रविवार, 17 नवंबर 2024

✓मानस चर्चा।।॥सुनहु नाथ सीता विनु दीन्हे।

मानस चर्चा।।॥सुनहु नाथ सीता विनु दीन्हे।
हित न तुम्हार शंभु अज कीन्हे ॥  आज हम मंदोदरी के इस दर्द के पीछे छिपे हुवे राज को जानते है जिसे वह रावण से विनती करते हुवे कहती है।
समुझत जासु दूत कै करनी। स्रवहिं गर्भ रजनीचर घरनी।
तासु नारि निज सचिव बुलाई। पठवहु कन्त जो चहहु भलाई ॥तव कुल कमल विपिन दुखदाई।
सीता सीत निशा सम आई ॥सुनहु नाथ सीता विनु दीन्हे।
हित न तुम्हार शंभु अज कीन्हे ॥  इतनी दृढ़ता से महारानी मंदोदरी ने राक्षस राज रावण से कैसे कहा कि सुनहु नाथ सीता विनु दीन्हे।हित न तुम्हार शंभु अज कीन्हे ॥   आइए इसके पीछे के राज को हम इस अद्भुत कथा के माध्यम से सुने और सीताजी की इस विस्मयकारी कथा अमृत का पान करें। कथा इस प्रकार है कि एक समय पद्माक्ष राजाने सब संसार को लक्ष्मी की इच्छा में देखकर महातप इस कारण किया कि मेरे यहाँ लक्ष्मी कन्यारूपसे उत्पन्न हो । तब लक्ष्मीने दर्शन देकर कहा मैं परतंत्र हूं, तुम विष्णु भगवान्‌ से प्रार्थना करो। तब राजाने विष्णुका तप किया । भगवान्ने पद्माक्षको एक मातुलिंगका फल दिया। उस फलमेंसे एक कन्या प्रादुर्भूत हुई, जो साक्षात् लक्ष्मीरूप थी । राजाने उसका नाम पद्मा रक्खा।  पद्मा की उत्पत्ति के बाद वह फल ज्योंका त्यों हो गया। वह कन्या बहुत शीघ्र वृद्धिको प्राप्त हुई, तब राजाने स्वयंवर किया। उसमें देवता दैत्य राक्षस मनुष्य सब आये। राजाने कहा जो नीले वर्णके आकाशको अपनी देहमें लपेट लेगा, उसे में अपनी कन्या व्याह दूंगा । राजाकी यह दुर्घट बात सुनकर सब राजाओंने कन्या हरणके निमित्त राजासे युद्ध किया। उस युद्धमें दैत्यों ने  राजा की हत्या कर दिया। तब वे कन्या को ग्रहण करने को धावमान हुए । यह देख कन्या अग्निमें प्रवेश कर गयी। राक्षस ढूंढ  कर , हार कर चले गये । नगर नष्ट भ्रष्ट हो गया। कुछ दिनों बाद  जिस  समय पद्मा अग्निकुंडसे निकल कर विचरण कर रही थी उसी समय आकाश मार्ग से रावण जा रहा  था,वह पद्मा को देख लिया ।देखते ही  रावणने पद्मा से  कहा कि हे पद्ये । अब तुम्हारा स्थान  मैं जान गया। यह कह ज्योंही उसे पकड़ने को हाथ बढ़ाया, त्यों ही वह अग्निमें पुनः प्रवेश कर गयी। तब रावण  उस अग्नि में उसे ढूंढने लगा। उस कुंड में उसे वह कन्या नहीं मिली ।उस कुंड से पांच रत्न निकले। उन्हें ले पिटारी में   धर रावण लंका आया और  मन्दो-दरी से एकांत में बोला कि मैं  तुम्हारे निमित्त रत्न लाया हूं सो पिटारी में धरे हैं, उठा लाओ। मंदोदरी जब पिटारी उठाने लगी, तो  पिटारी नहीं उठी, तब लज्जित हो पति से कहा, रावण हँसकर उसे उठाने लगा। तब उससे भी पिटारी न उठी।  विस्मय को प्राप्त हो रावण ने उसे खोला उसमें  उसे महा तेज निधान कन्या दिखी। जिसके तेजसे रावणकी आँखें मिच गयीं। बहुत राक्षस उस कन्याको देखने आये। तब रावन ने पद्मा का सब चरित्र सभी से  कहा और बताया  कि  किस प्रकार इसने अपना सब कुछ ध्वंस किया। तब मंदोदरी बोली, जो ऐसा है तो तुम इसे यहाँ क्यों लाये ? इसका शीघ्र ही त्याग करो। मैं जानती हूं इसीके कारण तुम्हारा वध होगा। इसके बाद  दूतोंको बुलाकर मंदोदरी बोली इसे बंदकर पुष्पकमें रखकर आकाशमार्ग से ले जाओ और बाहर मत डालना - पृथ्वीमें गाड़ देना। जो गृहस्थी जितेन्द्रिय चराचरमें आत्माका देखने वाला हो, उसके यहाँ यह रह सकती और वृद्धिको प्राप्त हो सकती है। यह बात सुनकर  वह कन्या बोली कि अभी तो मैं जाती हूं परंतु राक्षसों के और सकुटुम्ब रावणके वधके निमित्त दूसरी बार फिर आऊंगी। तीसरी बार शत शिरके रावणको मारूंगी। चौथीबार मूलकासुरको मारूंगी । यह वचन सुन खङ्ग ले रावण उसे मारने दौड़ा। तब मन्दोदरीने निवारण किया और कहा  कि हे रावण ! अभी क्यों बिना कारण ही 
मृत्युके मुखमें पतित हो रहे हो, होनहार नहीं मिटती। यह सुन रावण मौन हुआ। दूतों ने जाकर जनकपुरीमें पिटारी गाड़ी, जिससे जानकी हुई । आगे इस पद्मा हम कहे जानकी या सीता की कथा हम सब जानते ही है।तभी सभी घटना  क्रम को जानकर  मंदोदरी रावण से विनती करती हुई कहती है कि  वही पद्मा रूपी सीता तुम्हारे कुल का नाश करने यह दूसरी बार आयी है, इसे आप   दे दो कृपया इस बात को   समझो ।समझते हुवे वह कहती है कि, समुझत जासु दूत कै करनी। स्रवहिं गर्भ रजनीचर घरनी।तासु नारि निज सचिव बुलाई। पठवहु कन्त जो चहहु भलाई ॥तव कुल कमल विपिन दुखदाई।
सीता सीत निशा सम आई ॥
।।जय श्री राम जय हनुमान।।

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