गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

।।कौन अब गंगाधर बनेगा।।

जहाँ हो सब बनाने को आतुर,वहाँ तब बनने को तैयार कौन होगा।
हर पद-दल हर क्षण हराने को बेसब्र,तो बताये हार किसे स्वीकार होगा।।
कीचड़ उछालने फैलाने वालों मध्य,अब सच को कौन अंगीकार करेगा।
सर्वत्र फैल रहे द्वेष-हलाहल पीने को,कौन अब गंगाधर बनेगा।।1।।
हर थल पनप रही असमता-विषमता वर्ग -भेद,भेदन को कौन आयेगा।
हाय अन्याय पाप अपाचार समन हेतु,कौन कौन्तेय यहाँ अस्त्र धरेगा।।
जिस राज में सभी रथी-महारथी ही हो,वहाँ फिर सारथी कौन बनेगा।
दृश्य-अदृश्य कुकर्म-कालकूट को,गटकने कौन अब गंगाधर बनेगा।।2।।
मत्स्यान्याय मध्य जीने को बेवश का,अब यहाँ न्यायी कौन बनेगा।
माइट इज राइट के काइट को वसुन्धरा पर,कंट्रोल कौन करेगा।।
जिसकी लाठी उसकी भैस मध्य,लाठी लगाम लगाने कौन अब आयेगा।
हर गली-थली के मद-मतवारे के मद को पीने, कौन अब गंगाधर बनेगा।।3।।
सर्वहारा जहाँ सर्व हारा है हो रहा,वहाँ इसकी जय कौन अब लायेगा।
हमारी हताशा-निराशा-निशा मिटाने, कौन सूर सूर बन अब आयेगा।।
जहाँ बन्दी में मन्दी वहाँ सहज सानंदी का,
आनन्द हर कौन बन पायेगा।
निश्चित हर ही है हरि जो हर हार हरण को,यहाँ गंगाधर बन आयेगा।।4।।

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