सोमवार, 14 दिसंबर 2015

रिश्ते

घर परिवार देश काल
हैं सम्बन्धों के महाजाल।
जन्म कर्म व्यवहार
से बना इंसा का संसार।।
पशु पंक्षी जीव जन्तु
भी रखते अपने महातन्तु।
अंडज स्वेदज पिंडज
में समाहित है यह जग।।
आइये देखे परखे
इन सब रिश्तों के लेखे ज़ोखे।
पारिवारिक व्यवहारिक
अगनित रिश्ते है सामाजिक।।
अविश्वास-विश्वास
से बधा हर रिश्ते का महारास।
तोड़ना-जोड़ना
स्वार्थ हित मुँह मोड़ना।।
पर सुधार अपेक्षा
निज कार्य-अकार्य है स्वेच्छा।
दोपहर के धूप
का अवसान होता ही है समीप।।
अरुणोदय सा उदय
विकास के उतुंग शिखर पहुँचे सहृदय।
दुःख-सुख धूप-छाँव
हर रंग को पाना ही है रिश्तों के ठाव।।
प्रेम-सेतु संयोजक
कदम कदम है आयोजक नियोजक।
ईर्ष्या-भीत बाधक
है निज-पर का बन सर्वकाल घालक।।
माँ-बाप
निज सुख शान्ति के त्याग स्वरूप।
नहीं हारे
पर से निज से है पग-पग पर हारे।।
भैया-बाबू
एक दूसरे पर निर्भर, नही बेकाबू।
नाना-नानी
मामा-मामी,काका-काकी की कहानी।
जब होनी
कद्र सबकी धर्म कर्म मर्म से जुबानी।।
धर्म-राह
इंसा-पशु को विलग दे हरदम साह।
विश्वास घात
जनक है यह इस जहा में महापात।।
रिश्ते हैं
अजर अमर पुण्य पुञ्ज समूह हैं।
बने रहे
मिल अवयव बहु जू रस अहे।।

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