✓मानस चर्चा।। सबही नचावत राम गोसाईं।।
मानस चर्चा।। सबही नचावत राम गोसाईं।।
मनवाँ दाता राम बिनु, कौन सहायक होय ।
सो कृपालु तजि मूढ़ क्यों, जनम अकारथ खोय ॥
एक राजा के चार लड़के थे । राजा ने चारों को विद्वान गुरु
के पास रखकर शिक्षा दिलवाया, जब वे अच्छी प्रकार पढ़ लिये तब अपने घर लौटे। एक दिन राजा ने चारो पुत्रों को अपने पास बुला कर पहले बड़े लड़के से पूछा कि तुम्हारा पालन-पोषण कौन करता है ? उसने उत्तर दिया कि आप ! पुन: दूसरे लड़के से पूछा उसने भी कहा कि पिता जी, आप। तीसरे से पूछा, उसने भी यही जवाब दिया, परन्तु चौथे लड़के ने कहा कि नहीं, मेरे पालक राम हैं, उन्हीं के द्वारा मैं राजा के यहाँ जन्मा हूँ। उन्होंने ही मेरा पालन किया है और अन्त में भी करेंगे । छोटे लड़के की बात सुन कर राजा को बहुत क्रोध हो आया, उसने तुरन्त अपने नौकरों को आज्ञा दी कि इसे जङ्गल में छोड़ आओ, फिर हम देखेंगे कि इसका राम क्या काम करता है । नौकरों ने राजा की आज्ञा का पालन किया, राजकुमार
जो अभी महलों में आराम कर रहा था, कुछ ही देर में प्रारख्ध ने उसे जङ्गल में बिठा दिया । जो अभी सहस्रों दास-दासियों एवं प्रजाजनों पर शासन कर रहा था अभी कुछ ही देर में जन-शून्य स्थान पर बैठा है । देखो ! प्रारब्ध का विचित्र खेल, क्षण में क्या हो गया ? कहाँ राजपाट और कहाँ यह बीहड़ वन ! अकेला राजकुमार उस भयानक जंगल में भटकने लगा, कोई साथी
नहीं, रात हो गई, जङ्गली जीव घूमने लगे । हिंसक जन्तुओं के गंभीर नाद से सम्पूर्ण जङ्गल गूँज उठा । ऐसे समय में राजकुमार अकेला एक वृक्ष के नीचे बैठा हुआ ईश्वर को याद कर रहा था, एकाएक उसे थोड़ी दूर पर प्रकाश दिखलाई पड़ा और वह किसी आदमी का
निवास स्थान समझ कर उसी ओर चल पड़ा । वहाँ पहुँचने पर उसने एक महात्मा को बैठे देखा, उनके सामने धूनी जल रही थी, उनकी लम्बी-लम्बी जटायें पृथ्वी पर पड़ी थींउनके मुख मंडल से एक अपूर्व आभा निकल रही थी। राजपुत्र ने ऐसी तेजोमयी मूर्ति का कभी दर्शन नहीं किया था, वह श्रद्धापूर्वक आगे बढ़ कर मुनि के चरणोंमें गिर पड़ा, महात्मा ने उठा कर आशीर्वाद दिया और पूछा तुम कैसे इस भयानक जङ्गल में आये ? राजकुमार ने सारी घटना आद्योपान्त सुना दी, राजपुत्र की दीन दशा पर महात्मा को दया आई और उन्होंने उसे अपने आश्रम में रख लिया ।।महात्मा की कुटिया एक ऊँचे डीह पर थी। वहाँ पर एक पुराना किला था उसकी दीवारें टूट गई थीं और उसका राजप्रासाद खंडहर हो गया था, परन्तु उसकी श्री अभी बाकी थी, राजकुमार दिन भर इन्हीं खंडहरों में घूमता रहता और रात में महात्मा से सत्संग किया करता था । धीरे-धीरे गर्मी का दिन आया। आसपास के जलाशय सब सूखने लगे। महात्मा ने कहा वेटा ! ग्रीष्म में जल का बड़ा अभाव हो जायगा । राजकुमार ने कहा, महाराज एक उपाय कर देने से हम लोगों को।जल का अभाव नहीं रह जायगा। कोट के बीच में जो पुराना कुआँ है यदि उसकी सफाई हो जाय तो पानी का कष्ट न रहे। महात्मा ने राज-
