गुरुवार, 21 नवंबर 2024

✓मानस चर्चा ।।भवितव्यता।।

मानस चर्चा ।।भवितव्यता।।
“तुलसी जस भवितव्यता तैसी मिलै सहाय। आपु न आवै ताहि पै, ताहि तहाँ लै जाय॥” 
इस संसार में चाहे कोई कितना ही प्रयत्न करे परन्तु
जो होनहार होती है वह होकर रहती ही है । ज्योतिष द्वारा भविष्य की होनहार घटना से परिचित हो जाने पर भी मनुष्य चाहे कोटि उपाय करे परन्तु वह होकर ही रहती है । जैसे है कि जब परीक्षित के पुत्र जनमेजय राज्याधिकारी थे तो उन्होंने एक दिन पंडितों को बुला कर भविष्य की बात पूछी तब पंडितजनों ने कहा कि "हे महाराज भविष्य में आप कोढ़ी होंगे | अब आप चाहे जितना प्रयत्न करें परन्तु यह होनहार अमिट हैI तब जनमेजनय ने कहा--"इसके बचने के उपाय बतलाइये, यह सुन कर पंडितों ने राजा को चार बातें बतलाई । ( १ ) आपके नगर में  दूसरे नगर से एक घोड़ा बिक्री के लिये आवेगा आप खरीदना नहीं चाहते हुवे भी उसे  अवश्य ही उ खरीदोगे । यह होनहार है मिट नहीं सकती । ( २ ) दूसरे उस घोड़े पर सवार होकर दक्षिण दिशा को आखेट के लिये नहीं जाना । परन्तु तुम इस बात को नहीं मान सकते । ( ३ ) तीसरे दक्षिण दिशा में तुम को एक  कन्या मिलेगी उसको साथ न लाना । परन्तु आप इसको भी नहीं मान सकते । ( ४ ) चौथे यज्ञ में वृद्ध ब्राह्मणों की जगह युवक ब्राह्मणों को नहीं बुलाना है फिर भी तुम बुलाओगे। आपके कोढ़ी होने के ये  चार कारण हैं और अमिट हैं । राजा ने यह सुन कर कहा कि कोढ़ के चार कारणों से परिचित हो गया। अगर मैं इन मार्गों पर ही पदार्पण न करूंगा तो कोढ़ी किस तरह हो जाऊंगा ऐसे तो हमारे  पूर्वज ही महा मूर्ख  थे जो परस्पर लड़कर मर गये  मै मूर्ख नहीं हूं जो जानते हुवे भी ऐसा करुंगा। तब उसके गुरू_ ने कहा कि " राजा तुम होनहार से परिचित होने पर भी नहीं मान सकते हो । यह बात थोड़े ही दिनों में प्रत्यक्ष हो जायगी । धीरे धीरे समय बीतता गया। एक  दिन एक व्यापारी घोड़े सहित राजा के यह आया  । राजा को यह घोड़ा अद्वितीय वेगवान और सुन्दर लगा। उसे खरीदने की इच्छा मन में आई उसी समय गुरु आदि- ब्राह्मणों की  बताई हुई बात स्मरण हो गई । परन्तु चेष्टा से लोभ उत्पन्न होता है और लोभ से शुद्ध बुद्धि नष्ट हो जाती हैं । इसी प्रकार राजा चेष्टा में मग्न होकर तत्व ज्ञान को भूल गया । और मन के वशीभूत होकर विचार किया कि गुरु के बताये  हुये  शेष तीन  काम नहीं करूंगा। घोड़ा तो अवश्य ही खरीद लेना चाहिये । यह विचार कर उस घोड़े को खरीद लिया । इसी प्रकार राजा के मन  में आया कि दक्षिण दिशा को भी देखना चाहिये वहां जो   कन्या मिलेगी उसे साथ न लाऊंगा। उसी घोड़े पर सवार होकर राजा दक्षिण दिशा को चल दिया। वहीं [ उसको बताई हुई  कन्या मिली। राजा उसके रूप'  देखकर मोहित हो गया और उसने मन रूपी अश्व पर सवार होना चाहा किन्तु मन ही राजा की बुद्धि पर सवार हो लिया । '
और हृदय के सारे तत्व ज्ञान को भुला दिया, अन्त में राजा'
कन्या को  साथ ही ले आया और उसको अपनी पत्नी
स्वीकार कर लिया और धर्म सहित प्रजा पालन में
लग गया। थोड़े दिन पश्चात जब होनहार के दिन आएं तो
राजा  ने विश्व विजय के लिए श्रश्वमेध यज्ञ प्रारम्भ किया'
और गुरु आदि ब्राह्मणों की बात पर विचार करके वृद्ध वृद्ध ब्राह्मणों को यज्ञ में बुलाया। परन्तु होनहार तो अमिट है । जब यज्ञ में वृद्ध' ब्राह्मण दांत न होने की बजह से स्वाहा की जगह वाहा बोलने लगे तो राजा ने क्रोधित होकर उनको यज्ञ से निकाल दिया और युवक ब्राह्मणों को बुलाया ।जब अश्व लिंग पूजन को समय आया तो रानी के हाथ पर अश्व का लिंग रखा गया । यह चरित्र देख कर सारे यज्ञकर्ता युवक ब्राह्मण हंस पड़े । राजा  को उस समय अत्यन्त क्रोध उत्पन्न हुआ और तलवार लेकर उन ब्राह्मणों का शिर उड़ा दिया । ब्राह्मणों का सिर उड़ाने के कारण राजा ब्रह्म हत्या का दोषी  हुआ और ब्रह्महत्या के दोष से राजा के शरीर में कोढ़ पैदा होगया । त ब उन्हीं गुरु आदि ब्राह्मणों ने कहा ። जनमेजय होनहार अमिट है या नाशवान । तुमको प्रत्यक्ष मालूम पड़ा है या नहीं । तुम होनहार से जानकार होने पर भी उससे न बच सके | अब आप बतलाइए कि आप मूर्ख हैं या आपके पुरखा राजा यह सुन कर बहुत लज्जित हुआ। फिर गुरु जी ने कोढ़ को दूर करने के लिये राजा को महाभारत की कथा सुनाई और कह दिया कि तुम महाभारत को किसी बात को झूठी न बतलाना । अन्त में कथा सुनते २ उसके शरीर का कोढ़ दूर हो गया । परन्तु जब यह सुना कि भीमसेन ने अपने  हाथो  से महाकाय हाथियों को घूमा घूमा कर आकाश में फेंक दिये । राजा इसको झूठी समझ कर नाक सिकोड़ गया। बस उसके नाक ही में कोढ़ रह गया ।भावार्थं ॥
इससे स्पष्ट होता है कि चाहे कोई कितना हो परिश्रम
करे परन्तु होनहार हो कर ही रहती है । इसमें कोई संदेह नहीं है।तभी तो बाबा तुलसीदास जी ने कहा-
 “तुलसी जस भवितव्यता तैसी मिलै सहाय। आपु न आवै ताहि पै, ताहि तहाँ लै जाय॥” 
।।जय श्री राम जय हनुमान।।

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