मानस चर्चा।।अंगद का संशय।।
मानस चर्चा।।अंगद का संशय।।
अंगद कहहि जाउं मैं पारा।जिय संशय कछु फिरती
बारा ॥
जामवन्त कह तुम सब लायक। पठवऊ किमि सबही कर नायक ॥ २ ॥
अंगदने कहा- मैं पार तो जा सकता हूँ परन्तु फिरती बार संदेह है कि राक्षसोंसे युद्ध करके फिर आया जाय वा नहीं ॥ क्योंकि जाता तो शक्तिके सन्मुख हूँ, इससे बल रहेगा किन्तु आनेमें शक्तिसे विमुखता होगी सामर्थ्य रहे वा न रहे यथा "अशक्ताः शक्तिसम्पन्ना
ये च शक्तिपराङ्मुखाः। असमर्था समर्था स्युः शक्तिसन्मुखगामिनः " इसके अर्थ कई
प्रकारसे करते हैं, परन्तु वे निर्मूल हैं, कोई कहते हैं अंगदको ऋषिका शाप था कि जिस जलको उलांघोगे फिर न लौट सकोगे, यदि शाप होता तो अंगदको संदेह क्यों होता ? तब तो निश्चय ही था, कोई कहते हैं बालि और रावणकी प्रीति थी, अंगदजीको सन्देह हुआ कि उसकी प्रीतिमें मैं न फँस जाऊँ, परन्तु इससे भक्ति में न्यूनता होती है इस कारण ठीक नहीं । एक कथा यह भी है कि अंगद और अक्षयकुमार दोनों एक गुरुके पास पढ़ते थे । तब एक दिन अंगदने अक्षयको बहुत मारा। यह सुन गुरुने शाप दिया कि 'अक्षयके एकही घूंसेसे अंगद मर जायगा' यह बात स्मरण कर अंगद कहते हैं कि यदि अक्षय मिल गया तो आने में संदेह होगा । यथाहि "दो० - अंगद कह्यो सकोप तब, अभी जाउँ मैं पार । मोहि सुरति मुनि शापकी, संशय फिरती बार ?" जाम्बवन्तजी बोले कि, आप सब कुछ करने में समर्थ हो, परन्तु सबके स्वामी युवराज हो, आपको कैसे भेजूं ? भृत्योंके होते हुए स्वामीका जाना नीति बिरुद्ध है ॥ वास्तव में यही सोचकर जामवंतजी ने अंगद जी को रोका कि यह राजनीति के खिलाफ था और प्रभु राम की स्वीकृति के।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]
<< मुख्यपृष्ठ