मानस चर्चा ।।सीताजी की सहेलियां।।
मानस चर्चा ।।सीताजी की सहेलियां।।
संग सखी सब सुभग सयानी । गावहिं
गीत मनोहर बानी ॥
संगमें सखियाँ हैं। सब (सखियाँ) सुन्दरी और सयानी हैं, मनोहर वाणीसे सुन्दर गीत गा रही हैं ॥ ३ ॥
'संग सखी सब सुभग सयानी' में मानो ऐसी पराबंदी है कि मानोकुयोग्य कोई है ही नहीं। रंगमंचपर गीत गाती हुई सुन्दर सखियोंके परे (समूह) का आना कितना चित्ताकर्षक है । नाटकीय कलामें इस chorus (कोरस सामूहिक गान ) का आनन्द बड़ा ही सुन्दर है। 'संग सखी...' से साफ उन कल्पनाओंका निषेध हो जाता है, जिससे 'सँठीगठी' मुलाकातकी ओर संकेत हो सके।
'संग सखी' । श्रीसीताजीके साथ सखियाँमात्र हैं, कोई रक्षक सुभट इत्यादि नहीं हैं और पुरके बाहर देश-देशके अनेक राजा टिके हुए हैं; यथा - 'पुर बाहर सर सरित समीपा। उतरे जहँ तहँ बिपुल महीपा ॥' इससे स्पष्ट है कि यह राज-बाग शहर (वा शहरपनाह ) के भीतर है। क्योंकि यदि शहरके बाहर होता तो श्रीजानकीजीकी रक्षाके लिये संगमें सुभटोंकी सेना अवश्य जाती; जैसे रुक्मिणीजीके सम्बन्धमें रक्षकोंका जाना कहा गया है।सखियोंकी सुन्दरता आगे लिखते हैं, यथा- 'सुंदरता कहँ सुंदर करई । छबिगृह दीपसिखा जनु बरई ॥' यहाँ सखियाँ छबिगृह हैं, यथा- 'सखिन मध्य सिय सोहति कैसी । छबिगन मध्य महाछबि जैसी ॥' 'सब सयानी' सब सखियाँ सयानी हैं, यह बात आगे स्पष्ट की है। यथा-'
-'सुनि हरषीं सब सखीं सयानी। सिय हिय अति उत्कंठा
जानी ॥’'धरि धीरज एक आलि सयानी। सीता सन बोली गहि पानी । ''सुभग सयानी' का भाव कि शरीरसे सुभग (सुन्दर) हैं और बुद्धिकी 'सयानी' (चतुर) हैं। सुन्दरताकी शोभा बुद्धिसे है । इसीसे ' सुभग' और 'सयानी' दोनों गुण कहे। यथा - 'जानि सुअवसर सीय तब पठई जनक बुलाई। चतुर सखी सुंदर सकल सादर चलीं लवाइ ॥ ' 'बनिता पुरुष सुंदर चतुर छबि देखि मुनि मन मोहहीं', संग सखी सुंदर चतुर गावहिं मंगलचार । ' 'सुभग' पद देकर 'सुभगा' आदि सब सयानी सखियोंका संगमें होना जनाया। पुनः, सुभग-सुन्दर ऐश्वर्यसे युक्त । 'सयानी' से डील-डौल और अवस्थामें भी बड़ी सूचित किया । (
'गावहिं गीत मनोहर बानी' । 'मनोहर' देहली- दीपक है। मनोहर गीत मनोहर वाणीसे गाती हैं। ये गीत गिरिजापूजनसम्बन्धी हैं । मनोहर-सुन्दर; मनको हर लेनेवाली । मुख्यार्थ यही है । परंतु, यह अर्थ भी ध्वनित होता है, 'मनो हर बानी' मानो सरस्वती के भी मन को मोहित कर लेती हैं। (अपने सुन्दर गीतसे) हम यह भी कह सकते हैं कि मानो हर अर्थात् महादेवऔर वाणी अर्थात् सरस्वतीजी ही हैं जो गा रहे हैं। गिरिजा अर्थात् जगतजननी के प्रसन्नार्थ । सखियां हैं कौन कौन उनके नाम क्या हैं? बैजनाथजीका मत है कि सीता जी की आठ सखियां हैं जिनमें से श्रीचारुशीलाजी हाथमें सोनेकी झारी, लक्ष्मणाजी अर्घ्यपाद्यपात्र, हेमाजी हेमथालमें गन्ध - फूल-पत्र, क्षेमाजी धूप-दीपदानी, वरारोहाजी मधुपर्क, पद्मगन्धाजी फूलमाला, सुलोचनाजी छत्र और श्रीसुभगाजी चामर लिये हुए साथ हैं।
श्रीअगस्त्यसंहिता में श्रीचारुशीलाजी, श्रीलक्ष्मणाजी, श्रीहेमाजी, श्रीक्षेमाजी, श्रीवरारोहाजी, श्रीपद्मगन्धाजी, श्रीसुलोचनाजी और श्रीसुभगाजी इन अष्ट सखियोंके माता-पिता नाम, जन्मकी तिथि, नाम और गुण तथा सेवाका उल्लेख करके अन्तमें यह श्लोक दिया है 'अष्टाविति सख्यो मुख्या जानक्याः करुणानिधेः । एतेषामपि सर्वेषां चारुशीला महत्तमा । ' अर्थात् ये श्रीजानकीजीकी मुख्य अष्ट सखियाँ हैं। इन सबोंमें श्रीचारुशीलाजी प्रधान हैं। श्रीसाकेतरहस्यमें भी यही नाम दिये हैं। केवल क्रम दूसरा है। श्रीरामरसायन ग्रन्थ - विधान ३ विभाग ११में सखियोंके नाम भिन्न हैं और इस प्रकार हैं- 'जनकलली प्रगटी जबै जनकनगरमें आय। जनम लियो
मिथिला तबै सकल सखी समुदाय ॥ यथायोग निमिकुल सदन लखि निज रुचि अनुसार । सुरी किन्नरी आदि बहु भई नरी सुविचार ॥ ते सिय संग विनोदिनी वय गुण रूप समान। बालसखी हैं आठ वर प्यारी परम प्रधान।चन्द्रकला उर्वशी सहोद्रा कमला बिमला मानौ । चन्द्रमुखी मेनका सुरम्भा आठ मुख्य ये जानौ ॥ प्यारी सखी विदेहसुता की बाल संगिनी सोहैं ॥ सप्त सप्त यूथेश्वरी इक इक सखि
स्वाधीन ॥ हैं सहस्त्रयूथेश्वरी प्रति अनुचरी प्रवीन ॥ '
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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