✓।।पर उपदेश कुशल बहुतेरे।।
।।पर उपदेश कुशल बहुतेरे।।
आइए आजकल के एक कथा वाचक की इस कहानी
के माध्यम से इस अद्भुत कथन की सार्थकता को हम हृदयंगम करते है। एक समय एक स्थान पर कथा हो रही थी और कथा वाचक जी बड़ी रुचि के साथ प्रभु कथा कह रहे थे । श्रोतागण भावपूर्वक कथा सुन रहे थे । एक जगह कथा प्रसंग ऐसा पाया कि यदि किसी को मार्ग में भी कुछ मिले तो उस व्यक्ति के लिए उचित होगा कि वह उसी स्थान पर तीन चार बार यह जोरो से उच्चारण करे कि यह वस्तु किसकी है, ऐसी नीति है । यह सुन कर एक मनुष्य ने हृदय में निर्णय किया कि अवसर पाकर वक्ता जी की ही परीक्षा लेंगे कि ये इस नीति पर स्वयं चलते हैं या नहीं। कुछ देर में कथा वाचक जी अपनी व्यास गद्दी से उठ कर कथा समाप्त करके घर चलने के लिए तैयार हो रहे थे ।इधर उस मनुष्य ने मिट्टी के गोल सिक्के बना एक थैली में भर ,वक्ता जी के मार्ग में डाल दिया और स्वयं वहीं छिप कर बैठ गया। जब वक्ता जी वहां आये और ज्योंही उस स्थान पर पदार्पण किया त्योंही उनकी दृष्टि एकाएक थैली पर पड़ी उसके देखते ही वक्ता जी का हृदय हर्ष से परिपूर्ण हो गया । थैली को हाथ में उठा कर कथा के अनुसार तीन चार बार यह कहा तो था कि यह थैली किसकी है किन्तु धन के लोभ से बहुत धीरे २ कहा जिसको कोई दूसरा मनुष्य न सुन सके क्योंकि लोभ बुरी वृत्ति है यह वृत्ति एकाएक सबके सुकर्मो को चुरा लेती है इससे वही बचता है जिसे संसार से वैराग्य हो जाता है । नहीं तो वह सब के पुन्य कर्मो को अपहरण कर सकती है।अब वक्ताजी थैली लेकर घर पहुंचे तो वहाँ सब मिट्टी के सिक्के निकले यह देख वक्ताजी बहुत दुखी हुए। फिर दूसरे दिन कथा कहते समय वही उपरोक्त नीति का वर्णन किया । यह सुनकर उस मनुष्य ने पूछा कि यदि कोई मन ही मन में कह ले तो, वक्ताजी ताड़ गये कि अवश्य ही इसी की वह करतूत थी फिर सोचकर बोले कि मन ही मन कहने से घर जाकर वह माल मिट्टी का हो जाता है यह सुनकर वह मनुष्य बहुत हंसा और वक्ताजी की पोल खोलने लगा अन्त में वक्ताजी बहुत लज्जित हुए । सत्य है वर्तमान काल में ऐसे कथा वाचक हम कहे रावण जैसे ज्ञानी और उपदेशक अनेक हैं और ऐसे ही अधिक संख्या में श्रोता भी हैं। तभी तो कवि रहीमजी ने भी कहा है कि-
कहता तो सब कोई मिला, करता मिला न कोय ।
जो रहीम करता मिला, सो गति जाने दोय ॥
और हमारे बाबा गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा कि
पर उपदेश कुशल बहु तेरे।
जे आचरही ते नर न घनेरे।।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।
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