रविवार, 17 नवंबर 2024

मानस चर्चा।।चिन्ता का दुष्परिणाम।।


मानस चर्चा।।चिन्ता का दुष्परिणाम।। आधार मानस की पक्ति,चिंता साँपिनि को नहिं खाया जिसके बारे में और भी कहा गया है,
चिन्ता सम शत्रु नहीं, खाय रक्त अरु मांस |
मृतक चिता में दग्ध हो, जीवित चिंता वास ॥ अर्थात् चिंता चिता के समान है।आइए इस प्रकरण में इस कथा का आनंद लेते हुवे मानस के सुधा अमृत का पान करते है,
किसी गांव में एक बुढ़िया रहती थी, लोगों के यहाँ मिहनत मज-दूरी कर अपना दिन काटती थी । उसे एक वेटे के सिवा और कोई नहीं था, जो कुछ कमा कमाकर लाती थी- पहले अपने एकलौते बच्चे को सन्तुष्ट कर पुन: आप खाती पीती थी । धीरे धीरे कुछ दिनों में बालक सयाना हो गया । बुढ़िया ने उसे अखाड़े में भेजना शुरू किया,लड़का रोज नियमपूर्वक वहां जाता और दण्ड वैठक किया करता था ।
अखाड़े से लौटने पर बुढ़िया उसे बड़े प्रेम से खिलाती थी । खा पी लेने पर बालक उधर घूमने घामने के लिये निकल जाता और इधर बुढ़िया लोगों के यहां काम काज करने के लिए जुट जाया करती थी । वालक सायंकाल से पूर्व घर आकर अखाड़े में पहुँचता था, बुढ़िया भी सांझ होते-होते घर आकर रोटी पानी करती थी, जब बच्चा अखाड़े से लौटता था तब उसे प्रेम पूर्वक खिला-पिलाकर आप भी कुछ खाती पीती थी । जब बालक सो जाता तब आप भी सोती थी, बुढ़िया रात दिन यही ध्यान रखती थी कि मेरे बच्चे को किसी प्रकार का कष्ट न हो । लड़का निर्द्वन्द्व रहता था, स्वच्छन्दता पूर्वक निर्भय विचरता था, उसे किसी बात की चिन्ता नहीं थी, कसरत के अभ्यास से उसका शरीर अरोग और सुन्दर हो गया था । उसमें आलस्य का 'नाम न था। पहलवानों ने उसे होनहार समझकर कुश्ती लड़ाना भी शुरू कर दिया, धीरे-धीरे वह सभी दाव पेंच जान गया । उसके शरीर में काफी वल था, अखाड़े के सभी पट्टों को उसने पटक दिया, अब लगा
पहलवानों के भी दाँत खट्टे करने । धीरे-धीरे वसन्त का दिन आ गया, वहाँ उस दिन एक बड़ा भारी मेला हुआ करता था । उसमें देश-देश के बड़े नामी पहलवान दङ्गल के लिये आते थे, बुढ़िया का लड़का भी उस दङ्गल में शरीक हुआ । और धीरे-धीरे उसने सभी नामी-नामी पहलवानों को पटक दिया, यह देखकर सबको ईर्ष्या प्राप्त हुई सोचने लगे कि क्या कारण है ? यह घाँस भूस खानेवाला गरीब बुढ़िया का लड़का इतने बड़े वीरों को
पटक रहा है जो रोज घी दूध और मक्खन खानेवाले हैं। निश्चय ही इसमें कुछ भेद है । सोचते-सोचते सबो ने निश्चय किया कि और कुछ नहीं - यह निर्द्वन्द्व रहा करता है, इसे किसी बात की चिन्ता नहीं है । सदैव प्रसन्न मन रहा करता है । चिन्ता न रहने से ही यह इतना बलवान हो गया है, यदि इसे चिन्ता में डाल दिया जाय तो इसका रुप बल घट जायगा, और हम लोग बात ही बात में इसे हरा देंगे ।
ऐसा ही हुआ । पहलवानों ने पहले बुढ़िया को मिलाया और द्रव्य का प्रलोभन देकर कहा कि अपने लड़के की शादी कहीं ठीक कर । तू अब वृद्धा हो गयी है, तुम्हारा कौन ठिकाना, अब तुम्हारी अवस्था पके हुए फल के समान है, जब चाहे चू जाय । बुढ़िया ने कहा हां ! सत्य
कहते हो भइया लोग ! हम इसका प्रबन्ध करते हैं ।
बुढ़िया ने दौड़ धूप कर लड़के की शादी करादी । अब तक तो वह बिचारा अकेला था, अब क्या करे । उसे तो एक पुछल्ले की चिंता लग गई । घरकी चिंता, अन्नकी चिंता, धनकी चिंता, सुख की चिंता; स्वर्ग नरक की चिंता, तथा शरीर की चिंता, उसके हृदय में समा गई। अब और क्या बढ़ेगा ? उसकी उन्नति रुक गई, उसका बल घट गया, अब वह परतन्त्र हो गया, उसका साहस और शरीर परिवर्तित हो गया। दूसरे वर्ष के मेले में वह पहलवानों को नहीं पटक सका और बुरी तरह से हार गया। गोस्वामीजी ने सच ही कहा है कि
चिंता साँपिनि को नहिं खाया
।।जय श्री राम जय हनुमान।।

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