पुत्र की सम्मति मान ली और दूसरे ही दिन दोनों आदमी उसके साफ करने में लग गये । कुओं में पैठते ही राजपुत्र जब टटोलने लगा तो उसका हाथ एक घड़ा पर पढ़ा, उसने उसे उठाया, वह बड़ा भारी था। राजकुमार के कहने पर साधु ने उसे रस्सी से खींच लिया. ऊपर खोलने से देखा गया कि इसमें तो अशर्फियाँ भरी पड़ी हैं। इस प्रकार राजपुत्र ने उस दिन जितने बार कुँये में हाथ लगाया उतनी बार अशर्फियों के घड़े निकलते रहे । सायंकाल को कुँवे से बाहर आया, महात्मा ने कहा, बेटा ! यह सब धन तुम्हारे ही भाग्य का है, इनका सदुपयोग करो । दूसरे ही दि राजकुमार ने नगर से राज, मिस्त्री और बहुत से कुलियों को बुला वहाँ पर एक नया नगर बसाना शुरू कर दिया। थोड़े दिनों में नगर बस गया, उसने एक दातव्य भवन भी बनवाया, जहाँ जो के अभ्यागत आकर जो कुछ याचना करता था -- मुँह मांगा उसे मिल था। अब उन खंहडरों में स्वर्ण खंभ चमकने लगे और वह विरावन जंगल गुल्जार हो गया । उधर का यह हाल हुआ कि राजा के शत्रुओं ने उसके राज्य चढ़ाई करदी, उसका सर्वस्व लूट लिया, किसी प्रकार राजा अपनी पत्नी और तीनों बालकों के साथ भागता-भागता इसी जङ्गल में आया, दो दिन से पेट भरने के लिये अन्न भी नहीं मिला था, सभी क्षुधा पीड़ित होते उसी दातव्य भवन में पहुँचे।नौकरों ने अतिथियों को राजपुत्र के सामने प्रस्तुत किया। राजपुत्र उनसे से पूछा, आप लोग क्या चाहते हैं । यहाँ किसी बात की कमी नहीं है,आप जो चाहे मांग सकते हैं।राजा ने कहा, महाराज ! हम लोग दुर्भाग्यवश यहाँ तक प्राण बचाकर आ सके हैं। तीन दिन के भूखे हैं। क्षुधा शान्ति के लिये तीन पाव आँटा चाहिये । राजपुत्र अपने अतिथियों को बड़े गौर से देख रहा था, वह मन में सोचता जाता था क्या मुझे भ्रम तो नहीं हो रहा है ? क्या ये मेरे पिता भाई और -महाराजा हैं, वे इस अवस्था में यहाँ क्यों हैं। इतने में ही उसने अपनी माँ को भी देख लिया, और दौड़ कर उनके चरणों में गिर पड़ा, माता-पिता अपने पुत्र को पाकर बड़े प्रसन्न हुये ।राज पुत्र ने सभी को बड़े सम्मान पूर्वक ठहराया । भोजन आदि
निवृत्त करा कर सब की यथाशक्ति सेवा की और सोते समय अपने पिता एवं भ्राताओं से कहा-पूज्यवरों ! मैं ईश्वर की कृपा से ही यहाँ आया और उन्होंने ही मुझे इस पद पर बैठाया है, भगवान सब कुछ करता है। उन्होंने ही आपके अभिमान को दूर कर दिया,राज पाट छुड़ाया, और वन-वन भटकाया । सबों ने राजपुत्र की बात मान ली और कहा, सत्य है। ईश्वर की महिमा बड़ी विचित्र है । राम ही सबका सच्चा सहायक है । तभी तो बाबा ने कहा है कि-सबही नचावत राम गोसाई।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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