रविवार, 17 नवंबर 2024

✓मानस चर्चा।। दान।।

मानस चर्चा
दान
प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।
जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥
धर्म के चार चरण (सत्य, दया, तप और दान) प्रसिद्ध हैं, जिनमें से कलि में एक (दान रूपी) चरण ही प्रधान है। जिस किसी प्रकार से भी दिए जाने पर दान कल्याण ही करता है आइए एक आने के उधार दानी और गंगा स्नानी कंजूस  दानी दानचंद जिससे भगवान भी हार गए उसकी  हास्य कहानी का आनंद लेते हैं और प्रभु कृपा प्राप्त करते हैं।
एक समय की बात है, एक बहुत ही कंजूस व्यक्ति था।
उस व्यक्ति का नाम दानचंद था। उसके पास धन तो
बहुत था, परंतु उसने कभी किसी को दान नहीं किया
था। उसने प्रण ले रखा था, की जीवन में कभी किसी
को कुछ भी दान नहीं करना है। उसके घर से कुछ
किलोमीटर दूर गंगा नदी बहती थी, परंतु वह कभी गंगा
स्नान करने नहीं गया, क्योंकि गंगा स्नान करने के बाद
पंडे-पुजारियों को कुछ दान दक्षिणा देनी होती है। गंगा
स्नान के बाद दान करना पड़ेगा इसी डर से वह कभी
गंगा स्नान करने ही नहीं गया।
उसकी पत्नी उसे दान पुण्य करने के लिए कहती थी,
परंतु वह कहता था, इतनी बड़ी दुनिया में हमारा छोटा
सा दान करने से क्या होगा। एक दिन उसकी पत्नी ने
कहा, अब तो आपका बुढ़ापा आ गया, आप दान पुण्य
तो कुछ करते नहीं, कम से कम एक बार जाकर गंगा
स्नान ही कर आओ। पत्नी की बात मानकर उसने गंगा
स्नान करने की हामी भरी। उसके घर से गंगा नदी 12
किलोमीटर दूर थी, रास्ते में कहीं पैसा खर्च ना हो जाए,
इसलिए वह 12 किलोमीटर पैदल ही चला गया।
जब दानचंद गंगा नदी के किनारे पहुंचा तो उसको लगा
के घाट पर जाएंगे तो पंडित दान दक्षिणा मांगेंगे।
इसलिए वह स्नान करने मुर्दा घाट चला गया, मुर्दा घाट
बिल्कुल सुनसान था, उसने इधर उधर देखा दूर-दूर तक
कोई नहीं था। उसने जल्दी से गंगा जी में एक
डूबकी लगाई। भगवान जो घट-घट के वासी हैं, वह
उसे यह सब करता देख रहे थे। भगवान को एक मजाक
सूझी, भगवान वहां पर एक पंडित का रूप बनाकर
प्रकट हो गए। जैसे ही दानचंद डूबकी लगाकर बाहर
निकला, पंडित रूपी भगवान बोले यजमान की जय
हो। पंडित को देखते ही दानचंद काँप गया। वह बोला यह
तो हद हो गई, यह पंडा तो मुर्दा घाट पर भी आ गया।
पंडित ने बताया कि मैं एक संतोषी ब्राह्मण हूं, और
एकांत में यहां मुर्दा घाट पर ही पड़ा रहता हूं। यहां पर
कभी-कभी आपके जैसा कोई यजमान आ जाता है,
और मेरा साल-भर का इंतजाम इकट्ठे ही कर देता है।
आज आप आए हैं, आपको मेरा एक वर्ष का इंतजाम
करना है।दानचंद बोला मैं इतना दान नहीं कर सकता। पंडित बोला दान तो अपनी श्रद्धा के ऊपर होता है, इसलिए आप 6 महीनों का इंतजाम कर दो। दानचंद बोला मैं 6 महीनों का इंतजाम भी नहीं कर सकता। पंडित बोला
तो तीन महीने, दानचंद बोला नहीं। पंडित बोलै 1
महीने का ही कर दो, दानचंद बोला मैं एक महीने का
तो क्या मैं एक दिन का भी इंतजाम नहीं कर सकता।
अब पंडित ने कहा आपको कुछ ना कुछ तो दान करना
ही पड़ेगा, नहीं तो हम आपको जल से निकलने नहीं
देंगे। थक हार कर दान चंद बोला, एक आने का दान
करूँगा वह भी उधार, मेरे पास अभी तो कुछ नहीं है,
इसलिए मेरे घर आकर एक आना ले जाना। पंडित ने
दानचंद को एक आना दान करने का संकल्प दिलवा
दिया। दानचंद ने सोचा मेरा घर तो यहां से 12 किलोमीटर दूर है, यह पंडित एक आने के लिए इतनी दूर थोड़ी आएगा। इसलिए वह संकल्प लेकर अपने घर
आ गया। घर पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई थी, वह इतनी दूर चल कर आया था, इसलिए थक गया था। वह सोने ही जा रहा था, तभी उसके दरवाजे पर उस पंडित ने दस्तक
दी।पंडित बोलै यजमान की जय हो, दानचंद की पत्नी
ने दरवाजा खोला, वह पंडित को देखकर लौटी और
दानचंद से पूछा, क्या किसी पंडित को कुछ देने की
