मानस चर्चा।तुम्हहिं छाडि गति दूसरि नाहीं ।
मानस चर्चा
तुम्हहिं छाडि गति दूसरि नाहीं ।
राम बसहु तिन्ह के मन माहीं । ।
दृष्टांत ~ एक राजा सायंकाल के समय महल की छत
पर टहल रहे थे। सहसा उनकी दृष्टि नीचे बाजार में घूमते हुए एक सन्त पर पड़ी। सन्त अपनी मस्ती में ऐसे चल रहे थे कि मानो उनकी दृष्टि में संसार है ही नहीं ।
राजा अच्छे संस्कार वाले पुरुष थे। उन्होंने अपने सेवकों को उन सन्तों को तत्काल ऊपर ले आने की आज्ञा दी। आज्ञा पाते ही राजसेवकों ने ऊपर से ही रस्सी लटकाकर उन सन्त को (रस्सी में फांसकर) ऊपर खींच लिया। इस कार्य के लिए राजा ने उन सन्त से क्षमा माँगी और कहा कि एक प्रश्न का उत्तर पाने के लिए ही मैंने आपको कष्ट दिया। प्रश्न यह है कि भगवान शीघ्र कैसे मिलें?
सन्त ने कहा~ "राजन्! इस बात को तुम जानते ही हो।"
राजा ने पूछा ~ कैसे? सन्त बोले~ यदि मेरे मनमें तुमसे मिलने का विचार आता तो कई अडचनें आती और बहुत देर लगती। पता नहीं मिलना सम्भव भी होता या नहीं। पर जब तुम्हारे मनमें मुझसे मिलने का विचार आया, तब कितनी देर लगी?राजन्! इसी प्रकार यदि भगवान के मन में हम से मिलने का विचार आ जाय तो फिर उनके मिलने में देर नहीं लगेगी। राजाने पूछा~ भगवान के मन में हमसे मिलनेका विचार कैसे आ जाय? सन्त बोले~ तुम्हारे मनमें मुझसे मिलने का विचार कैसे आया? राजाने कहा ~ जब मैंने देखा कि आप एक ही धुन में चले जा रहे हैं और सड़क, बाज़ार, दुकानें, मकान मनुष्य आदि किसीकी भी तरफ आपका ध्यान नहीं है, तब मेरे मन में आपसे मिलनेका विचार आया। सन्त बोले~ राजन्! ऐसे ही तुम एक ही धुन में भगवान की तरफ लग जाओ, अन्य किसीकी भी तरफ मत देखो और भगवान के भजन-सुमिरन के बिना रह न सको, तो भगवान
के मनमें तुमसे मिलने का विचार आ जायेगा और वे तुरंत
मिल जायेंगे।
तुम्हहिं छाडि गति दूसरि नाहीं ।
राम बसहु तिन्ह के मन माहीं । ।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।
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