रविवार, 6 अक्टूबर 2013

हम कदम

एक कथा जय पराजय की सुख शान्ति तृप्ति तलाश की !
देवी दासी दायित्वों दुर्निवार दुस्वारियो दुखद दुर्विकल्पो की !!
 पति पत्नि सखा सखी स्वामी स्वामिनी सेवक सेविका की !
सोच विचार संतुष्टि त्याग तपस्या प्रेम घृणा लगाव इश्क की !!१!!
बिना विचारे पथ त्यागे नासमझदारी को समझदारी समझ की !
पर विकार विकार स्व विकार स्वीकार से स्वयं श्रेष्ट मानने की !!
हम कदम राही को हम सफ़र बना लेने की लगन पर ललकने की !
अपना सब स्वेच्छया समर्पण कर पर पर प्रत्यारोप लगाने की !!२!!
स्वयं ही विवेक खो सत असत से दूर हो गलत को सही मानने की !
स्व अनुकूल जब तक सब रहे तब तक अपने आप पर इटलाने की !!
धोखा को विश्वास स्नेह ईमान समझ उस पर इतराते रहने की !
सब कुछ दिन सा साफ़ होने पर स्वं की करतूती पर पछताने की !!३!!
हो रहा ऐसा ही है आज कल हर शहर हर गली गली हर स्थली !
इश्क मुश्क में नहीं समझते फेयर अनफेयर नव भौरे नव कली !!
ये तो एवरीथिंग फेयर एवरीवेयर मान बैठे माने बुजर्गो को ठली !
पर आदतन भौरे बदलेगे ही कली की बात जब इन पर आ चली !!४!!
तब कथा प्रेम का रूप छोड़ बलात्कार व्यविचार देह शोषण है बनी !
ऐसी हमने ही नहीं सबने ही है भाति भाति से अनेक कथा है सुनी !!
जज जनता शासन सरकार सब सोचे ऐसो की जड़ कैसे है काटनी !
लालच लोभ मोह में गिर गिर गिरना है तो कैसे कोई इनका धनी !!५!!
कहते हम हम कदम को रहने दो, हम कदम नहीं चाहते देवी दासी !
देवी नैसर्गिक अधिकारों से परे इन्हें दिखती मुरझाये पुष्प सा बासी !!
दासी का अधिकार छीन जाए अधिकारहीन जीवन को कैसे सह जासी  !
पति पत्नि सेवक स्वामी सखा एक दूसरे के यह इन्हें है कभी सुहासी !!६!!

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