गुरुवार, 7 जनवरी 2016

सुख-प्रभात आता ही बन हमदम

सुनो कहते हैं सारे काव्य खण्ड ,
जीवन है पारस मणि का अंग।
मुक्तक मुक्तामणि सा मुक्त कराता,
जीवन का सब सार सबे सुनाता।
सोने पे सुहागा खण्ड काव्य,
जगाये सोये हुवे हर भाग्य।
महा काव्य हैं पुरुष के पौरुष का बल,
जो गिरने-उठने आगे बढ़ने के सिम्बल।
दूर न हो हम अपने-अपनों से,अपनी माँ से,
हर कण है कराता हमारा परिचय जीवन से।
धरती का हर हर श्रृंगार,कैसे हो बेरा पार,
जहाँ नीम आम बेर बबूल कहते जीवन सार।
गुलाब सिखाता खिलखिलाना-मुस्कराना,
दुःख-सूल मूल मध्य महकना-महकाना।
कोयल-कागा से जुड़ी नानी की कहानी,
भर देती हर पल हर जीवन में रवानी।
घोर घाम तप-कर्म बताता,
जीवन का सब सत्य सिखाता।
दुःख-रजनी नहीं टिकती हरदम,
सुख-प्रभात आता ही बन हमदम।।
ले दे कर प्रकृति मध्य है जीवन अपना,
काव्य-कथा सिख से करें पूरा सपना।

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