कह कर आए हो ? दानचंद बोला, हां मैंने एक पंडा को
एक आना देने का संकलप लिया है। पत्नी बोली वह
पंडित जी अपना एक आना लेने दरवाजे पर खड़े हैं।
दानचंद ने सोचा वो पंडित एक आने के लिए इतनी दूर
आ गया। दानचंद ने पत्नी से कहा, जाकर उस पंडित से
कह दो की यजमान बीमार है, इसलिए तीन-चार दिन
बाद आए। पत्नी बोली एक आने की ही तो बात है, दे
क्यों नहीं देते। दानचंद बोला मैं किसी को कुछ नहीं
देने वाला, जाकर उससे कह दो की यजमान बीमार है,
इसलिए कुछ दिन बाद आये। पत्नी ने दुखी जैसा मुंह बनाया और पंडित से बोली, महाराज मेरे पति आज इतनी दूर पैदल चलकर गए थे,इसलिए वे बहुत थक गए हैं, और बीमार है, इसलिएआप तीन-चार दिन बाद आना। पंडित बोला धन मिले या ना मिले, लेकिन वे हमारे यजमान है। यजमान बीमार है और पंडा चला जाए, ऐसा नहीं हो सकता। जब तक वह स्वस्थ नहीं हो जाते तब तक हम यही रहेंगे, हमारा यहाँ रहने का इंतजाम कर दो, हम यहीं परप्रसाद बनाएंगे और यहीं पर भजन करेंगे और यहीं पर
प्रसाद ग्रहण करेंगे।
पत्नी लौटकर गई और उसने दानचंद को सारी बात
बताई, कि वह पंडित कह रहा है, जब तक आप ठीक
नहीं हो जाते, वह यही रहेंगे। पत्नी बोली इससे तो
अच्छा उन्हें एक आना देकर रवाना करो। दानचंद बोला
एक आना क्या ऐसे ही आता है, मैं उस पंडित को कुछ
नहीं देने वाला। तुम जाकर उस पंडित से कह दो कि
यजमान मर गए, ध्यानचंद को योग का अभ्यास था,
इसलिए वह सांस रोककर पड़ गया। पत्नी गई, और
उसने रोकर पंडित से कहा, कि वो मर गए, अब तो
जाओ।
पंडित बोले, अरे राम राम यजमान चला गया, जब तक
उसका अंतिम संस्कार ना हो जाए, तब तक हम कैसे
जा सकते हैं। पंडित जी बोले, तुम महिला कहां-कहां
भटकती फिरोगी, हम सारे गांव में यजमान के मरने की
खबर किये देते हैं। पंडित जी सारे गांव में खबर कर आए
कि दानचंद जी मर गए। सारा गांव दानचंद के घर
इकट्ठा हो गया। लेकिन दानचंद ऐसा विचित्र आदमी,
एक आना बचाने के लिए सांस रोके पड़ा था। गांव के
लोगों ने दानचंद को मुर्दा समझ के बांध लिया।
अब उसकी पत्नी सही में रोने लगी, और रो-रो कर
बोली, यह मरे नहीं है। गांव वाले बोले, बहन यह तो
तुम्हारा मोह है, जाने वाला तो गया, इसलिए धीरज
रखो। पत्नी बोली, अरे किस बात का धीरज रखूं, यह
मरे ही नहीं है। गांव वाले दानचंद को बांध कर अंतिम
संस्कार के लिए ले गए, पत्नी बेचारी रोती रह गई।
लेकिन वह विचित्र आदमी इतना सब कुछ होने के
बाद भी सांसें रोके पड़ा था। सबके साथ पंडित बने
भगवान भी उनके पीछे-पीछे चल दिए।
भगवान ने सोचा हद हो गई, हम कहीं नहीं हारे, पर
आज तो इस दानचंद से हम भी हार गए। ऐसा गजब
का विचित्र आदमी हमने कहीं नहीं देखा। एक आना
बचाने के लिए यह आदमी बिना मरे मरा पड़ा है, और
चला जा रहा है। जब दानचंद को लकड़ियों पर रख
दिया गया और केवल अग्नि लगनी ही शेष थी। तब
पंडित रूपी भगवान बोले, कि यह हमारे यजमान थे,
हम इनकी मुक्ति के लिए इनके कान में कुछ मंत्र
बोलेंगे।
भगवान उसके कान के पास मुंह लेकर गए और बोले,
मैं भगवान विष्णु हूं, मैं वैकुंठ से तुमसे नाता जोड़ने
आया हूं। दानचंद ने जैसे ही सुना कि भगवान बोल रहे
हैं, उसने धीरे-धीरे आंखें खोली। लेकिन जैसे ही उसने
देखा की यह तो पंडित है, उसने फिर से आंखें बंद कर
ली। भगवान बोले हम हार गए, हम तुमसे कुछ नहीं
लेंगे, तुम ही हमसे कुछ मांग लो। दान चंद धीरे से
बोला, वह एक आना छोड़ दो बस। पंडित रूपी भगवान
तथास्तु कहकर वहां से चले गए, और दान चंद आंखें
खोल कर उठ बैठा।
कहानी हमें सिखाती है कि हमें इतना कंजूस कभी नहीं बनना चाहिए और समय समय पर दान अवश्य देना चाहिए।
प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।
जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥
।। जय श्री राम जय हनुमान 

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