मानस चर्चा ।।आदर्श और कपटी मित्र।।
मानस चर्चा ।।आदर्श और कपटी मित्र।।
आगे कह मृदु वचन बनाई ।पाछे अनहित मन कुटिलाई।
जाकर चित अहि गति सम भाई ।अस कुमित्र परिहरेहि भलाई।। स्पष्ट कहा गया है कि_
मित्र मित्र सों प्रीति कर, हृदय आन मुख आन ॥
जाके मन वच प्रेम नहि, दुरे दुराये जान ॥
जैसे एक मनुष्य ने यात्राके समय ४०००० रुपये सन्दूफमें बंद कर दिये परंतु उनमेंसे ५०० रुपये उसकी स्त्री ने निकाल लिये ।उसने यह सन्दूक मित्रके यहां रख दिया, कुछ दिन उपरान्त जब वे लौटकर आये तब मित्रके पास जाकर कहा, संदूक लाओ, वह बोला जहां धरा है वही है ले जाओ, यह उठा लाये और घर आकर ताला खोला रुपये गिने ५०० कम थे। मित्र से जाकर कहा ५०० कम हैं । वह बोला ले जाओ किसी घर के काम में उठ गये होंगे, यह ले आये। स्त्रीने पूछा रुपये गिनकर कहां चले गये थे ? यह बोले ५०० कम थे, सो लेने गया था। स्त्री बोली वह तो चलते बखत मैंने निकाल लिये थे, तब वह बोले पहिले से क्यों न कहा ? तब रुपये लेकर मित्रके घर गये और कहा हमारे रुपये घर ही थे, वह बोले क्या डर है घर जाओ। ऐसे मित्र होते हैं ।वास्तव में सच्चे मित्र ऐसे ही होते हैं।मित्र मित्रसे परस्पर प्रीति करते हैं, परन्तु हृदयमें और, मुखमें और, जिनके वचन और मनमें प्रेम नहीं है, वे अपना कपट हृदयमें छिपाते हैं वे कुमित्र हैं ॥ प्रभु श्री राम ने कहा है कि _
सेवक शठ नृप कृपण कुनारी।
कपटी मित्र शूलसम चारी ॥
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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