मानस चर्चा ।।अभिजीत मुहुर्त का महत्त्व।।
मानस चर्चा ।।अभिजीत मुहुर्त का महत्त्व।।
आधार राम जन्म की ये शुभ पंक्तियां -
नौमी तिथि मधुमास पुनीता । सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता ॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा।पावन काल लोक बिश्रामा।
आइए हम इस अभिजीत के बारे में विस्तार से जानते हैं।
'अभिजित ' का अर्थ क्या है? 'अभिजित' का अर्थ है 'विजयी'। इस नक्षत्रमें तीन तारे मिलकर सिंघाड़ेके आकारके होते हैं। यह मुहूर्त ठीक मध्याह्न समय आता है। बृहज्ज्योतिःसार में अभिजित् मुहूर्त दो प्रकारका बताया गया है। उनमेंसे एक यों है- 'अंगुल्याविंशतिः सूर्ये शंकुः सोमे च षोडश । कुजे पंचदशांगुल्यो बुधवारे
चतुर्दश ॥ त्रयोदश गुरोर्वारे द्वादशार्कजशुक्रयोः । शंकुमूले यदा छाया मध्याहने च प्रजायते ॥ तत्राभिजित्तदाख्यातो
घटिकैका स्मृता बुधैः ।' अर्थात् रविवारके दिन बीस अंगुलका शंकु, सोमवारको सोलह अंगुलका, मंगलको पन्द्रह अंगुलका, बुधको चौदह, बृहस्पतिको तेरह, शुक्र और शनिको बारह अंगुलका शंकु होता है।
जब छाया शंकुमूलके बराबर ( अर्थात् अत्यन्त अल्प ) हो तबसे एक घड़ीपर्यन्त 'अभिजित् ' मुहूर्त होता है।
दूसरे प्रकारके अभिजित् मुहूर्तका उल्लेख मुहूर्तचिन्तामणिमें है जो इस प्रकार है – 'गिरिशभुजगमित्राः पित्र्यवस्वम्बुविश्वेऽभिजिदथ च विधातापीन्द्र इन्द्रानलौ च । निर्ऋतिरुदकनाथोऽप्यर्यमाथो भगः स्युः क्रमश इह मुहूर्ता- वासरे बाणचन्द्राः ॥अर्थात् दिनमानके पंद्रह भाग करनेपर लगभग दो-दो दण्डका एक-एक भाग होता है। इस प्रकार सूर्योदयसे प्रारम्भ करके जो दो-दो दण्डके एक-एक मुहूर्त होते हैं उनके क्रमशः नाम ये हैं - आर्द्रा (जिनका देवता गिरिश है), आश्लेषा ( भुजग देवता), अनुराधा (मित्र), मघा (पितृ देवता), धनिष्ठा (वसु), पूर्वाषाढ़ा (अंबु ), उत्तराषाढ़ा (विश्वे ), रोहिणी ( विधाता ), ज्येष्ठा (इन्द्र), विशाखा (इन्द्रानल), मूल (निर्ऋति), शततारका (वरुण), उत्तराफाल्गुनी (अर्यमा) और पूर्वाफाल्गुनी (भग) । - इस
प्रकार भी प्रायः चौदह दण्डके बाद मध्याह्नसमयमें 'अभिजित् मुहूर्त' होता है। अभिजित् मुहूर्त का भाव
यह है कि इस महर्तमें जन्म होनेसे मनष्य राजा होता है—'जातोऽभिजित राजा स्यात।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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