आपके पास कौआ आकर बैठा तो आपको उसी समय उड जाना चाहिए था। उस दुष्ट कौए के साथ एक घड़ी की संगत ने ही आपको मृत्यु के द्वार पर पहुंचाया है।
*शिक्षा ~* संसार में संगति का सदैव ध्यान रखना चाहिए। जो मन, कार्य और बुद्धि से परमहंस है उन्हें कौओं की सभा से दूरी बनायें रखना चाहिए।
अतः सदैव साधु-संत एवं सज्जन व्यक्ति का ही संग करना चाहिए। संतों के क्षण मात्र के संग से अनेकों जन्म जन्मों के पाप क्षण भर में भस्म हो जाते है।
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि ~
एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध
तुलसी संगत साधु की, हरे कोटि अपराध।।
और“हानि कुसंग सुसंगति लाहू। लोकहुँ बेद बिदित सब काहू॥” को तो हम समझ ही गए हैं ।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।
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